भजन भैरवी
आब मन हरि चरनन अनुराग।
त्यागि हृदयके विविध वासना दम्भ कपट सब त्याग॥
सुत बनिता परिजन पुरवासी अन्त न आबे काज।
जे पद ध्यान करत सुर नर मुनि तुहुं निशा आब जाग॥
भज रघुपति कृपाल पति तारों पतित हजार
बिनु हरि भजन बृथा जातदिन सपना सम संसार
रामजी सन्त भरोस छारि अब सीता पति लौ लाग॥
॥ राग विहाग ॥
को होत दोसर आन रम बिनु॥ जे प्रभु जाय तारि अहिल्या जे बनि रहत परवान॥ जल बिच जाइ गजेन्द्र उबारो सुनत बात एक कान॥ दौपति चीर बढ़ाई सभा बिच जानत सकल जहान॥ रामजी सीता-पति भज निशदिन जौ सुख चाहत नादान॥
चैत के ठुमरी
चैत पिया नहि आयेल हो रामा चित घबरायेल।।
भवनो न भावे मदन सताबे नैन नीन्द नहि लागल॥
निसिवासर कोइल कित कुहुकत बाग बाग फूल फूलल॥
रामजी वृथा जात ऋतुराजहि जौंन कन्त भरि मिललरामा॥
चित घबरायेल चैत पिया नहि आयल॥
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