परमेश्वर कापडि
अपन अपन माय
सबके नव नेपाल, समृद्ध आ संघात्मक नेपालक सुन्दर चित्र बनएबाक बेगरता रहनि। उमटुमाएल त’ बहुतो गोटे रहथि धरि चुनुआ बिछुआ, नामी—गरामी सातटा कलाकारके अपन बुमि ई भार देल गेलनि। भार अबधारि सब एहि निहुछल काजमे लागि जाइत
गेला।
केओ धर— मुडी, केओ हाथ त’ केओ टाङ्ग, केओ पयर त केओ बाहिँहाथ बनाबऽमे तन्मय भ
गेलाह।
देखिते देरि समकेँ सभ अगि बना बनाक अनलनि।
आहिरेबा। जखनि जे सबके द्धारा बनाएल नेपाल मायक आगि एकठाम जोडिक देखलनि त ओ आकृति कुरुपे नहि विद्रुप आ राक्षसी लगैत छल। ई चित्र देखिते निर्माणक आग्रही संरचनावादी लोक भडकिक आन्दोलन पर उतारु भगेल।
असलमें ई नारी चित्र भेलै कि नहि सेहे विवादक विषय बनि
गेल।
भेल कि रहै त जे पयर बनएने रहथि से रहथि माटिक मूर्तिकार आ पएर एहन सुकोमल माने परी रानीक सुन्नर पयरसन रहै। माय माये होइछै। मायक पयर धरती परक लोकक रेहल खेहल आ कर्मठ पयर होएबाक चाही ने से रहबे नहि करए। मुँह जे बनएने रहथि से अमूर्त पेन्टिङ्गक रहैक। आँखि किदन त नाक निपत्ता। केश दोसरे रङ्गके, पश्चिमी कटिङ्गके। फडफरायल ठाढ, किछु लट ओम राएल बेहाल। हाथ धातु मूर्तिकारद्धारा बनाएल रहैक त धर काठ मुर्तिकारद्धारा बनाएल कोकनल, निरस। लगै जेना मेहन जोदर्डो सभ्यताक वा पाषणकालक उत्खनन कएल गेल हो। तहिना कटि आ ओद्रभाग हिन्दी फिल्मक आइटम गर्लक कपचि छपटिक ल आएल सनके। बेनङ्गन निर्लज।
बात निर्विवाद छलै जे समरसताके अभावमे ई मूर्तिपूर्णे नहि भेलै। गढनिसब बेमेल बानि उबानि। बेलुरा रहैक।
असफलता पर पछताबा कोनो कलाकारके नहि रहैक। अहँकारी हेठी सबके मनमे। आब ऐ बात पर घोंघाउज कटाउँज होइत होइत अरारि आ मारि पीट धरिक नौबत आबि गेलै। से केना त जेना एखनि नेपालक क्षेत्रीय मुद्दाक बलिधिङ्गरोक विवाद।
काष्ठकलाबाला कहथि हपरा के अदुस अधलाह कहत, तेकरा हम बसिलेस पाङ्गि देबै। पेन्टर रङ्गकर्मीके अपन हठ हमर सृजनाके चिन्ह बुमके एकरा सबके दृष्टिए दम नै छन्हि। चित्रकारके अपने राग। पाषाणमुर्तिकारक अपने ठक ठक। सब अपन बातके इर बान्हि, गिठर पारि अडल जे मायक चित्र हमरे कल्पना भावना अनुसार बनए।
सह लहके बाते कोन अपना आगूमे सबके सब अदने, निकम्मे बुमथि। घोल घमर्थन, गेङ्ग छेंटके वैचारिक दर्शन कहैत सब हुडफेर फेरने घुमए।
अपना अपनीके सब तानहिबला, सुनबाला निठाहे नइ।
लोकमे सब रङ्गके, सब तौंतके लोक रहैछ ने। ओइमेस एगोटे आगू अएलाह आ थोडथम्ह लगबैत कालाकार सहित सबके बम्बोधित करैत कहलन्हि हमर बात पहिने ध्यानस सुनैत जाऊ। बात हम पयरस सुरु करैत छी, मूहँस नहि। पहिने पयरेस एहि दुआरे जे हमरासबके सँस्कृतिमे सबसँ पहिने पयरे पूजल जाइत अछि। पयरे चलिक केओ अबैत अछि। पयरेपर केओ ठाढ होइत अछि। पयरै लक्ष्मी होइत अछि। आगत अतिथिके पयरे पवित्र मानल जाइत अछि। प्रवेशके पयर देव कहल जाइत अछि। माने पयरे प्रथम अछि। कर्मशील भेने बन्दनीय आ ई लक्ष्मीपात्र अछि। ताहि दुआरे पयरेस चित्रक निर्माण शुरु हुअओ।
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