भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत।  एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मिथिलाक्षर वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-IPA वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-ब्रेल वर्सन

 VIDEHA_346

 VIDEHA_346_Tirhuta

 VIDEHA_346_IPA

 VIDEHA_346_Braille

 VIDEHA_347

 VIDEHA_347_Tirhuta

 VIDEHA_347_IPA

 VIDEHA_347_Braille

 

Friday, May 8, 2009

राजमोहन झा

राजमोहन झा (प्रबोध सम्मान २००९) सँ विनीत उत्पलक साक्षात्कार

खुलल दृष्टिसँ नहि भऽ रहल अछि समीक्षा : राजमोहन झा

साहित्यकार भाइ-साहेब राजमोहन झाक कैक टा कथा संग्रह आ चारि टा समालोचनात्मक पोथी लिखल छन्हि।  मैथिली भाषामे हुनकर एहि योगदानकेँ देखैत २००९ सालक प्रबोध सम्मान हुनका देल जाऽ रहल छन्हि।  हुनकासँ मैथिलीक भूत, वर्तमान, भविष्य आ समीक्षाक गप, संग-संग पारिवारिक आ सामाजिक जिनगीक ताना-बानाक गप वरिष्ठ पत्रकार विनीत उत्पल बातचीत मे बुनलन्हि।

DSC01706

विनीत उत्पल : अहांक जन्म कतय भेल, दिन-वर्ष की छल?

राजमोहन झा : हमर जन्म गाम मे भेल, कुमार बाजितपुर (वैशाली)। साल छल १९३४, अगस्त माहक २७ तारीख।

विनीत उत्पल : आ प्रारंभिक लालन-पोषण ?

राजमोहन झा : प्रारंभिक लालन-पोषण गाम मे भेल। किछु दिनक बाद पटना आबि गेलहुं, आगू पटनेमे भेल।

 

विनीत उत्पल : शिक्षा-दीक्षा कतय भेल?

राजमोहन झा : प्रारंभिक शिक्षा तँ गाममे भेल। पटना अएलाक बाद टी.के. घोष एकेडमी मे आठवां मे नाम लिखेने रहि, जतय सs मैट्रिक पास केलहुं। एकर बादक पढाई पटना कालेज, पटनासँ भेल। हमर विषय मनोविज्ञानक संग-संग लाजिक, हिन्दी आ अर्थशास्त्र छल।

विनीत उत्पल : पितामह कतेक मोन छथि ?

राजमोहन झा : हमर पितामह जनार्दन झा संस्कृतक विद्वान छलाह। हुनकर मृत्यु १९५१ मे भेलनि। गाम मे हमर पढाई हुनकर संरक्षण मे भेल छल। मिडिल स्कूल तकक पढाई तँ हम गाम मे केने रहि। ओ मैथिली मे सेहो लिखैत रहथि। ताहि लेल हमहूँ मैथिलीमे लिखबाक लेल प्रेरित भेलहुँ। मैथिली साहित्य मे रूचि जागल। ओ कतेक ठाम घुमि-घुमि कs रचना केलथि। महावीर प्रसाद द्विवेदीक सरस्वतीक संपादन करैक संग ओ मिथिला मिहिरक संपादक सेहो रहथि। करीब एक सौ टा बंगला उपन्यासक हिन्दी मे अनुवाद केलथि, जाहि मे विषवृक्ष, देवी चौधराइन उपन्यास प्रमुख अछि।

विनीत उत्पल : साहित्यक प्रारंभिक प्रेरणा केकरा सँ भेटल ?

राजमोहन झा : प्रारंभिक प्रेरणा तँ पितामह सँ भेटल। पितामहे शिक्षाक आरम्भ करोलथि। गाममे मिडिल तक पढाई काल तक पितामहे गार्जियन रहथि। पटना एलहुं तs बाबूजीक (हरमोहन झा) संग रहलहुं।

विनीत उत्पल : घर मे किनका सँ अहां बेसी नजदीक रही ?

राजमोहन झा : पितामह संग पितामहीक सबसँ नजदीक रहि।

विनीत उत्पल : संस्कृत परंपरा सँ अंगरेजी परंपरा दिस कोना प्रवृत भेलहुँ?

राजमोहन झा : समय बदलैत गेल, पहिने लोक संस्कृत पढैत रहथि। संस्कृत धीरे-धीरे लुप्त होइत गेल। अंगरेजी शिक्षा स्थान लेलक आओर प्रभाव बढ़ैत गेल। तखन अंगरेजी आ हिन्दी दिस लोक झुकए लागल। हमहुं ओही दिस प्रवृत भेलहुँ।

विनीत उत्पल : साहित्य कए अतिरिक्तेक की पेशा छल ?

राजमोहन झा : इम्प्लायमेंट आफिसर रही। आब रिटायर्ड छी।

विनीत उत्पल : कोन-कोन शहर मे रहल छी ?

राजमोहन झा : जमशेदपुर, मुजफ्फरपुर, रांची, बोकारो, पटना, दिल्ली मे नौकरी काल रहलहुं। पॉँच साल दिल्ली मे जनशक्ति भवन मे डिप्युटेशन पर रही।

विनीत उत्पल : कनि भाई-बहिनक संबंध मे बताऊ ?

राजमोहन झा : चार भाई आ एक बहिन छलहुं। दू भाईक मृत्यु भए गेल आ दू भाई छी एखन। सबसे पैघ हम छी। हमारा सs छोट कृष्ण मोहन झा रांची विश्वविद्यालय मे मनोविज्ञानक शिक्षक रहथि। तेसर भाई विश्वमोहन झा गाम मे रहथि। सबसे छोट मनमोहन झा सी.एम. कालेज, दरभंगा मे मनोविज्ञानक शिक्षक छथि। सबसँ जेठ बहिन ऊषा झा छलीह, जे दरभंगा मे छथि। बहनोई शैलेन्द्र मोहन झा १९९४ मे दिवंगत भए गेलाह। ओ ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयक मैथिली विभागक अध्यक्ष छलाह।

विनीत उत्पल : बाल-बच्चा कए टा आ की करैत अछि ?

राजमोहन झा : तीन टा बेटी अछि। ब्याह केकरो नहि भेल अछि। सबसे छोट मिनी झा टीचर छथि। जेठ बेटी ग्रेजुएशन क संग ब्यूटी-आर्ट एंड क्राफ्टक- ट्रेनिंग लेने छथि।


विनीत उत्पल : अहांक मनपसंद रचनाकार के छथि ?

राजमोहन झा : एकर निर्णय करब मुश्किल अछि। ललित, मायानंद, राजकमल चौधरीक लिखब लोक पसिन कए रहल अछि। आधुनिक मैथिली कए प्रारम्भ ओतहिसँ मानल जाइत छैक ।

विनीत उत्पल : अहांक  अपन नीक रचना कोन ?

राजमोहन झा : सेँ तँ आने लोक कहत। एकर निर्णय करब मुश्किल अछि। रचनाकार कोनो रचना करैये तँ अपन तरहे बेस्ट करैत अछि। जेकरा दिलसँ करब कहबै, ओ करैत छैक। सबसँ नीक देबाक कोशिश करैत छैक। कोनो रचना सुपरसीड करैत छैक, कोनो नहि करैत छैक। ई सब बहुत रास फेक्टर पर निर्भर करैत छैक।

विनीत उत्पल : अहांक पहिल रचना कोन छल ?

राजमोहन झा : रचनाक शुरुआत हम कविता सँ कएने रही। तखन हम बी.ए. मे रही, १९५४ क  ई गप छी। ओकर बाद कविता लिखब एक तरहेँ बंद भए गेल। कविता लिखब छुटि गेल। हमर लेखकीय जीवनक दोसर फेज १९६५सँ शुरू भेल। एखन कथा हमर मुख्य विधा भए गेल अछि।

विनीत उत्पल : कोनो कविता सुनेबई ?

राजमोहन झा : कविता कए मन पारब नहि चाहब। ओहि ट्रेडिशन मे हम लिखैत रही जे ओहि समय मे लिखल जाइत रहय। हमर लेखनक शुरुआती दौर छल, ओहि समयक जे साहित्य प्रभाव सँ लिखल गेल, से रहए। अपने हमरा बुझाएल जे ई कोनो कर्मक नहि छैक, तकरा बाद हम ई लिखब बंद कए देलहुं।

विनीत उत्पल : कविता कोनो पत्रिका मे छपल ?

राजमोहन झा : कविता 'वैदेही' मे छपल। 'मिथिला मिहिर' 'मिथिला दर्शन' मे सेहो छपल.

विनीत उत्पल : आ कहानी ?

राजमोहन झा : मिथिला मिहिर मे मुख्यतः कहानी छपल। मिथिला दर्शन मे सेहो।

विनीत उत्पल : अपनेक रचना लिखब आ छपल मे बाबूजी (हरिमोहन झा) कए कतेक सहयोग रहल?

राजमोहन झा : बाबूजीक सहयोग किछु नहि रहल, प्रभाव रहल। बाबूजीक संग रचनाक गप करबाक प्रश्न नहि उठैत छल। हमर लेखन हुनकर प्रभावक अंतर्गत नहि छनि। हुनकर लेखन सँ इतर हमर लिखब शुरू भेल। एकरा मे दूनू गप अछि। हुनकर प्रभाव रहल आ नहियो रहल। हुनकर क्षेत्र सँ हम अपना कए अलग कए लेलहुं। ओना प्रभाव सँ अलग कोना कए सकैत छी।

विनीत उत्पल : 'आई-काल्हि-परसू' पर अकादमीक  पुरस्कार ठीक समय पर भेटल वा नहि?

राजमोहन झा : ठीके समय पर भेटल। ई महत्वपूर्ण नहि छल की पहिने भेटबाक चाही छल या बाद मे भेटबाक चाही छल। मन मे एहन कोनो गप नहि छल।

विनीत उत्पल : साहित्यक अभियान मे पत्नीक कतेक सहयोग रहल ?

राजमोहन झा : साहित्य सँ ओतेक संप्रक्ति नहि छन्हि। सहयोग-असहयोग कए ताहि द्वारे प्रश्न नहि छैक।

विनीत उत्पल : हुनकर नहियर कतए भेलन्हि ?

राजमोहन झा : हमर सासुर तँ दिल्ली भेल। ससुरक पिता अलवर महाराजक चीफ जस्टिस रहथि। विवाह हमर दिल्ली मे भेल।

विनीत उत्पल : अहां कोन-कोन भाषा मे रचना केलहुं आ कतेक पोथी लिखलहुं?

राजमोहन झा : हिन्दी आ मैथिली मे हमर लेखन भेल। दस टा पोथी कथा संग्रह आ चारि टा समालोचनात्मक पोथी छैक.

विनीत उत्पल : भविष्यक की योजना अछि ?

राजमोहन झा : संस्मरण लिखबाक अछि। सुमनजी आ किरणजी पर लिखबाक बाकी अछि।

विनीत उत्पल : साहित्यक दावं-पेंच कए कतय तक बुझलियइ ?

राजमोहन झा : दांव-पेंच मैथिली मे नहि सभ भाषा मे चलैत रहैत छैक। ई कोनो नब गप नहि छी। एहि अर्थ मे प्रभावित भेलहुँ। ई तँ स्वाभाविक प्रक्रियाक रूप अछि। ओहिनो ई गप बेसी मेटर नहि करैत छैक।

विनीत उत्पल : कोन रचना एहन अछि जेकरा मे अहां केँ अपन आत्मकथ्य हुअए ?

राजमोहन झा : सभ रचना मे जीवनक अंश आबिए जाइत छैक। किया कि अनुभवक आधार पर लोक लिखय यै। अनुभवक अंश तँ रहबे करत। आत्मकथात्मकता तँ आबिये जाइत छैक।

विनीत उत्पल :  'निष्कासन' कथा तँ नहि छी आत्मकथात्मक ?

राजमोहन झा : स्पेशिफिक नहि करए चाहब। सभटा कथा मे कोनो-ने-कोनो रूपेण आत्मकथा भेटत।

विनीत उत्पल : समीक्षा लेल की कहब अछि ?

राजमोहन झा : समीक्षा खुलल दृष्टि सँ नहि भऽ रहल अछि। लोक अपन ईर्ष्या-द्वेष सँ रचना कए समीक्षा कए रहल अछि। निष्पक्ष व निर्भय भए कए समीक्षा नहि भए रहल अछि। आई-काल्हि जे समीक्षा भए रहल अछि ओहि मे धैर्यक अभाव अछि। ऑब्जेक्टिव नहि रहैत छैक लोक। जकरासँ रूष्ट रहए छथि तकर ठीक सँ समीक्षा नहि करैत छथि आ जकरा सँ नीक संबंध छैक ओकर प्रसंग खूब उठाबैत छथि। समीक्षा लेल दृष्टि काज करैत छैक।

विनीत उत्पल : की समीक्षा करबा मे व्यक्तिगत आक्षेप आवश्यक अछि ?

राजमोहन झा : समीक्षक बुझैत छथि, जे हम समीक्षा कए रहल छी, तँ लेखक पर उपकार कए रहल छी, हुनका हम उपकृत कए रहल छी। एकांगी दृष्टिकोण बड़का फेक्टर अछि। समीक्षा मे रचनाक समीक्षा होएबाक चाही नहि कि व्यक्तिगत आक्षेप।

विनीत उत्पल : ई गप कहिया सँ छैक?

राजमोहन झा : पहिनो रहए, आबो छैक। संकीर्णता बेसी भए गेल अछि। हमर विचारे पहिने एतेक नहि छल जे एखन भए रहल छैक। अपन लोक कए घुसाबैक लेल मारामारी भए रहल छैक। हालत जेहन भए रहल छैक तकर विरोध होएबाक चाहि।

विनीत उत्पल : नवतुरुआक लेखनकेँ कोन दृष्टि सँ देखैत छी ?

राजमोहन झा : नबका लोक भाषाक दिस उदासीन छथि। बेसी लोककेँ भाषाक प्रति मोह नहि छनि, अपनत्व नहि छनि। जहिना-जहिना जेनरेशन आगू भेल, भाषाक उदासीनता बढ़ल गेल। बेसी लोक मैथिली बाजब छोडि देने छथि।

विनीत उत्पल : मैथिली मे दलित साहित्य लेल अहांक मंतव्य की ाछि ?

राजमोहन झा : साहित्य मे वर्गीकरण प्रवृति जे भए रहल अछि, ओ विखण्डित कए रहल अछि। साहित्य सृजनात्मकता सँ ध्यान हटा कए विशेष वर्ग पर ध्यान देबासँ साहित्य विखण्डित होएत। दलित कए लेखन मे अएबाक चाही।

विनीत उत्पल : स्त्री लेखक लेल की कहब अछि ?

राजमोहन झा : स्त्रीगण कए साहित्य लेखन मे जरूर अएबाक चाही। कोनो वर्गक लेल समग्र साहित्य कए विखण्डित नहि करबाक चाहि। खंडित दृष्टि नहि हेबाक चाहि। एकरा लेल चाही समग्र दृष्टि।

विनीत उत्पल : मैथिली भाषा मे स्त्री लेखकक संख्या किएक कम अछि ?

राजमोहन झा : सबहक मूल मे शिक्षा अछि। मिथिला मे स्त्री शिक्षाक प्रचार-प्रसार नहि भेल। सहभागिता आ सहृदयताक कमी रहल।

विनीत उत्पल : मैथिली केँ संविधानक आठम अनुसूचीमे शामिल हेबासँ विकासक लेल की कहब अछि ?

राजमोहन झा : जतय तक भाषाक प्रश्न छैक, संविधान संगे यूपीएससी परीक्षा मे शामिल होयबाक गप छैक, एकरा सँ किछु खास बल भेटहि बला नहि छैक। भाषाक समृद्धिक लेल समर्पण चाही। तकर ह्रास भए रहल अछि।

विनीत उत्पल : तखन की कएल जाए?

राजमोहन झा : मूल गप भाषामे प्रवृत बच्चा सभ हुअए। स्कूल सँ पहिने परिवार छैक। परिवार मे भाषाक समुचित स्थान देल जाए, तखने बच्चा सबहक विकासक संग भाषाक विकास होएत। ई गप धीरे-धीरे कम भए रहल अछि।

विनीत उत्पल : नवलोकक लेल कि कहब अछि ?

राजमोहन झा : हुनका सभ कए साहित्य सँ ओ लगाव नहि छनि जे पहिलुका लोक कए छल। जखन धरि नवलोक कए साहित्य सँ लगाव नहि होएत तखन धरि किछु नहि होइत। एकर बादे मैथिली कए उज्ज्वल भविष्य छैक।

विनीत उत्पल : एखुनका समीक्षा लेल की कहब अछि ?

राजमोहन झा : मूल वस्तु लोक छैक। समीक्षाक लेल यैह छैक। जाऽ तक लोक नहि बदलत, दृष्टिकोण नहि बदलत, ऑब्जेक्टिव नहि होएत, तखन धरि किछु नहि होएत। समीक्षाक लेल तटस्थता चाही, निरपेक्षता चाही।

विनीत उत्पल : मैथिली भाषाक प्रचार-प्रसार लेल की करबाक चाही ?

राजमोहन झा : ई निर्भर करत सरकार पर, ई काज बेसी नीक जकाँ कए सकैत अछि। सामूहिक प्रयास लोकक होएत, संस्था आगू आएत, तखन होएत। मैथिलीक नाम पर जे तमाशा होइत अछि, ओकरा बंद कई पड़त। लोक रुचि जगाबक लेल काज करए पड़त।

विनीत उत्पल : प्रचार-प्रसार लेल नवलोककेँ कोन दृष्टि सँ देखैत छी ?

राजमोहन झा : समय-समय पर सभ किछु बदलल। नव जनरेशन आयल। समय मे परिवर्तन भेल। अपन संस्कृति लेल, भाषाक लेल पहिलुक लोक मे समर्पण बेसी छल। जेना-जेना जनरेशन बदलल, समर्पण कम भए गेल। एक तरहे कहि सकैत छी जे वैश्विक सम्पूर्णता दिस बेसी बढ़ल गेल अछि, स्थानीयक विशिष्टता पाछु छुटि रहल अछि। ग्लोबल बेसी हुअए लागल लोक, लोकल गौण भए गेल। एकरा मे सामंजस्य रखबाक चाही। एकरा बूझए पड़त। विशिष्टता आ सारभौमता स्थानीयता मे छैक। सभ संग हेबाक चाही। अपन जे विशिष्टता छैक तकरा बिसरि जाइ सेहो उचित नहि छैक। सबहक संग-संग चलैत अपन विशिष्टता नहि छोड़बाक चाही।

विनीत उत्पल : लेखन में जीवनानुभवक की स्थान छैक ?

राजमोहन झा : जीवनानुभव लेखनक समस्त आधार छैक। अनुभव पक्ष शून्य रहत तँ अहां की लिखब। अहांक लिखब साहित्य नहि रहत।

विनीत उत्पल : आजुक युगक बाजारवादी दुनिया आ साहित्यक लेल की कहब अछि ?

राजमोहन झा : जावत अहां बेसिक नीड्स मे अपना कए सीमित राखब तखन की होएत। साहित्य आगूक चीज छैक। भौतिक साधना मे अपनाकेँ सीमित राखब तँ साहित्य दिस विमुखता उत्पन्न हेबे करत। ई मूल जरूरत छैक, ई आवश्यक छैक, तकरा संग-संग नैतिक मूल्य साहित्यक लेल आवश्यक छैक। नैतिक मूल्यों उपेक्षित नहि रहए, ई पक्ष सबल हुअए। मूल जरूरत दिस लोकक बेसी ध्यान छैक, ई ट्रेंड चलि रहल छैक आ आगुओ ई रहत। जहिना-जहिना भौतिक सुख-सुविधा बढ़ल उच्च मूल्य मे ह्रास होइत गेल। ओहि दिस सँ देखब तँ राजनीति प्रमुख होइत गेल। दोसर पक्ष ई जे अध्यात्म पक्षक ह्रास होइत गेल, जखन विकास बढ़ल। भाषा मे तकनीकक विकास तँ भेल, मुदा जे मूल्य बेसी रहनि ओहि्मे ह्रास भए रहल अछि। बाहरी विकास बढ़ला सँ जे विशिष्टता, जे स्मिता छैक ओ कम भेल। बहुत लोक कहि रहल छथि जे भाषा मरि रहल अछि, से ठीक कहैत छथि। घर सँ निष्कासित भए रहल छैक ई भाषा। पारिवारिक भाषा नहि रहल ई, मरबाक लक्षण छैक।

विनीत उत्पल : एकर उपाय की ?

राजमोहन झा : समयक धार कए कोनो प्रयास सँ बंद नहि कए सकैत छी। शिक्षाक विकास भेल अछि। पढ़ए बलाक संख्या बढ़ल। स्कूलक संख्या बढ़ल। जाहि अनुपात मे ई बढ़ल ओहि अनुपात मे आंतरिक मूल्य घटल। जानकारी तँ बेसी बढ़ि गेल अछि, सूचनात्मक ज्ञान बच्चामे जतेक बेसी छैक, ओहि उम्र मे ओहि जमाना मे नहि रहै। मुदा, ज्ञान धरले रहि गेल। शिक्षा मे जे विकास भेल अछि, ई वृद्धि संख्यात्मक अछि, गुणात्मक विकास नहि भेल अछि। ई बात सही छैक, जतेक स्कूलक संख्या बढ़ल, ज्ञान ओतबेक कम भए गेल।

विनीत उत्पल : तखन विकास ख़राब गप अछि ?

राजमोहन झा : स्त्री शिक्षा पहिने नहि रहए, काफी वृद्धि भेलए। मुदा, बहुत रास साइड इफेक्ट भेल। दवाई बढ़ल, साइड इफेक्ट मे वृद्धि भेल। ओकरा रोकबाक कोनो उपाय नहि भेल अछि।

विनीत उत्पल : अहां  श्रेष्ट रचना ककरा कहब ?

राजमोहन झा : सर्वश्रेष्ट रचना ओ होयत अछि, जे ओहि युग बीत गेलाक बादो श्रेष्ट रहत अछि। कालजयी छैक। कायम रहैक छैक पोथी आ रचनाकार। सुमनजी, किरणजी, आरसी बाबू श्रेष्ट रचनाकार रहथि। हुनकर रचना एखनो श्रेष्ट मानल जाइत अछि।

विनीत उत्पल : एहन कोन रचना छैक जकरा  फुर्सत भेटला पर अहां बारंबार पढैत छी ? जखन मानसिक परेशानी रहैत अछि तखनो ?

राजमोहन झा : एहन कोनो पोथी नहि अछि। जखन जे भेट जाइत छैक, तकरे पढैत छी। मानसिक सुधाक शांति लेल जे पोथी उपलब्ध रहैत अछि सैह भऽ जाइत अछि।

विनीत उत्पल : मानसिक शांति लेल की करैत  छी ?

राजमोहन झा : एहन कोनो काज नहि छैक। उपलब्धता पर हम कोनो काज करैत छी। लिखबाक मन होइत अछि तँ लिखियो लैत छी। मनक अनुरूप काज ताकि लैत छी।

विनीत उत्पल : साहित्यक रचनाक लेल की योजना अछि ?

राजमोहन झा : बाबूजीक रचनावली निकालबाक लेल सोचने छी। तीन खंड निकालि चुकल छी आ तीन खंड बाकी अछि। अपन तीन टा पोथी दिमाग मे अछि। पहिल-संस्मरण संग्रह आ दोसर आलोचनात्मक/समीक्षात्मक लेख संग्रहित करबाक अछि। तेसर ई जे कथा सभ छूटल छैक, लेख सभ सेहो छूटल छैक, ओकरा निकलबाक अछि।

विनीत उत्पल : जीवनक लेल की योजना अछि ?

राजमोहन झा : प्लानिंग क हिसाब सँ जीवन नहि चलैत छैक। पानि जहिना बाट ताकि लैत छैक, तहिना जीवन चलैत छैक। प्लानिंग सँ बहुत काजो नहि होइत अछि। एकर आवश्यकता सेहो नहि होइत अछि। प्लानिंगक अनुसार सभ काज भए जाइत, एहनो नहि होइत अछि। Men proposes God disposes. हम तँ सोचैत छी जे propose नहि कएल जाएत। एहिना जीवन छैक।

विनीत उत्पल : जीवन आ सहित्यक दृष्टि सँ अपनेक कोन समय सभसँ बेसी नीक छल?

राजमोहन झा : 1965 सँ 1975 धरि समय सबसँ नीक रहल, साहित्य दृष्टि सँ सेहो आ सामान्य दृष्टि सँ सेहो। ओकरा बाद खराबे कहि सकैत छी. कहिया धरि चलत नहि जनैत छी।

विनीत उत्पल : रचना करैत काल की ध्यान रखबाक चाही ?

राजमोहन झा : कालजयी रचना लेल कोनो सिद्धांत वा प्रशिक्षण नहि होइत अछि। साहित्य रचनाक लेल कोनो पाठ नहि होइत अछि। एकर कोनो उपयोगिता नहि होइत अछि। आन कलाक लेल स्कूल छैक। साहित्य लेल नहि छैक। कोनो एहन ट्रेनिंग स्कूल नहि छैक जे साहित्यकार बनायत। कोनो विज्ञापन नहि छैक जे छह मास मे ई चीज सिखा देत।

विनीत उत्पल : मैथिली सहित्य मे नव लेखक केँ की सुझाव देब ?

राजमोहन झा : मार्गदर्शन आ सुझावक पक्ष मे हम नहि छी। जिनका मे ओ प्रतिभा/योग्यता होएत, ओ अपन बाट ताकि लेताह। सिखओने सँ कियो सीखबो नहि करत। मूल वस्तु अनुभव छैक. अनुभव संपन्न छी, अनुभवक संवेदनाक पकड़बाक हुनर अछि। से लेखक मे अंतर्निहित रहैत छैक । रचनाक लेल अनुभव करबाक तागति जरूरी छैक। तकरा बिना लेखन नहि होएत। अभिव्यक्तिक देबाक लेल कौशल आ भाषा हेबाक चाही। जतय ई विकास होएत, सफ़ल होएत। प्रशिक्षण वा मार्गदर्शनक जरूरत नहि छैक।

 *विनीत उत्पल : प्रबोध सम्मान 2009 प्राप्त करबाक लेल बधाई।

No comments:

Post a Comment