भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

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Friday, May 8, 2009

गजेन्द्र ठाकुर

गजेन्द्र ठाकुर

(जन्म 1971) कुरुक्षेत्रम्अन्तर्मनक, खण्ड-१ आऽ २ -लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन प्रेसमे अछि। ई-मेल- ggajendra@airtelmail.in 


केदारनाथ चौधरीक उपन्यास “चमेली रानी” आ माहुर

केदारनाथ चौधरी जीक पहिल उपन्यास चमेली रानी २००४ ई. मे आएल । एहि उपन्यासक अन्त एहि तरहेँ खतम भेल जे एकर दोसर भागक प्रबल माँग भेल आ लेखककेँ एकर दोसर भाग माहुर लिखए पड़लन्हि। धीरेन्द्रनाथ मिश्र चमेली रानीक समीक्षा करैत विद्यापति टाइम्समे लिखने रहथि- “...जेना हास्य-सम्राट हरिमोहन बाबूकेँ “कन्यादान”क पश्चात् “द्विरागमन” लिखए पड़लनि तहिना “चमेलीरानी”क दोसर भाग उपन्यासकारकेँ लिखए पड़तन्हि”।

 ई दुनू खण्ड कैक तरहेँ मैथिली उपन्यास लेखनमे मोन राखल जाएत। एक तँ जेना रामलोचन ठाकुर जी कहैत छथि- “..पारस-प्रतिभाक एहि लेखकक पदार्पण एते विलम्बित किएक?” ई प्रश्न सत्ये अनुत्तरित अछि। लेखक अपन ऊर्जाक संग अमेरिका, ईरान आ आन ठाम पढ़ाइ-लिखाइमे लागल रहथि रोजगारमे रहथि मुदा ममता गाबए गीतक निर्माता घुमि कऽ दरभंगा अएलाह तँ अपन समस्त जीवनानुभव एहि दुनू उपन्यासमे उतारि देलन्हि। राजमोहन झासँ एकटा साक्षात्कारमे हम एहि सम्बन्धमे पुछने रहियन्हि तँ ओ कहने रहथि जे बिना जीवनानुभवक रचना संभव नहि,जिनकर जीवनानुभव जतेक विस्तृत रहतन्हि से ओतेक बेशी विभिन्नता आ नूतनता आनि सकताह। केदारनाथ चौधरीक “चमेली रानी” आ “माहुर” ई सिद्ध करैत अछि। चमेली रानी बिक्रीक एकटा नव कीर्तिमान बनेलक। मात्र जनकपुरमे एकर ५०० प्रति बिका गेल। लेखक “चमेली रानी”क समर्पण “ओहि समग्र मैथिली प्रेमीकेँ जे अपन सम्पूर्ण जिनगीमे अपन कैंचा खर्च कऽ मैथिली-भाषाक कोनो पोथी-पत्रिका किनने होथि” केँ करैत छथि, मुदा जखन अपार बिक्रीक बाद एहि पोथीक दोसर संस्करण २००७ मे एकर दोसर खण्ड “माहुर”क २००८ मे आबए सँ पूर्वहि निकालए पड़लन्हि तखन दोसर भागमे समर्पण स्तंभ छोड़नाइये लेखककेँ श्रेयस्कर बुझेलन्हि। एकर एकटा विशिष्टता हमरा बुझबामे आएल २००८ केर अन्तिम कालमे जखन हरियाणाक उपमुख्यमंत्री एक मास धरि निपत्ता रहलाह, मुदा राजनयिक विवशताक अन्तर्गत जाधरि ओ घुरि कऽ नहि अएलाह तावत हुनकापर कोनो कार्यवाही नहि कएल जाऽ सकल। अपन गुलाब मिश्रजी तँ सेहो अही राजनीतिक विवशताक कारण निपत्ता रहलोपर गद्दीपर बैसले रहलाह्,क्यो हुनका हँटा नहि सकल। चाहे राज्यक संचालनमे कतेक झंझटि किएक नहि आएल होए। उपन्यास-लेखकक जीवनानुभव एकर सम्भावना चारि साल पहिनहिए लिखि कऽ राखि देलक। भविष्यवक्ता कोनो टोना-टापरसँ भेनाइ संभव नहि होइत अछि वरन् जीवनानुभव एकरा सम्भव बनबैत अछि। एहि दुनू उपन्यासक पात्र चमत्कारी छथि, आ सफल सेहो कारण उपन्यासकार एकरा एहि ढंगसँ सृजित करैत छथि जेना सभ वस्तुक हुनका व्यक्तिगत अनुभव होइन्ह।

उपन्यासक बुर्जुआ प्रारम्भक अछैत एहिमे एतेक जटिलता होइत अछि जे एहिमे प्रतिभाक नीक जकाँ परीक्षण होइत अछि। “चमेली रानी” उपन्यासक प्रारम्भ करैत लेखक एकर पहिल परीक्षामे उत्तीर्ण होइत छथि जखन एकर लयात्मक प्रारम्भ पाठकमे रुचि उत्पन्न करैत अछि। कीर्तिमुखक पाँच टा बीटाक नामकरणक लेल ओकर जिगरी दोस कन्टीरक विचार जे “पाँचो पाण्डव बला नाम बेटा सबहक राखि दहक। सुभिता हेतौ”। फेर एक ठाम लेखक कहैत छथि जे जतेक गतिसँ बच्चा होइत रहैक से कौरवक नाम राखए पड़ितैक। नायिका चमेली रानीक आगमन धरि कीर्तिमुखक बेटा सभक वर्णन फेर एहि क्रममे अंग्रेज डेम्सफोर्ड आ रूपकुम्मरिक सन्तान सुनयनाक विवरण अबैत अछि। फेर रूपकुम्मरिक बेटी सुनयनाक बेटी शनिचरी आ नेताजी रामठेंगा सिंह “चिनगारी”क विवाह आ नेताजी द्वारा शनिचरीकेँ कनही मोदियानि लग लोक-लाजक द्वारे राखि पटना जाएब, नेताजीक मृत्यु आ शनिचरी आ कीर्तिमुखक विवाहक वर्णन फेरसँ खिस्साकेँ समेटि लैत अछि। तकर बाद चमेली रानिक वर्णन अबैत छथि जे बरौनी रिफाइनरीक स्कूलमे बोर्डिंगमे पढ़ैत छथि आ एहि कनही मोदियानिक बेटी छथि। कनही मोदियानिक मृत्युक समय चमेली रानी दसमाक परीक्षा पास कऽ लेने छथि। भूखन सिंह चमेली रानीक धर्म पिता छथि। डकैतीक विवरणक संग उपन्यासक पहिल भाग खतम भऽ जाइत अछि।

दोसर भागमे विधायकजीक पाइ आकि खजाना लुटबाक विवरण, जे कि पूर्व नियोजित छल, एहि तरहेँ देखाओल गेल अछि जेना ई विधायक नांगटनाथ द्वारा एकटा आधुनिक बालापर कएल बलात्कारक परिणामक फल रहए। आब ई नांगटनाथ रहथि मुख्यमंत्री गुलाब मिसिरक खबास जे राजनीतिक दाँवपेंचमे विधायक बनि गेलाह। २००८ ई.क अरविन्द अडिगक बुकर पुरस्कारसँ सम्मानित अंग्रेजी उपन्यास “द ह्वाइट टाइगर”क बलराम हलवाइक चरित्र जे चाहक दोकानपर काज करैत दिल्लीमे एकटा धनिकक ड्राइवर बनि फेर ओकरा मारि स्वयं धनिक बनि जाइत अछि, सँ बेश मिलैत अछि आ चारि बरख पूर्व लेख एहि चरित्रक निर्माण कऽ चुकल छथि। फेर के.जी.बी. एजेन्ट भाटाजीक आगमन होइत अछि जे उपन्यासक दोसर खण्ड “माहुर” धरि अपन उपस्थिति बेश प्रभावी रूपेँ रखबामे सफल होइत छथि।

उपन्यासक तेसर भागमे अहमदुल्ला खाँक अभियान सेहो बेश रमनगर अछि आ वर्तमान राजनीतिक सभ कुरूपताकेँ समेटने अछि।

उपन्यासक चारिम भाग गुलाब मिसिरक खेरहा कहैत अछि आ फेरसँ अरविन्द अडिगक बलराम हलवाइकेँ मोन पाड़ैत अछि। भुखन सिंहक संगी पन्नाकेँ गुलाब मिसिर बजबैत अछि आ ओकरा भुखन सिंहक नांगटनाथ आ अहमदुल्ला अभियानक विषयमे कहैत अछि। संगहि ओकरा मारबाक लेल कहैत अछि से ओ मना कऽ दैत छैक। मुदा गुलाब मिसिर भुखन सिंहकेँ छलसँ मरबा दैत अछि।

पाँचम भागमे भुखन सिंहक ट्रस्टक चरचा अछि, चमेली रानी अपन अड्डा छोड़ि बैद्यनाथ धाम चलि जाइत छथि। आब चमेली रानीक राजनीतिक महत्वाकांक्षा सोझाँ अबैत अछि। स्टिंग ऑपरेशन होइत छथि आ गुलाब मिसिर घेरा जाइत छथि।

उपन्यासक छठम भाग मुख्यमंत्रीक निपत्ता रहलाक उपरान्तो मात्र फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाओल जएबाक चरचा होएबाक अछि जे कोलिशन पोलिटिक्सक विवशतापर टिप्पणी अछि।

उपन्यासक दोसर खण्ड “माहुर”क पहिल भाग सेहो घुरियाइत-घुरियाइत चमेली रानीक पार्टीक संगठनक चारू कात आबि जाइत अछि। स्त्रीपर अत्याचार, बाल-विधवा आ वैश्यावृत्तिमे ठेलबाक संगठन सभकेँ लेखक अपन टिप्पणी लेल चुनैत छथि।

माहुरक दोसर भागमे गुलाब मिसिरक राजधानी पदार्पणक चरचा अछि। चमेली रानी द्वारा अपन अभियानक समर्थनमे नक्सली नेताक अड्डापर जएबाक आ एहि बहन्ने समस्त आन्दोलनपर लेखकीय दृष्टिकोण, संगहि बोनक आ आदिवासी लोकनिक सचित्र-जीवन्त विवरण लेखकीय कौशलक प्रतीक अछि। चमेली रानी लग फेर रहस्योद्घाटन भेल जे हुनकर माए कनही मोदियाइन बड्ड पैघ घरक छथि आ हुनकर संग पटेल द्वारा अत्याचार कएल गेल, चमेली रानीक पिताक हत्या कऽ देल गेल आ बेचारी माए अपन जिनगी कनही मोदियाइन बनि निर्वाह कएलन्हि। ई सभ गप उपन्यासमे रोचकता आनि दैत अछि।

माहुरक तेसर भाग फेरसँ पचकौड़ी मियाँ, गुलाब मिसिर, आइ.एस.आइ. आ के.जी.बी.क षडयन्त्रक बीच रहस्य आ रोमांच उत्पन्न करैत अछि।

माहुरक चारिम भाग चमेली रानी द्वारा अपन माए-बापक संग कएल गेल अत्याचारक बदला लेबाक वर्णन दैत अछि, कैक हजार करोड़क सम्पत्ति अएलासँ चमेली रानी सम्पन्न भऽ गेलीह।

माहुरक पाँचम भाग राजनैतिक दाँव-पेंच आ चमेली रानीक दलक विजयसँ खतम होइत अछि।

विवेचन: उपन्यास विधाक बुर्जुआ आरम्भक कारण सर्वांतीजक “डॉन क्विक्जोट”, जे सत्रहम शताब्दीक प्रारम्भमे आबि गेल रहए, केर अछैत उपन्यास विधा उन्नैसम शताब्दीक आगमनसँ किछु समय पूर्व गम्भीर स्वरूप प्राप्त कऽ सकल। उपन्यासमे वाद-विवाद-सम्वादसँ उत्पन्न होइत अछि निबन्ध, युवक-युवती चरित्र अनैत अछि प्रेमाख्यान, लोक आ भूगोल दैत अछि वर्णन इतिहासक, नीक- खराप चरित्रक कथा सोझाँ अबैत अछि। कखनो पाठककेँ ई हँसबैत अछि, कखनो ओकरा उपदेश दैत अछि। मार्क्सवाद उपन्यासक सामाजिक यथार्थक ओकालति करैत अछि। फ्रायड सभ मनुक्खकेँ रहस्यमयी मानैत छथि। ओ साहित्यिक कृतिकेँ साहित्यकारक विश्लेषण लेल चुनैत छथि तँ नव फ्रायडवाद जैविकक बदला सांस्कृतिक तत्वक प्रधानतापर जोर दैत देखबामे अबैत छथि। नव-समीक्षावाद कृतिक विस्तृत विवरणपर आधारित अछि।

जीवनानुभव सेहो एक पक्षक होइत अछि आ दबाएल इच्छाक तृप्तिक लेल लेखक एकटा संसारक रचना कएलन्हि जाहिमे पाठक यथार्थ आ काल्पनिकताक बीचक आड़ि-धूरपर चलैत अछि।

नचिकेता:नो एण्ट्री : मा प्रविश

 विवेचन: भारत आऽ पाश्चात्य नाट्य सिद्धांतक तुलनात्मक अध्ययनसँ ई ज्ञात होइत अछि मानवक चिन्तन भौगोलिक दूरीकक अछैत कतेक समानता लेने रहैत अछि। भारतीय नाट्यशास्त्र मुख्यतः भरतक “नाट्यशास्त्र” आऽ धनंजयक दशरूपकपर आधारित अछि। पाश्चात्य नाट्यशास्त्रक प्रामाणिक ग्रंथ अछि अरस्तूक “काव्यशास्त्र”।

भरत नाट्यकेँ “कृतानुसार” “भावानुकार” कहैत छथि, धनंजय अवस्थाक अनुकृतिकेँ नाट्य कहैत छथि। भारतीय साहित्यशास्त्रमे अनुकरण नट कर्म अछि, कवि कर्म नहि। पश्चिममे अनुकरण कर्म थिक कवि कर्म, नटक कतहु चरचा नहि अछि।

अरस्तू नाटकमे कथानकपर विशेष बल दैत छथि। ट्रेजेडीमे कथानक केर संग चरित्र-चित्रण, पद-रचना, विचार तत्व, दृश्य विधान आऽ गीत रहैत अछि। भरत कहैत छथि जे नायकसँ संबंधित कथावस्तु आधिकारिक आऽ आधिकारिक कथावस्तुकेँ सहायता पहुँचाबएबला कथा प्रासंगिक कहल जाएत। मुदा सभ नाटकमे प्रासंगिक कथावस्तु होए से आवश्यक नहि, नो एण्ट्री: मा प्रविश मे नहि तँ कोनो तेहन आधिकारिक कथावस्तु अछि आऽ नहिए कोनो प्रासांगिक, कारण एहिमे नायक कोनो सर्वमान्य नायक नहि अछि। जे बजारी उच्क्काकेँ कॉलर पकड़ैत छथि से कनेक कालक बाद गौण पड़ि जाइत छथि। जाहि उच्क्काक सोझाँ चोर सकदम रहैत अछि से किछु कालक बाद, किछु नव नहि होइछ केर दर्शनपर गप करैत सोझाँ अबैत छथि। जे यमराज सभकेँ थर्रेने छथि से स्वयं निभाक सोझाँमे अपन तेज, मध्यम होइत देखैत छथि। भिखमंगनी हुनका दैवी स्वरूप उतारने देखैत हँसैत छथि तँ रमणी मोहन आऽ निभा सेहो हुनका आऽ चित्रगुप्तकेँ अन्तमे अपशब्द कहैत छथि। वामपंथीक आऽ अभिनेताक सएह हाल छन्हि। कोनो पात्र कमजोर नहि छथि आऽ रिबाउन्ड करैत छथि।

कथा इतिवृत्तिक दृष्टिसँ प्रख्यात, उत्पाद्य आऽ मिश्र तीन प्रकारक होइत अछि। प्रख्यात कथा इतिहास पुराणसँ लेल जाइत अछि आऽ उत्पाद्य कल्पित होइत अछि। मिश्रमे दुनूक मेल होइत छथि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे मिश्र इतिवृत्तिक होएबाक कोनो टा गुंजाइश तखने खतम भए जाइत अछि जखन चित्रगुप्त आऽ यमराज अपन नकली भेष उतारैत छथि आऽ भिखमंगनीक हँसलापर भृंगी कहैत छथि जे ई भिखमंगनी सेहो हमरे सभ जेकाँ कलाकार छथि! मात्र यमराज आऽ चित्रगुप्त नामसँ कथा इतिहास-पुराण सम्बद्ध नहि अछि आऽ इतिवृत्ति पूर्णतः उत्पाद्य अछि। अरस्तू कथानककेँ सरल आऽ जटिल दू प्रकारक मानैत छथि। ताहि हिसाबसँ नो एण्ट्री: मा प्रविश मे आकस्मिक घटना आदि जाहि सरलताक संग फ्लोमे अबैत अछि, से ई नाटक सरल कथानक आधारित कहल जाएत। फेर अरस्तू इतिवृत्तकेँ दन्तकथा, कल्पना आऽ इतिहास एहि तीन प्रकारसँ सम्बन्धित मनैत छथि। नो एण्ट्री: मा प्रविश केँ काल्पनिकमूलक श्रेणीमे एहि हिसाबसँ राखल जाएत। अरस्तूक ट्रेजेडीक चरित्र, य़शस्वी आऽ कुलीन छथि- सत् असत् केर मिश्रण। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे जे चरित्र सभ छथि ताहिमे सभ चरित्रमे सत् असत् केर मिश्रण अछि। निभा उच्चवंशीय छथि मुदा रमणी मोहन जे बलात्कारक बादक पिटाई केर बाद मृत भेल छथि हुनकासँ हिलि-मिलि जाइत छथि। भिखमंगनी मिथिला चित्रकार अनसूया छथि। दुनू भद्रपुरुष बजारी आऽ चारू सैनिक एहि प्रकारेँ बिन कलुषताक सोझाँ अबैत छथि। भरत नृत्य संगीतक प्रेमीकेँ धीरललित, शान्त प्रकृतिकेँ धीरप्रशान्त, क्षत्रिय प्रवृत्तिकेँ धीरोदत्त आऽ ईर्ष्यालूकेँ धीरोद्धत्त कहैत छथि। बजारी आऽ दुनू भद्रपुरुष संगीतक बेश प्रेमी छथि तँ रमणी मोहन प्रेमी-प्रेमिकाकेँ देखि कए ईर्ष्यालू, सैनिक सभ शान्त छथि क्षत्रियोचत गुण सेहो छन्हि से धीरोदत्त आऽ धीरप्रशान्त दुनू छथि। मुदा नो एण्ट्री: मा प्रविश मे एहि प्रकारक विभाजन सम्भव नहि अछि।

भारतीय सिद्धांत कार्यक आरम्भ, प्रयत्न, प्राप्त्याशा, नियताप्ति आऽ फलागम धरिक पाँच टा अवस्थाक वर्णन करैत छथि। प्राप्त्याशामे फल प्राप्तिक प्रति निराशा अबैत अछि तँ नियताप्तिमे फल प्राप्तिक आशा घुरि अबैत अछि। पाश्चात्य सिद्धांत आरम्भ, कार्य-विकास, चरम घटना, निगति आऽ अन्तिम फल। प्रथम तीन अवस्थामे उलझन अबैत अछि, अन्तिम दू मे सुलझन।

कार्यावस्थाक पंच विभाजन- बीया, बिन्दु, पताका, प्रकरी आऽ कार्य अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे बीया अछि एकटा द्वन्द मृत्युक बादक लोकक, बीमा एजेन्ट एतए बिनु मृत्युक पहुँचि जाइत छथि। यमराज आऽ चित्रगुप्त मेकप आर्टिस्ट निकलैत छथि। विभिन्न बिन्दु द्वारा एकटा चरित्र ऊपर नीचाँ होइत रहैत अछि। पताका आऽ प्रकरी अवान्तर कथामे होइत अछि से नो एण्ट्री: मा प्रविश मे नहि अछि। बीआक विकसित रूप कार्य अछि मुदा नो एण्ट्री: मा प्रविश मे ओऽ धरणापर खतम भए जाइत अछि! अरस्तू एकरा बीआ, मध्य आऽ अवसान कहैत छथि। आब आऊ सन्धिपर, मुख-सन्धि भेल बीज आऽ आरम्भकेँ जोड़एबला, प्रतिमुख-सन्धि भेल बिन्दु आऽ प्रयत्नकेँ जोड़एबला, गर्भसन्धि भेल पताका आऽ प्राप्त्याशाकेँ जोड़एबला, विमर्श सन्धि भेल प्रकरी आऽ नियताप्तिकेँ जोड़एबला आऽ निर्वहण सन्धि भेल फलागम आऽ कार्यकेँ जोड़एबला। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे मुख/ प्रतिमुख आऽ निर्वहण सन्धि मात्र अछि, शेष दू टा सन्धि नहि अछि।

पाश्चात्य सिद्धांत स्थान, समय आऽ कार्यक केन्द्र तकैत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे स्थान एकहि अछि, समय लगातार आऽ कार्य अछि द्वारक भीतर पैसबाक आकांक्षा। दू घण्टाक नाटकमे दुइये घण्टाक घटनाक्रम वर्णित अछि नो एण्ट्री: मा प्रविश मे कार्य सेहो एकेटा अछि। अभिनवगुप्त सेहो कहैत छथि जे एक अंकमे एक दिनक कार्यसँ बेशीक समावेश नहि होए आऽ दू अंकमे एक वर्षसँ बेशीक घटनाक समावेश नहि होय। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे कल्लोलक विभाजन घटनाक निर्दिष्ट समयमे भेल कार्यक आऽ नव कार्यारम्भमे भेल विलम्बक कारण आनल गेल अछि। मुदा एहि त्रिकक विरोध ड्राइडन कएने छलाह आऽ शेक्सपिअरक नाटकक स्वच्छन्दताक ओऽ समर्थन कएलन्हि। मुदा नो एण्ट्री: मा प्रविश मे एहि तरहक कोनो समस्या नहि अबैत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे आपसी गपशपमे- जकरा फ्लैशबैक सेहो कहि सकैत छी- ककर मृत्यु कोना भेल से नीक जेकाँ दर्शित कएल गेल अछि।

भारतमे नाटकक दृश्यत्वक समर्थन कएल गेल मुदा अरस्तू आऽ प्लेटो एकर विरोध कएलन्हि। मुदा १६म शताब्दीमे लोडोविको कैस्टेलवेट्रो दृश्यत्वक समर्थन कएलन्हि। डिटेटार्ट सेहो दृश्यत्वक समर्थन कएलन्हि तँ ड्राइडज नाटकक पठनीयताक समर्थन कएलन्हि। देसियर पठनीयता आऽ दृश्यत्व दुनूक समर्थन कएलन्हि। अभिनवगुप्त सेहो कहने छलाह जे पूर्ण रसास्वाद अभिनीत भेला उत्तर भेटैत अछि मुदा पठनसँ सेहो रसास्वाद भेटैत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे पहिल कल्लोलक प्रारम्भमे ई स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे एतए दृश्यत्वकेँ प्रधानता देल गेल अछि। पश्चिमी रंगमंच नाट्यविधान वास्तविक अछि मुदा भारतीय रंगमंचपर सांकेतिक। जेना अभिज्ञानशाकुंतलम् मे कालिदास कहैत छथि- इति शरसंधानं नाटयति। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे भारतीय विधानकेँ अंगीकृत कएल गेल- जेना मृत्यु प्राप्त सभ गोटे द्वारा स्वर्ग प्रवेश द्वारक अदृश्य देबाड़क गपशप आऽ अभिनय कौशल द्वारा स्पष्टता। अंकिया नाटमे सेहो प्रदर्शन तत्वक प्रधानता छल। कीर्तनियाँ एक तरहेँ संगीतक छल आऽ एतहु अभिनय तत्वक प्रधानता छल। अंकीया नाटक प्रारम्भ मृदंग वादनसँ होइत छल। नो एण्ट्री: मा प्रविश मैथिलीक परम्परासँ अपनाकेँ जोड़ने अछि मुदा संगहि इतिहास, पुराण आऽ समकालीन जीवनचक्रकेँ देखबाक एकटा नव दृष्टिकोण लए आएल अछि, सोचबाऽ लए एकटा नव अंतर्दृष्टि दैत अछि।

ज्योतिरीश्वरक धूर्तसमागम, विद्यापतिक गोरक्षविजय, कीर्तनिञा नाटक, अंकीयानाट, मुंशी रघुनन्दन दासक मिथिला नाटक, जीवन झाक सुन्दर संयोग, ईशनाथ झाक चीनीक लड्डू, गोविन्द झाक बसात, मणिपद्मक तेसर कनियाँ, नचिकेताजीक “नायकक नाम जीवन, एक छल राजा”, श्रीशजीक पुरुषार्थ, सुधांशु शेखर चौधरीक भफाइत चाहक जिनगी, महेन्द्र मलंगियाक काठक लोक, राम भरोस कापड़ि भ्रमरक महिषासुर मुर्दाबाद, गंगेश गुंजनक बुधिबधिया केर परम्पराकेँ आगाँ बढ़बैत नचिकेताजीक नो एण्ट्री: मा प्रविश तार्किकता आऽ आधुनिकताक वस्तुनिष्टताकेँ ठाम-ठाम नकारैत अछि। वामपंथीकेँ यमराज ईहो कहैत छथिन्ह, जे वामपंथी देखि रहल छथि से सत्य नहि सपनो भए सकैत अछि। विज्ञानक ज्ञानक सम्पूर्णतापर टीका अछि ई नाटक। सत्य-असत्य, सभ अपन-अपन दृष्टिकोणसँ तकर वर्णन करैत छथि। चोरक अपन तर्क छन्हि आऽ वामपंथी सेहो कहैत छथि कि चोर नेता नहि बनि सकैत छथि मुदा नेताक चोरिपर उतरि अएलासँ चोरक वृति मारल जाए बला छन्हि। नाटकमे आत्म-केन्द्रित हास्यपूर्ण आऽ नीक-खराबक भावना रहि-रहि खतम होइत रहैत अछि। यमराज आऽ चित्रगुप्त तक मुखौटामे रहि जीबि रहल छथि। उत्तर आधुनिकताक ई सभ लक्षणक संग नो एण्ट्री: मा प्रविश मे एके गोटेक कैक तरहक चरित्र निकलि बाहर अबैत अछि, जेना उच्चवंशीय महिलाक। कोनो घटनाक सम्पूर्ण अर्थ नहि लागि पबैत अछि, सत्य कखन असत्य भए जएत तकर कोनो ठेकान नहि। उत्तर आधुनिकताक सतही चिन्तन आऽ चरित्र सभक नो एण्ट्री: मा प्रविश मे भरमार लागल अछि, आशावादिता तँ नहिए अछि मुदा निराशावादिता सेहो नहि अछि। यदि अछि तँ से अछि बतहपनी, कोनो चीज एक तरहेँ नहि कैक तरहेँ सोचए बला- विद्यमान छथि। कारण, नियन्त्रण आऽ योजनाक उत्तर परिणामपर विश्वास नहि वरन संयोगक उत्तर परिणामपर बेशी विश्वास दर्शाओल गेल अछि। गणतांत्रिक आऽ नारीवादी दृष्टिकोण आऽ लाल झंडा आदिक विचारधाराक संगे प्रतीकक रूपमे हास-परिहास सोझाँ अबैत अछि।

एहि तरहेँ नो एण्ट्री: मा प्रविश मे उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण दर्शित होइत अछि, एतए पाठक कथानकक मध्य उठाओल विभिन्न समस्यासँ अपनाकेँ परिचित पबैत छथि। जे द्वन्द नाटकक अंतमे दर्शित भेल से उत्तर-आधुनिक युगक पाठककेँ आश्चर्यित नहि करैत छन्हि, किएक तँ ओऽ दैनिक जीवनमे एहि तरहक द्वन्दक नित्य सामना करैत छथि।

ई नाटक मैथिली नाटक लेखनकेँ एकटा नव दिशामे लए जाएत आऽ आन विधामे सेहो नूतनता आनत से आशा कए सकैत छी।

कथा: पहरराति

 सुनू। प्रयोगशालाक स्विच ऑफ कए दियौक। चारि डाइमेन्शनक वातावरणमे अपन सभटा द्वि आऽ त्रि डाइमेन्शनक वस्तुक प्रयोग करबाक लेल धौम्य प्रयोगशालामे प्रयोग शुरू करए बला छथि। हुनकर संगी-साथी सभ उत्सुकतासँ सभटा देखि रहल छथि।

दू डाइमेन्शनमे जीबए बला जीव तीन डाइमेन्शनमे जीबए बला मनुक्खक सभ कार्यकेँ देखि तऽ नहि सकैत छथि, मुदा ओकर सभटा परिणामक अनुभव करैत छथि। अपन एकटा जीवन-शैलीक ओऽ निर्माण कएने छथि। ओहि परिणामसँ लड़बाक व्यवस्था कएने छथि। तहिना हमरा लोकनि सेहो चारि डाइमेन्शनमे रहए बला कोनो सम्भावित जीवक, वा ई कहू जे तीनसँ बेशी डाइमेन्शनमे जिनहार जीवक हस्तक्षेपकेँ चिन्हबाक प्रयास करब। धौम्य कहैत रहलाह।

एक आऽ दू डाइमेन्शनमे रहनहारक दू गोट प्रयोगशालाक सफलताक बाद धौम्यक ई तेसर प्रयोग छल।

एक विमीय जीव जेना एकटा बिन्दु। बच्चामे ओऽ पढ़ैत छलाह जे रेखा दू टा बिन्दुकेँ जोड़ैत छैक। नञि तऽ बिन्दुमे कोनो चौड़ाइ देखना जाइत अछि आऽ नहिये रेखामे। रेखा नमगर रहैत अछि, मुदा बिन्दुमे तँ चौड़ाइक संग लम्बाइ सेहो नहि रहैत छैक। एक विमीय विश्वमे मात्र अगाँ आऽ पाछाँ रहैत अछि। नञि अछि वान दहिनक बोध नहिये ऊपर नीचाँक। मात्र सरल रेखा, वक्रता कनियो नहि। आब ई नहि बुझि लिअ जे अहाँ जतय बैसल छी, ओतए एकटा रेखा विचरण करए लागत। वरण ई बुझू जे ओऽ रेखा मात्र अछि, नहि कोनो आन बहिः।

द्वि बीमीय ब्रह्माण्ड भेल जतए आगू पाछूक विहाय वाम दहिन सेहो अछि, मुदा ऊपर आऽ नीछाँ एतए नहि अछि। ई बुझू जे अहाँक सोझाँ राखल सितलपाटीक सदृश ई होयत, जाहिमे चौड़ाइ विद्यमान नहि अछि।

मुदा श्रीमान् ई चलैत अछि कोना। गप कोना करत एक दोसरकेँ संदेश कोना देत

आऊ। पहिने एक विमीय ब्रह्माण्डक अवलोकन करैत छी

धौम्य एक विमीय प्रयोगशालाक लग जाइत छथि। ओतए बिन्दु आऽ बिन्दुक सम्मिलन स्वरूप बनल रेखा सभ देखबामे अबैत अछि। ई जीब्व सभ अछि। एक विमीय ब्रह्माण्डक जीव, जे एहि तथ्यसँ अनिभिज्ञ अछि जे तीन विमीय कोनो जीव ओकरा सभकेँ देखि रहल छैक।

देखू। ई सभ जीव एक दोसराकेँ पार नहि कए सकैत अछि। आगू बढ़त तँ तवत धरि जाऽ धरि कोनो बिन्दु वा रेखासँ टक्कर नहि भए जएतैक। आऽ पाछाँ हटत तावत धरि यावत फेर कोनो जीवसँ भेँट नहि होयतैक। एक दोसराकेँ संदेश सेहो मात्र एकहि पँक्त्तिमे दए सकत, कारण पंक्त्तिक बाहर किछु नहि छैक। ओकर ब्रह्माण्ड एकहि पंक्त्तिमे समाप्त भए जाइत अछि।

आब चलू द्वि बीमीय प्रयोगशालामे

सभ क्यो पाछाँ-पाछाँ जाइत छथि।

एतय किछु रमण चमन अछि। पहिल प्रयोगशाला तँ दू तहसँ जाँतल छल, दुनू दिशिसँ आऽ ऊपरसँ सेहो। मात्र लम्बाइ अनन्त धरि जाइत छल। मुदा एतय ऊपर आऽ नीचाँक सतह जाँतल अछि। ई आगाँ पाछाँ आऽ वाम दहिन दुनू दिशि अनन्त ढरि जा रहल अछि। ताहि हेतु हम दुनू प्रयोशालाकेँ पृथ्वीक ऊपर स्वतंत्र नभमे बनओने छी। एतुक्का जीवकेँ देखू। सीतलपाटी पर किछुओ बना दियौक। जेना छोट बच्चा वा आधुनिक चित्रकार बनबैत छथि। एतय ओऽ सभ प्रकार भेटि जायत। मुदा ऊँचाइक ज्ञान एतए नहि अछि। एक दोसरकेँ एक बेरमे मात्र रेखाक रूपमे देखैत अछि ई सभ। दोसर कोणसँ दोसर रेखा आऽ तखन स्वरूपक ज्ञान करैत जाइत अछि। लम्बाइ आऽ चौड़ाइ सभ कोणसँ बदलत। मुदा वृत्ताकार जीव सेहो होइत अछि। जेना देखू ओऽ जीव वाम कातमे। एक दोसराकेँ संदेश ओकरा लग जाऽ कए देल जाइत अछि। पैघ समूहमे संदेश प्रसारित होयबामे ढ़ेर समय लागि जाइत अछि

श्रीमान, की ई संभव अछि, जेना हमरा सभक सोझाँ रहलो उत्तर ओऽ सभ हमरा लोकनिक अस्तित्वसँ अनभिज्ञ अछि तहिना हमरा सभ सेहो कोनो चारि आऽ बेशी विमीय जीवक अस्तित्वसँ अनभिज्ञ होञि

हँ तकरे चर्चा आऽ प्रयोग करबाक हेतु हमरा सभ एतए एकत्र भेल छी। अहाँने सँ चारि गोटे हमरा संग एहि नव कार्यक हेतु आबि सकैत छी। ई योजना कनेक कठिनाह छैक। कतेक साल धरि ई योजना चलत आऽ परिणाम कहिया जाऽ कए भेटत, तकर कोनो सीमा निर्धारण नहि अछि

पाँच टा विद्यार्थी श्वेतकेतु, अपाला, सत्यकाम, रैक्व आऽ घोषा एहि कार्यक हेतु सहर्ष तैयार भेलाह। धौम्य पाँचू गोटेकेँ अपन योजनामे सम्मिलित कए लेलन्हि।

चारि बीमीय विश्वमे तीन बीमीय विश्वसँ किछु अन्तर अछि। तीन बीमीय विश्व भेल तीन टा लम्बाइ, चौड़ाइ आऽ गहराइ मुदा एहिमे समयक एकटा बीम सेहो सम्मिलित अछि। तँ चारि बीमीय विश्वमे आकि पाँच बीमीय विश्वमे समयक एकसँ बेशी बीमक सम्भावना पर सेहो विचार कएल जायत। मुदा पहिने चारि बीमीय विश्व पर हमरा सभ शोध आगाँ बढ़ायब एहिमे मूलतः समयक एकटा बीम सेहो रहत आऽ ताहिसँ बीमक संख्या पाँच भए जायत। समयकेँ मिलाकए चारि बीमक विश्वमे हमरा सभ जीबि रहल छी। जेना वर्ण अन्धतासँ ग्रसित लोककेँ लाल आऽ हरियरक अन्तर नहि बुझि पड़ैत छैक, ओहिना हमरा सभ एकटा बेशी बीमक विश्वक कल्पना कए सकैत छी, अप्रत्यक्ष अनुभव सेहो कए सकैत छी। धौम्य बजलाह।

सभा समाप्त भेल आऽ सभ क्यो अपन-अपन प्रकोष्ठमे चलि गेलाह। सैद्धांतिक शोध आऽ तकर बाद ओकर प्रायोगिक प्रयोगमे सभ गोटे लागि गेलाह। त्रिभुज धरातल पर खेंचि कए एक सय अस्सी अंशक कोण जोड़ि कए बनएबाक अतिरिक्त्त पृथ्वीकार आकृतिमे खेंचल गेल त्रिभुज जाहि मे प्रत्येक रेखा एक दोसरासँ नब्बे अंशक कोण पर रहैत अछि, मुदा रेखा सोझ नहि टेढ़ रहैत अछि। ओहिना समय आऽ स्थानकेँ तेढ भेला पर एहन संभव भए सकैत अछि जे हमरा सभ प्रकाशक गतिसँ ओहि मार्गे जाइ आऽ पुनः घुरि आबी। प्रकाश सूर्यक लगसँ जाइत अछि तँ ओकर रस्ता कनेक बदलि जाइत छैक।

श्वेतकेतु आऽ रैक्व एकटा सिद्धान्त देलन्हि- जेना कठफोरबा काठमे वृक्षमे खोह बनबैत अछि, तहिना एकटा समय आऽ स्थानकेँ जोड़एबला खोहक निर्माण शुरू भए गेल। अपाला एकटा ब्रह्माण्डक डोरीक निर्माण कएलन्हि, जकरा बान्हि कए प्रकाश वा ओहूसँ बेशी गतिसँ उड़बाक सम्भावना छल। सत्यकाम एकटा एहन सिद्धान्तक सम्भावना पर कार्य शुरू कएने छलाह, जकर माध्यमसँ तीन टा स्थानिक आऽ एकटा समयक बीमक अतिरिक्त्त कताक आर बीम छल जे बड़ लघु छल, टेढ छल आऽ एहि तरहेँ वर्त्तमान विश्व लगभग दस बीमीय छल। घोषा स्थान समयक माध्यमसँ भूतकालमे पहुँचबासँ पूर्व देशक विधिमे ई परिवर्त्तन करबाक हेतु कहलन्हि जाहिसँ कोनो वैज्ञानिक भूतकालमे पहुँचि कए अपन वा अपन शत्रुकेँ जन्मसँ पूर्व नहि मारि दए। घोषा विश्वक निर्माणमे भगवानक योगदानक चरचा करैत रहैत छलीह। जौँ विश्वक निर्माण भगवान कएलन्हि, एकटा विस्फोट द्वारा, आऽ एकरा सापेक्षता आऽ अनिश्चितताक सिद्धांतक अन्तर्गत छोड़ि देलन्हि बढ़बाक लेल, तँ फेर समयक चाभी तँ हुनके हाथमे छन्हि। जखन ओऽ चाहताह फेरसँ सभटा शुरू भए जायत। जौँ से नहि अछि, तखन समय स्थानक कोनो सीमा, कोनो तट नहि अछि, तखन तँ ई ब्रह्माण्ड अपने सभ किछु अछि, विश्वदेव, तखन भगवानक कोन स्थान? घोषा सोचैत रहलीह।

आब धौम्यक लेल समय आबि गेल छल। अपन पाँचू विद्यार्थीक सभ सिद्धांतकेँ ओऽ प्रयोगमे बदलि देलन्हि। आऽ आब समय आबि गेल। पहरराति।

पुष्पक विमान तैयार भेल स्थान-समयक खोहसँ चलबाक लेल। ब्रह्माण्डीय डोरी बान्हि देल गेल पुष्पक पर। धौम्य सभसँ विदा लेलन्हि। प्रकाशक गतिसँ चलल विमान आऽ खोहमे स्थान आऽ समयकेँ टेढ़ करैत आगाँ बढ़ि गेल। ब्रह्माण्दक केन्द्रमे पहुँचि गेलाह धौम्य। पहरराति बीतल छल। आगाँ कारी गह्वर सभ एहि समय आऽ स्थानकेँ टेढ़ कएल खोहमे चलए बला पुष्पकक सोझाँ अपन सभटा भेद राखि देलक। भोरुका पहरक पहिने धौम्यक विमान पुनः पृथ्वी पर आबि गेल। मुदा एतए आबि हुनका विश्व किछु बदलल सन लगलन्हि। श्वेतकेतु, अपाला, सत्यकाम, रैक्व आऽ घोषा क्यो नहि छलाह ओतए। विमानपट्टी सेहो बदलल सन। विश्वमे समय-स्थानक पट्टी सभ भरल पड़ल छल।

यौ। समय बताऊ कतेक भेल अछि

कोन समय। सोझ बला वा स्थान-समय विस्थापन बला। सोझ बला समय अछि, सन् ३१०० मास...

ओऽ बजिते रहि गेल छल मुदा धौम्य सोचि रहल छलाह जे स्थान-समय विस्थापनक पहररातिमे हजार साल व्यतीत भए गेल। ककरा बतओताह ओऽ अपन ताकल रहस्य। आकि एतुक्का लोक ओऽ रहस्य ताकि कए निश्चिन्त तँ नहि भए गेल अछि?

आर्या

विवाहक उपरान्त ढ़ेरी-ढ़ाकी लोक हमरासँ भेँट करबाक हेतु सासुरमे आबि रहल छलाह। ताहिमे छलि एकटा नवम् कक्षाक छात्रा आर्या आओकर पितामही आमाय। ओमायक संग नहि आबि असगरे आयल छलीह। खूब कारी, दुबर-पातर, आवश्यकतासँ बेशी अनुशासित आशिष्ट आनापि-जोखि कय बजनिहारि। हमरासँ सभ गपमे उलटा। हमर कनियाँ हुनकासँ हमर परिचय करओलन्हि, ओकर प्रशंसा सेहो कएलन्हि। किछु कालक बाद जखन ओकर पितामही आमाय हमरासँ भेँट करबाक हेतु अयलीह तँ हमरा अनुभव भेल, जे हुनकर पितामहीक तँ लेहाज राखल गेल छल मुदा हुनकर मायक अवहेलना सन हमर कनियाँ आसासु द्वारा भेल छल। गप्पो करबामे ओनीक छलीह आजाइत-जाइत कहि गेलीह, जे हमरा सभ अहाँक ससुरक किरायादार छी, उपरका महला पर रहैत छी। से भीड़-भाड़ कम भेला पर अवश्य आऊ। ई गप्प जाइत-जाइत हमर सासु प्रायः सुनि लेलन्हि, से हमर पत्नीकेँ अस्थिरेसँ मुदा आज्ञार्थक रूपेँ कहलन्हि, जे ऊपर जयबाक कोनो जरूरी नहि छैक। हम पत्नीसँ पुछलियन्हि, जे बेचारी एतेक आग्रहसँ बजओलन्हि अछि। पत्नी कहलथि जे सुनलियैक नहि, माँ मना कएलन्हि अछि। कारण पुछला पर गप अन्ठा देलन्हि।

किछु दिनुका बादक घटना छी, अन्हरोखेमे गेटक झमाड़ि कय खुजबाक अबाज भेल। लागल जे क्यो पीबि कय बड़बड़ा रहल अछि। हमरा अतिरिक्त क्यो ओहि अबाज पर ध्यान नहि देलक, अन्ठयबाक स्वांग कएलन्हि। हम बाहर अएलहुँ तँ एकटा अधवयसु झुमैत अबैत दृष्टिगोचर भेलाह। हमरा देखि डोलैत हाथसँ जमायबाबू कहि नमस्कार कएलन्हि। अखन धरि हमरासँ भेँट नहि होयबाक कारण हमर पत्नीकेँ फड़िछओलन्हि आडोलैत ऊपर सीढ़ीक दिशसँ चलि गेलाह। हमर पत्नी हाथ पकड़ि कय हमरा भीतर आनि लेलन्हि आईहो सूचना देलन्हि जे ईएह आर्याक पिता थीक। अनायासहि हमरा माथमे आयल जे रंग जे आर्याक छैक से पिते पर गेल छैक। बादमे हमर सासु ऊपर जाकय भाषण दए अयलीह आएक महिनाक भीतर घर छोड़बाक अल्टीमेटम सेहो आर्याक परिवारकेँ दए देलन्हि। हमर सर कहलथि जे ई दसम अल्टीमेटम छैक, मुदा हमर सासु अडिग छलीह जे किछु भय जाय एहि बेर ओनहि मानतीह। जमाय की भुझताह जे केहन भाड़ादार रखने छी। पहिने ठकिया-फुसिया कय बहटारि लैत छल। पुछला पर पता चलल जे आर्याक पिता डॉक्टर छैक, सेहो होमियोपैथिक, आयुर्वेदिक किंवा भेटनरी नहि वरन् एम. बी.बी.एस.। मुदा लक्षण देखियौक। ओना सासु ईहो गप कहलन्हि जे ई पीने रहबाक उपरान्तो गप्प एकोटा अभद्र नहि बजैत अछि, जेना आन पीनहार सभक संग होइत छैक। मनुक्खो ठीके अछि, मुदा यैह जे एकटा गड़बड़ी छैक से बड्ड भारी।अगला दिन नशा उतरलाक बाद पति-पत्नी दुनू गोटे नीचाँ अएलीह आसासुकेँ कहलन्हि, जे आर्याक बोर्डक बाद ओसभ पटना चलि जयतीह से हुनका सभक खातिर नहि मुदा आर्याक खातिर तावत रहय दिय। घोँघाउजक बाद से मोहलति भेटि जाय गेलन्हि। तकरा बाद हुनकर पत्नीक नजरि हमरासँ मिलल तँ ओकहलन्हि जे अहाँ तँ ऊपर नहिये आयब। आएहि बेर ऊपर अयबाक आग्रहो नहि कएलथि। किछु दिन बीतल आफेर सासुर जयबाक अवसर भेटल। किछु दिनमे पता चलल जे किरायादार बदलि गेल छथि। घरक लोक मात्र एतबे कहलथि जे आर्याक पिताक मृत्यु भगेलन्हि आअनुकम्पाक आधार पर ओकर मायकेँ नौकरी भेटि गेलैक। आब ओसभ क्यो पटनामे रहैत छथि। घरक लोक आगाँ किछु नहि कहलन्हि, मुदा कनियाँक एकटा पितयौत भाय आयल रहथि, से कहलथि जे डॉक्टरी रिपोर्टमे विष खाकय आत्महत्याक वर्णन अछि। फेर आँगा पति-पत्नीक मध्य मचल तुमुलक चर्च भेल। कनियाँ कहइत रहथिन्ह जे ई डॉक्टर बड्ड पिबैत छथि ताहि लेल झगड़ा होइत अछि, तँ डॉक्टर साहब कहथि जे झगड़ाक द्वारे पिबैत छी। अस्तु मृत्युक बाद हुनकर कनियाँक भाव एहन सन छल जेना मुक्ति भेटि गेल होय- एहि बातमे सभ क्यो एक मत रहथि।

फेर दिन बितैत रहल आबादमे फोन पर समाचार भेटल जे आर्या सेहो आत्म हत्या कए लेलक। फेर बहुत रास बात मोनमे घूमि गेल। आर्या भावुक छलि, किछु बेशी तनावमे रहिते छलि। गपकेँ गंभीरतासँ लइत छलि। एकटा सारि रहथि, हुनकर बात सेहो मोन पड़ल। एक गोट युवकक विषयमे आर्या कहैत छलि, जे ओकर संगीकेँ होइत छैक जे ओयुवक ओकरासँ प्रेम करैत अछि। मुदा आर्याक मत छल जे ऊयुवक ओकरासँ नहि वरन् आर्यासँ प्रेम करैत छल। हम सारिकेँ कहने रहियन्हि जे आर्या बच्चा अछि, ओहिना हँसी कएने होयत। मुदा ओकहलन्हि, जे नहि यौ। बड्ड भावुक अछि आर्या। कहैत अछि जे ओहि युवकके प्राप्त करबाक हेतु किछुओ करत। एहि बात पर हम तखन कोनो बेशी ध्यान नहि देने रहियैक। मुदा एहि बातक आब महत्त्व बढ़ि गेल छल। हम फोन दोबारा लगेलहुँ। पता चलल जे ओयुवक कोनो पुरान महारानीक बेटीक बेटा छी। ओकर माता शिक्षिका अछि, बाप मेरीनमे काज करैत अछि। साल-छह मास पर अबैत अछि। आजखन अबैत छल तँ जे मास-पंद्रह दिन रहैत छल से मारि_पीटिमे बिता दैत छल। पूरा मोहल्लामे बदनामी छैक। मायक शील-स्वभाव बड्ड नीक, बोलीसँ फूल-झड़ैत छैक। बापकेँ तँ लोक चिन्हितो नहि छैक।खाली झगड़ाक अबाजे सुनैत अछि लोक। आर्याक संगीकेँ स्कूल बससँ उतरबा काल क्यो तंग कएने छल तँ ओयुवक सभकेँ मारि-पीटि कय भगा देने छल, एकर बाद आर्या एहि शहरसँ दूर भगेल। ओमायकेँ कहैत रहलि जे परीक्षा तक रहय दिय’, मुदा माय विमुक्त भेलाक बाद एको पल पुरान कटु-स्मृतिकेँ देखय-नहि चाहैत छलथिन्ह।हम फोन पर पुछलियन्हि जे ओहि युवकक विवाह आर्याक मृत्युसँ पहिने कतय भेल। तँ सासुरक लोक अचंभित पुछलन्हि, जे ओकर विवाह तँ भेल मुदा अहाँ कोना बुझलहुँ। पता चलल जे सिलीगुड़ी-दिशि कोनो कन्यागत छथि, युवक अपन बाप जेकाँ घर-जमाय बनि रहबाक नियाड़ कएने अछि। एहि शहरक लोककेँ तँ विवाहक हकारो नहि भेटल। हम आर्याकेँ एकटा दृढ़ बालिका बुझैत रही। मुदा ओकर किछुओ कड़य पड़त से करबकेर अर्थ आब जाकय बुझलहुँ। आऽ आत्महत्याक जम्मेदारी ककरा पर अछि। ओऽ जे दारू पिबैत रहए स बाप। आकि ओऽ माय जे बापक संग तंग आबि गेल रहए। ओऽ प्रेमी। हमरा जनैत एकर सभक कारण अछि आर्याक परिवार-सम्बन्धी आऽ परिवारिक दोस-महीम सभ जे एक तरहेँ ओकरा सभकेँ बारि देने रहए। ओऽ समाज जे ओकर परिवारक घटनाक चटखारा लऽ कए चर्च करैत छल, ओऽ घटना ओकर पिताक मृत्युक रहए तखनो, गेट पिटबाक रहए तैयो। बालिका भावुक रहए कोना सहि सकैत, आत्महत्याक नाम दए मृत्युदण्ड देलक समाज।

कविता/poem

१.

देखैत दुन्दभीक तान

*शामिल बाजाक

सुनैत शून्यक दृश्य

प्रकृतिक कैनवासक

हहाइत समुद्रक चित्र

अन्हार खोहक चित्रकलाक पात्रक शब्द

क्यो देखत नहि हमर चित्र एहि अन्हारमे

तँ सुनबो तँ करत पात्रक आकांक्षाक स्वर

सागरक हिलकोरमे जाइत नाहक खेबाह

हिलकोर सुनबाक नहि अवकाश

देखैत अछि स्वरक आरोह अवरोह

हहाइत लहरिक नहि ओर-छोर

आकाशक असीमताक मुदा नहि कोनो अन्त

सागर तँ एक दोसरासँ मिलि करैत अछि

असीमताक मात्र छद्म।

घुमैत गोल पृथ्वीपर,

चक्रपर घुमैत अनन्तक छद्म।

मुदा मनुक्ख ताकि अछि लेने

एहि अनन्तक परिधि

परिधिकेँ नापि अछि लेने मनुक्ख।

ई आकाश छद्मक तँ नहि अछि विस्तार,

एहि अनन्तक सेहो तँ नहि अछि कोनो अन्त?

तावत एकर असीमतापर तँ करहि पड़त विश्वास!

स्वरकेँ देखबाक

चित्रकेँ सुनबाक

सागरकेँ नाँघबाक।

समय-काल-देशक गणनाक।

सोहमे छोड़ि देल देखब

अन्हार खोहक चित्र

सोहमे छोड़ल सुनब

हहाइत सागरक ध्वनि।

देखैत छी स्वर, सुनैत छी चित्र

केहन ई साधक

बनि गेल छथि शामिल बाजाक

दुन्दभी वादक।

 

*राजस्थानमे गाजा-बाजावलाक संग किछु तँ एहेन रहैत छथि जे लए-तालमे बजबैत छथि मुदा बेशी एहन रहैत छथि जे बाजा मुँह लग आनि मात्र बजेबाक अभिनय करैत छथि। हुनका ई निर्देश रहैत छन्हि जे गलतीयोसँ बाजामे फूक नहि मारथि। यैह छथि शामिल बाजा।

2

पक्काक जाठि

 तबैत दुपहरियाक भीत पोखरिक महार,

पस्त गाछ-बृच्छ-केचली सुषुम पानि शिक्त,

जाठि लकड़ीक तँ सभ दैछ पक्काक जाठि ई पहिल,

कजरी जे लागल से पुरातनताक प्रतीक।

दोसर टोलक पोखरि नहि अछि डबरा वैह,

बिन जाठिक ओकर यज्ञोपवीत नहि भेल कारण सएह,

सुनैत छिऐक मालिक ओकर अद्विज छल,

पोखरिक यज्ञोपवीतसँ पूर्वहि प्रयाण कएल।

पाइ-भेने सख भेलन्हि पोखरि खुनाबी,

डबरा चभच्चा खुनेने कतए यश पाबी।

देखू अपन टोलक पक्काक जाठि ई,

कंक्रीट तँ सुनैत छी, पानियेमे रहने होइछ कठोर,

लकड़ीक जाठि नहि जकर जीवन होइछ थोड़।

3

पिताक स्वप्न

पिताक छल आश

झूठ बजनाइ पाप,

गलत काजक सर्वदा त्याग,

सभ होए समृद्ध,

साधारण जीवन उत्तम विचारक बीच।

करैत पालन देखल जे,

बुरबक बुझैत अछि लोक

तँ की बदली? अपन शिक्षाक अर्थ

त्यागि रस्ता नुदा वैह लक्ष्य

जिदियाहवला।

मुदा बजने की बस करैत रहू

सोझाँवलाकेँ बुझए दोयौक,

जे छी हम बुरबक।

जावत बुझत तावत भऽ जएतैक हारि,

पिताक सत्यकेँ झुकैत देखने रही स्थितप्रज्ञतामे

तहिये बुझने रही जे

त्याग नहि कएल होएत

रस्ता जिदियाहवला।

4

यौ शतानन्द पुरहित

अगहन शुक्ल विवाह पंचमी,

विवाहक सभसँ नीक दिन,

पुरहित शतानन्द,

राम सीताक विवाह कएल सम्पन्न,

खररख वाली काकीक विवाह,

सेहो विवाह पंचमीएकेँ भेल,

पुरहित सेहो कोनो पैघे पण्डित रहथि,

सीता दाइ कतेक कष्ट कटलन्हि,

मरबापर चित्रकला लिखल रहए मिथिलाक,

परिछन, नैना-जोगिन सभटा भेल,

ओहिना जेना भेल रहए सीता दाइक विवाहमे।

बाल-विवाह तँ भेले रहन्हि खररख वाली काकीक,

विवाहोक दिन सभसँ नीक,

नैना जोगिन, जोगक गीत,

किछुओ कहाँ बचा सकल,

भऽ गेलीह विधवा।

 कहैत छथि हमर संगी,

जहिया लऽ जाइत छथि ओ भौजीकेँ,

पेंशनक लेल दानापुर कैण्ट,

विधवा भौजीकेँ देखि,

भीतरे-भीतरे कनैत रहैत छथि,

बाबूकेँ कहलन्हि जे विधवा विवाह हेबाक चाही,

तँ मारि-मारिकेँ ओ उठलथि,

नेऊराक राजपूत बाबूसाहेबक ई खानदान,

बड़ काबिल भेलाह ई,

मुदा अछि बुझल हमरो,

कुहरैत रहैत छथि बापो,

मुदा बोझ उठेने छथि समाजक कुरीतिक,

उपाय नहि छनि कोनो दोसरो।

5

निगदति कुसुमपुरेऽभ्यर्चितं ज्ञानम्

चन्द्रयाणक पूर्वापर,
आर्यभटक उद्घोष,
एहि कुसुमपुरमे करैत छी ज्ञानक वर्णन,
नापल पृथ्वी,सूर्य आ चन्द्रक व्यास,
पृथ्वी अचला नहि छथि गतिमान, अछि भू,
भं अछि तरेगण जे अछि अचल,
ग्रहण नहि राहुक ग्रास वरण अछि छाह।
चलू चन्द्रयाणक लेल बधाई,
इसरोक वैज्ञानिक लोकनिकेँ आ माधवन नायरकेँ,
आएल अर्यभट्टक पंद्रह सए साल बादो तँ
ओहि देशवासी लए नहि विलम्बित,
लीलावती पढ़ियो कए जे नहि गानि सकलाह तरेगण
कुसुमपुर नहि तँ श्रीहरिकोटामे ई दिन।
कुसुमपुरमे ज्ञानक वर्णन नहि तँ,
कमसँ कम कसुमपुरसँ दए तँ दियौक बधाइ,
चन्द्रमाकेँ छूबाक लेल थारीमे पानि नहि राखब आब,
आर्यभटस्त्विह निगदति कुसुमपुरेऽभ्यर्चितं ज्ञानम्
कमसँ कम कसुमपुरसँ दए तँ दियौक बधाइ।


 

 

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