भवनाथ ‘दीपक’
अभियान गीत
उठह, उठह, उठह
चलह, चलह, चलह
बढह, बढह, बढह
घरक भेदभाव बूझि शत्रु आबि गेल
बुझा दियौक आन सँग एक बुद्धि भेल
विश्व मंच मध्य हम उचित जगह लेल
विशद विविध भेष
हरित भरित देश
जाति–पाँति वर्ण धर्म भेद–भाव हीन
राज–पाट कर्म काज सब अपन अधीन
श्रमिक कृषक बुद्धिजीव, उद्यमी उदार
ग्रथित एक सूत्र मध्य व्यक्ति शत प्रकार
भुक्ति मुक्ति हेतु
वृत्त आइ एकताक सेतु
जनैत हित मिलैत माँटि
के सकत अनेर डाँटि !
सब प्रबुद्ध, सब सचेत
पैर पाछु क्यो न देत
देखाय देत शत्रुकेँ भैरवक स्वरुप
के अलच्छ निन्दमे रहत भसैत चूप ?
तिर्हुतिक माटिपर रहनिहार भाइ !
जन्म भूमि प्राण हेतु ठाढ हुअह आइ
लाख–लाख कोटि–कोटि केर प्रयाण
के कहैछ, मैंथिलीक पुत्र अल्पप्राण ?
लक्ष्य चीन्हि–लेल आब निधि चीन्हि लेल
शत्रु–मित्र केर भेद–विधि चीन्हि लेल
उठह, उठह, उठह
चलह, चलह, चलह
बढह, बढह, बढह.....।
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