भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

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स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

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Friday, May 8, 2009

प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र (१९४५- )

Ratneshvara_Mishra

प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र (१९४५- )

 पूर्व अध्यक्ष, इतिहास विभाग, .ना.मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा। अनुवादक, निबन्धकार। प्रकाशन: तमिल साहित्यक इतिहास, भवभूति (दुनू अनुवाद)


मिथिला विभूति पं मोदानन्द झा-प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र

पूर्णियाँ जिलाक पंजीकार परिवारमे उत्पन्न पं. मोदानन्द झा आधुनिकताक कसौटीपर अनुदार मुदा पारम्परिकताक कसौटीपर उदार, विद्वान विद्वत्ताक सत्संगति लेल आतुर, विलक्षण प्रतिभासँ सम्पन्न व्युत्पन्नमतित्व वाला मिथिलाक अत्यन्त सम्मानित पंजीकार छलाह। पंजीशास्त्र हुनका पूर्णतः अधिगत छलनि पंजीसँ जुड़ल ककरहु कोनो जिज्ञासाक समाधान लेल सदैव तत्पर रहैत छलाह। वस्तुतः मिथिलाक विभूति छलाह जनिकर स्मृतिक संरक्षणार्थ जे किछु कयल जायत से थोड़ होयत।

पूर्णियाँ जिलाक रसाढ़ ग्रामक रहनिहार पं मोदानन्द झा पड़वे महेन्द्रपुर मूलक ब्राह्मण छलाह आओर विस्तृत कृषि-भूमिक कारणे बादमे शिवनगर ग्राममे रहय लगलाह। रसाढ़ शिवनगर दुनू धर्मपुर परगनान्तर्गत अवस्थित अछि। १९१४ .मे उत्पन्न अपन माता-पिताक एक मात्र पुत्र छलाह। परम्परासँ हुनकर परिवार पंजीकारहिक छलनि हुनक पिता भिखिया झा व्यवसाय करितो रहथिन। मुदा नीक कृषक रहथि हुनकर बेसी समय ओहिमे लगनि। हुनका २०० एकड़सँ बेशीक जोत रहनि। अपने प्रायः शिक्षितो नहियें जकाँ रहथि, मुदा अपन पुत्रकेँ नीकसँ नीक शिक्षा दिआयब हुनकर अभीष्ट रहनि। मोदानन्द झा स्वयं बुझबा जोगरक भेलापर अपन कौलिक व्यवसाय प्रतिष्ठाक पुनरुद्धार करबा लेल कृतसंकल्प भेलाह।

अपन बाल्यावस्थाक संस्मरण बजबाक क्रममे प्रायः बाजथि जे बड़ए प्रसन्नता आह्लादक समय छल। माता-पिताक दुलरुआ छलाहे, काका-काकी तथा आन सम्बन्धी कुटुम्बी जनक स्नेह सेहो हुनका प्रचूर प्राप्त छलनि। दैनिक कृत्य विद्यालयसँ बाँचल समयमे माछ मारथि बहुत दिन धरि हुनकर प्रिय मनोरंजन रहनि। एक बेर बहुत गम्भीर रूपेँ बीमार पड़लाह। वस्तुतः तहिया पूर्णियाँ जिलामे मलेरिया कालाजार महामारीक रूपमे पसरल छल। कहबी छलैक जे जहर खाउ ने माहुर खाउ, मरैक होइ तऽ पूर्णियाँ जाउ हुनकर माता एक सम्पन्न कुलक महिला रहथिन अपन पुत्रक रुग्णताक समाप्ति लेल किछु करबा लेल तत्पर छलीह। हुनकहि जिदपर २०० रुपया फीस दऽ कलकत्तासँ डाक्टर मँगाओल गेल। चारि पंडित अहर्निश हुनकर रुग्णावस्थामे दुर्गा सप्तशती गीताक पाठ करैत रहलाह। हुनकर माता स्वयं ताधरि अन्न ग्रहण नहि कयलथिन जा हुनकर पुत्र पथ्य ग्रहण करबा जोगरक नहि भेलनि। कलकत्तासँ आयल डॉक्टरक तऽ अन्य विदाइ कैले गेलनि, पाठ केनिहार ब्राह्मणो लोकनिक पुत्रक आरोग्य-लाभक उपलक्ष्यमे गाम-टोलक लोक सभकेँ भोज सेहो खोआओल गेल। मुदा पिताक आकांक्षा छलनि पुत्रकेँ विद्वान् देखबाक विद्यार्थीक लेल गण्य करक-चेष्टा, वक ध्यान, श्वान-निद्रा तथा अल्पाहारी आदि लक्षणसँ जन्मतः परिपूर्ण मोदानन्द झा लेल समय अयलनि गृह-त्यागी होयबाक।

दस वर्षक अल्पायुमे हुनका वर्तमान मधुबनी जिलान्तर्गत सौराठ गाम विद्याध्ययन लेल पठाओल गेलनि। ओतय हुनक गुरु आ आश्रयदाता रहथिन ख्यातनाम पंजीकार पं.विश्वनाथ प्रसिद्ध निरसू झा, जनिकर पिता लूटन झा मोदानन्द झाक मौसा रहथिन। पंजीशास्त्रक अध्ययन लेल सामान्यतः पन्द्रह वर्षक कालावधि समुचित मानल गेल छैक मुदा मोदानन्द झा दसे-एगारह वर्षमे गुरु-कृपासँ निष्णात भेलाह। ओना ओऽ पन्द्रह-बीस वर्ष धरि लगातार गुरु सान्निध्यमे सौराठ रहलाह आ बादोमे आजीवन, विशेष रूपसँ वार्षिक वैवाहिक सभाक अवसरपर सौराठ अबैत-जाइत रहलाह आ ताहि क्रममे बाटमे दरभंगा स्थित हमर नरगौना निवासपर ओऽ कनियो देर लेल अवश्य आबथि। हमर पिता डॉ. मदनेश्वर मिश्र लेल हुनका विशेष स्नेह आ सम्मान रहनि आ हमर एक पितृव्य पं. नागेश्वर मिश्रक ओऽ सम्बन्धमे साढ़ू रहथिन। हमर एकटा पीसा स्व. दिगम्बर झा हुनकर पितियौत रहथिन। जे हो, विद्याध्‍ययन समाप्त भेलापर राज-दरभंगा द्वारा आयोजित धौत परीक्षामे १९४० मे ओऽ सर्वोच्च स्थान प्राप्त कयलनि। हुनका संग उत्तीर्णता प्राप्त केनिहार अन्य दू महत्वपूर्ण पंजीकार छलाह ककरौरक हरिनन्दन झा आ सौराठक शिवदत्त मिश्र। एहि सफलता लेल महाराज सर कामेश्वर सिंहक हाथे तीनू गोटाकँ धोती देल गेलनि, मुदा सर्वोच्च घोषित भेलाक कारणँ मोदानन्द झाकेँ दोशाला सेहो देल गेलनि। पारम्परिक मिथिलामे धौत परीक्षामे उत्तीर्ण भेनाय बड़का सम्मान होइत छल मुदा ताहूमे सर्वोच्चता पायब तँ अनुपमे छल। तहियासँ अनवरत ओऽ अपन जीवन-पर्यन्त मिथिलाक प्रायः सर्वाधिक समादृत पंजीकार रहलाह।

मोदानन्द झाकँ पाबि पंजीकारक व्यवसाय धन्य भेल। १९६२ मे निरसू झाक दिवंगत भेलापर ओऽ सौराठ प्रतिवर्ष नियमपूर्वक वैवाहिक सभामे मात्र अपन नाम बढ़यबा लेल नहि बल्कि अपन गुरुक ऋण अदाय करबाक विचारसँ सेहो जाथि। ताधरि निरसू बाबूक दुनू बालक छोट रहथिन आ पंजीकारी नहि करथि। हुनकर जेठ बालक प्रोफेसर (डॉ.) कालिकादत्त झा, जे सम्प्रति ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयक संस्कृत विभागक अध्यक्ष रहथि आ विगत लगभग दस-पन्द्रह वर्षसँ दरभंगामे रहि रहल छथि (पहिने मगध विश्वविद्यालय, गयामे रहथि) आब सक्रिय रूपेँ अधिकार जँचबा आ सिद्धान्त लिखबाक काज करय लागल छथि। ताहिसँ पहिने मोदानन्दे बाबू अपन गुरुक ओहिठाम अयनिहार लोकनि लेल सिद्धान्तादि लिखथिन। ततबे नहि ओऽ निरसू बाबूक पुत्र लोकनिकँ पंजी-ज्ञान ओएह देलथिन आ आइयो कालिकादत्त बाबू गुरु रूपहि हुनका प्रति श्रद्धा रखैत छथि।

मोदानन्द बाबू पंजीकारीक व्यवसायसँ जे धनार्जन करथि ताहिसँ सन्तुष्ट छलाह। सिद्धान्त लिखबासँ तथा विदाइसँ हुनका पर्याप्त कमाइ होइन आओर खेत-पथारसँ सेहो नीक आय होइत छलनि।

कमाइसँ बेसी हुनकर अभिरुचि ज्ञानक विस्तारमे आ पंजीसँ सम्बन्धित विषयपर शोध करबामे छलनि। मैथिलीक महान् विद्वान, आलोचक आ समीक्षक डॉ. रमानाथ झाक संग ओऽ पृथक-पृथक विभिन्न मूलक विख्यात छवि, विद्वान् आ राजा-जमीन्दार सबहक वंश-परिचय तैयार करबा दिस प्रवृत्त भेलाह आ तकरहि परिणाम छल पूर्णियाँक प्रसिद्ध बनेली राजवंशक परिचयात्मक पुस्तक अलयीकुल प्रकाशक प्रकाशन। आन एहन प्रकारक कृत्य नहि तैयार कयल जा सकल तकर हुनका क्षोभ छलनि। हुनकर शोधपरक सोचक अंग छल एक अन्य परियोजना जाहिक अन्तर्गत विशिष्ट गाममे बसनिहार मैथिल ब्राह्मण सभक बीजी पुरुष धरिक परिचयात्मक विवरण तैयार करब अभीष्ट छल। ओऽ सर्वप्रथम कोइलख गामक सम्बन्धमे एहन रचना लिखलनि। ओऽ हमरा तकर कतिपय अंश सुनेबो कयलनि। हुनकर इच्छा रहनि जे उक्त रचनाक प्रकाशन हो मुदा से आइ धरि नहि भऽ सकल अछि। उपर्युक्त दुनू प्रकारक शोध परियोजनाक पंजीकार समाजमे सामान्यतः आलोचना भेलैक कियैक तँ ओऽ अपन रचनामे एहनो विवरणक सन्निवेश करय चाहैत रहथि जे पंजीकारीक व्यवसायमे प्रकाशित करब वर्जित कहल जाइत छैक- वस्तुतः ओऽ विवरण सभ दूषण पञ्जीक अंग होइत छैक जाहिमे व्यक्ति आ परिवार विशेषक सम्बन्धमे ज्ञात अशोभनीय आ अप्रकाश्य बात उल्लिखित रहैत छैक। एहि क्रममे एक तेसर परियोजना, जाहिपर ओऽ उन्नैस सय पचासहिक दशकमे कार्य आरम्भ कयलनि छल, ओहन पञ्जीकार परिवार लग उपलब्ध पाण्डुलिपिक संग्रह करब जाहि परिवारमे आब क्यो पंजीकारीक व्यवसायमे नहि रहि गेल रहथि आ हुनकर पंजी-पोथी सभ नष्ट भऽ रहल छलनि। पिताक मृत्यु भऽ गेलासँ हुनकर दरभंगा सम्पर्क घटि गेलनि आ पूर्णियाँमे पारिवारिक सम्पत्तिक प्रबन्धनमे अपेक्षाकृत बेसी समय लगबय पड़नि। तथापि हुनकर शोध-दृष्टि बनल रहलनि आ ओऽ अपेक्षा करथि जे सामाजिक विज्ञानमे आधुनिक शोध तकनीकसँ परिचित क्यो व्यक्ति हुनका संग रहि उपर्युक्त परियोजना सभ तँ पूर्ण करबे करथि पंजीसँ सम्बन्धित आनोआन विषयपर काज करथि। हुनकर ई अभिलाषा नहि पूर्ण भेलनि मुदा हुनक पुत्र  मोहनजी, जे पञ्जीकारीक पैत्रिक व्यवसायमे लागि क्रमिक रूपेँ कौलिक प्रतिष्ठाक विस्तार कय रहल छथि। आ अनुकरणीय रूपसँ पितृभक्त सेहो छथि, एहि दिशामे भविष्यमे क्रियाशील भऽ सकैत छथि।

स्वयं शोधपरक दृष्टि आ रुचि रखनिहार मोदानन्द बाबू जिज्ञासु लोकनिक मदति करबालेल सदति तत्पर रहैत रहथि। हमरा कमसँ कम दू अवसरपर एकर लाभ भेटल। हम १९८७-८८मे बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटनाक अनुरोधपर बिहारक एक पूर्व मुख्यमंत्री पं. विनोदानन्द झाक जीवनी लिखि रहल छलहुँ मुदा हुनकर वंश-परिचय कतहु प्राप्य नहि छल। आधा-छिधा भेटबो कयल तँ प्रामाणिक नहि। हम कैकटा पंजीकारसँ एहि सम्बन्धमे जिज्ञासा कयलहुँ मुदा व्यर्थ। मात्र मोदानन्द बाबू सूचना देलनि जे हुनकर एक परिजन स्व. गिरिजानन्द झा गंगाक दक्षिण बसल मैथिल ब्राह्मण आ पंडा सभक वंशावली तैयार करबाक स्तुत्य प्रयास कयलनि आ अपना संग शिवनगर स्थित हुनकर घरमे जाऽ ओहि संग्रहमे विनोदानन्द झाक वंश परिचय तकबाक चेष्टो कयलनि, मुदा हुनकर पंजी-पोथी सभ व्यवस्थित आ संगठित नहि भेलाक कारणेँ से संभव नहि भेल। जे हो, हमरा ई अवश्य ज्ञात भऽ गेल जे यदि स्व. गिरिजानन्द झाक पोथी-पंजी व्यवस्थित नहि कयल गेलनि तऽ गंगाक दक्षिण बसल मैथिल ब्राह्मण लोकनिक पूर्वजसँ सम्बन्धित महत्वपूर्ण सूचना सभ लुप्त भऽ जेतैक कियैक तँ गिरिजानन्द बाबूक परिवारमे आन किनकहु पंजीकारीक व्यवसायमे रुचि नहि छनि। दोसर अवसर छल जखन भारतीय इतिहास शोध परिषदक अनुरोधपर हमरा पूर्णियाँ जिलाक धमदाहा ग्राममे उत्पन्न सुविज्ञात इतिहासकार प्रोफेसर जगदीश चन्द्र झाक अंग्रेजीमे लिखल विलक्षण पोथी माइग्रेशन ऐन्ड एचीवमेन्ट्स ऑफ मैथिल पंडित्स: दि माइग्रैन्ट स्कौलर्स ऑफ मिथिला (८००-१९४७)क १९९० मे समीक्षा लिखबाक छल। ओहि पोथीक परिशिष्टमे कम-सँ-कम तीन पंडित (१) महामहोपाध्याय नेनन प्रसिद्ध दीनबन्धु झा, (२) म.म.भवनाथ झा आ(३)म.म.गुणाकर झा केर वंश परिचय देल छल किन्तु लेखककेँ हुनका लोकनिक मूल ज्ञात नहि भऽ सकलनि। मोदनन्द बाबू क्षण भरि ध्यानस्थ भेलाह आ कहलनि जे ई लोकनि क्रमशः खौवालय सुखेत, नरौने पूरे आ खौवालय नाहस मूलक छलाह।  एतय ई कहब आवश्यक जे मूल आ एक-दू खाढ़िक व्यक्तिक नाम देल रहलापर आन सम्बन्धित सूचना देव संभव छैक मुदा उपर्युक्त उदाहरणमे तँ उनटा बात छैक आ तैयो मोदानन्दे बाबू सन पंजीकार छलाह जे वांछित सूचना तत्काल देबामे समर्थ भेलाह। ओ ओहि पुस्तकमे उल्लिखित पन्द्रह खनाम मूलक प्रसिद्ध विद्वान् गोकुलनाथ, हुनक पिता पीताम्बर आ पुत्र रघुनाथक विषयमे बतौलनि जे ओ तीनू मिथिलाक बारह सडयन्त्री अथवा सर्वज्ञाता विद्वान् मे सँ छलाह। गोकुलनाथक पितामहक नाम रामभद्र छलनि, रामचन्द्र नहि। एतबहि नहि ओ इहो बतौलनि जे मिथिलाक एक घुमक्कड़ विद्वान् ककरौर वासी पड़वे महेन्द्रपुर मूलक गुणाकर झाक एक वंशज धीरेन्द्र झा सेहो छलाह जे आइसँ लगभग चारि सय वर्ष पूर्व बंगाल जाय ओतुक्का ब्राह्मण सभक पंजी-सूचनाक संशोधन-संवर्द्धनक क्रममे अनेक ब्राह्मणेतर व्यक्ति सभकँ ब्राह्मणक रूपमे पंजीमे परिगणित कय देलथिन। अपन पंजी-पोथीमे उक्त धीरेन्द्र झा अपनाकँ आ अपन पिताकँ पंजी पंचानन कहि सम्बोधित कयलनि अछि। एहन कतेको सूचना मोदानन्द बाबू जिज्ञासु व्यक्ति सभकँ दैत रहैत छलथिन।

ओ अपन समाजमे अपन विद्वता, उदारता आ सहज सम्प्रेषणीयताक कारणेँ सर्वत्र समादृत रहथि। हम जखन छोट छलहुँ, आइसँ प्रायः पचास वर्ष पूर्व, ओ हमर गाम विष्णुपुर अथवा पूर्णियाँ शहर स्थित हमर डेरा आबथि तऽ सम्पूर्ण परिवार हुनकर सम्मानमे सन्नद्ध रहैत छल। ओ सभक छुइल भोजन कहियो नहि कयलनि। बेसी काल सभ सामग्री दऽ देल जाइन तऽ ओ अपन पाक अपनहि करथि। हमरा बूझल अछि जे कैक बेर हमर सभसँ जेठ पित्ती, पूर्णियाँक अत्यन्त समादृत ओकील आ भरि बिहारमे सभसँ बेसी अवधि धरि सरकारी ओकील रहनिहार स्व. कपिलेश्वर मिश्र अपन हाथें हुनका लेल पाक करथिन। हमरा परिवारमे तऽ हुनका सदैव सम्मान भेटबे करैत रहनि मुदा अन्यत्रो कम नहि। एक बेरक घटना सुनबैत ओ कहने छलाह जे ओ वर्तमान बांग्ला देशक एक मैथिल ब्राह्मण बहुल गाम बोधगाम गेल छलाह जतय हुनका प्रचुर विदाइ तऽ भेटबे कयलनि ओतुका लोक सभ हुनकर पएर पखारि चरणोदक सेहो लेने रहनि।

मोदानन्द बाबू अपन चिन्तनमे एक तरहँ प्रगतिशील आ सुधारक सेहो रहथि। हुनकर चेष्टा रहनि जे पंजीकार लोकनि मात्र अधिक सँ अधिक धनार्जन मे लागि अपन वृत्तिक प्रतिष्ठार्थ सेहो सोचथि। हुनका ई नीक नहि लगनि जे पंजीकार सभ एक दोसराक प्रति द्वेष भावसँ कार्य करथि। हुनकर इच्छा रहनि जे सभ मिलि पंजी आओर पंजीकारक संस्थाकँ जीवन्त बनाबथि तथा समाजमे हुनका सभकँ जे आदर प्राप्त रहनि तकर लाभ लए समाजकँ दिशा निर्देश देथिन। ओ राजदरभंगाक निर्देशमे चलि रहल पंजी व्यवस्थाक प्रजातंत्रीकरणक पक्षमे रहथि जाहिसँ ब्राह्मण समाजक सभ वर्गक प्रतिनिधि मिलि ओहिना परमानगी दय जातीय स्तरीकरणमे समय-समयपर वांछित परिवर्तन करथि जेना राज दरभंगाक तत्वावधानमे अतीतमे कैक बेर कयल गेल छलैक। जे कोनो ब्राह्मण परिवार पंजी-व्यवस्था विहित रीतिसँ नीक वैवाहिक सम्बन्ध करथि तनिकर स्तरोन्नयन करबाक ओ पक्षमे रहथि। १९६६ मे हमर पित्ती डॉ. रामेश्वर मिश्रक विवाह जखन सोनपुर (उजान) वासी प्रसिद्ध श्रोत्रिय ब्राह्मण स्व. दुर्गेश्वर ठाकुरक कन्यासँ स्थिर भेलनि तँ मोदानन्द बाबू राजसँ परमानगी प्राप्त करबामे तऽ सहयोगी भेबे केलथिन, सौराठमे अधिकांश पंजीकारक बैसक बजाय सभक सहमतिसँ हमर प्रपितामह लाल मिश्रक सभ सन्तति लेल कन्हौली पाँजिक स्थापना सेहो करबौलनि। ओ प्रायः खभगड़ा (अररिया जिला) वासी स्व. बालकृष्ण झाक परिवार आ कतिपय आनो परिवार लेल एहने स्तरोन्नयनक पक्षमे रहथि। हुनकर मन्तव्य रहनि जे जमीन्दारी प्रथाक उन्मूलनसँ आन अनेक संस्थाक संग पंजी व्यवस्थाक सेहो बड़ क्षति भेलैक। जमीन्दार लोकनि परम्परा आ संस्कृतिक सम्पोषक रहथि मुदा आब हुनकर स्थान लेनिहार सरकार अथवा कोनो आन संस्था से काज ताहि रूपेँ नहि कऽ पाबि रहल अछि। पंजीकार लोकनिक दुर्दशाक एक कारण जमीन्दारक समाप्ति सेहो भेल। हुनका सन्तोष रहनि जे पटनाक मैथिली अकादमी सन संस्था हुनक जीवन पर्यन्तक सेवाक मान्यता दय हुनका सम्मानित कयने छलनि, मुदा से संभव भेल छल अकादमीक तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. मदनेश्वर मिश्रक व्यक्तिगत प्रयाससँ, अन्यथा आन किछु श्रोत्रिय, योग्य आ कुलीन परिवारकेँ छोड़ि अनेकशः मैथिल ब्राह्मण परिवारेकेँ जखन पंजीकार अथवा हुनका द्वारा कयल सिद्धान्तक प्रयोजन नहि रहलनि तऽ ब्राह्मणेतर समाज आ प्रायशः तकरहि प्रतिनिधि सरकार पंजीकारक स्थितिमे सुधारक कोनो यत्न कियैक करत।

मिथिला विभूति स्व. मोदानन्द झाक स्मृतिक संरक्षणार्थ ई सर्वतोभावेन वांछनीय अछि जे पूर्णियाँमे हुनका द्वारा सुविचारित शोध परियोजना सभपर काज करबाओल जाय, स्व. गिरिजानन्द झा सन मिथिला भरिमे पसरल पञ्जीकार लोकनिक ओतय उपलब्ध ओ पंजी-पांडुलिपि सभक संग्रह कयल जाय जे आब कतिपय कारणसँ उपयोगमे नहि रहि गेल अछि, मैथिल मूल ग्राम सभक अभिज्ञान प्राप्त कयल जाय तथा ज्ञात अथवा अज्ञात मैथिल ब्राह्मण परिवारक विशिष्टताक प्रचारार्थ परिचयात्मक विवरणिका तैयार करबाओल जाय। पंजी व्यवस्था निश्चयतः पतनोन्मुख अछि मुदा मोदानन्द बाबूक बताओल मार्गपर जौं शोध कार्य कयल गेल तऽ मिथिलाक सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहासक अभूतपूर्व सेवा होयत।

nq?mlu!$mso-hansi-font-family: Mangal'>घरमे खधिया खनि ओइमे जल राईख पावनि सम्पन् करैत अछि, कियाक दिनानाथे सूर्य छथिएकटा एहो कहि सकै छि कि सूर्य मे बहूत गर्मी भेला के कारण जल के अर्घ देला सँ किछ ठन्ढा होइत छैथ

लोकतान्त्रिक गणतन्त्रमे छठि पावनिके संस्कृतिके बारे मे अपने कि कहब अछि ?

हम गणतन्त्र नई कहिक लोकतन्त्रके चर्चा करैत कहव कि छठि एकटा विशुद्ध लोकतान्त्रिक पावन अछि, समानुपातिक ढगं सँ एकरा मनाओल जाइत अछिसामूहिक रुपमे मनबाक सँगहि अई मे कोनो भेद भाव नई होइत अछिगरीब सँ लक धनीक तक सब एकरा समान ढगं मनावैत अछि।

जनता गणतन्त्रके रस्ता चलनाई शूरु कदेलक मुदा सरकार अखुनोे पाछा परल अछिअखनोे मधेसी पहाडी बीच , दलित गैर दलित बीच, गरीब धनीकके बीच भेदभाव अछि, कि एकरे गणतन्त्र कहबै ? नवका नेपाल बनाबऽ लागल नेेतागण सबके छठि पावनि सँ किछ सिखवाक चाहि

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