भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत।  एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मिथिलाक्षर वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-IPA वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-ब्रेल वर्सन

 VIDEHA_346

 VIDEHA_346_Tirhuta

 VIDEHA_346_IPA

 VIDEHA_346_Braille

 VIDEHA_347

 VIDEHA_347_Tirhuta

 VIDEHA_347_IPA

 VIDEHA_347_Braille

 

Friday, May 8, 2009

श्रीधरम (1974- )

श्रीधरम  (1974- )


फानी

पंच सभ एकाएकी कारी मड़रक दुअरा पर जमा हुअलागलछल। दलान पर चटाइ बिछा देल गेल रहै। देबालक खोधली मे राखल डिबिया धुआँ बोकरि रहल छल। मात्र रामअधीन नेताक अयबाक देरी रहै

बिना रामअधीन नेताक पंचैती कोना शुरु भसकैए? डोमन पाँच दिन पहिनहि सँ पंच सभक घूर-धुआँ मे लागल छल। डोमन चाहैत रहए जे सभ जातिक पँच आबय, मुदा रामअधीन नेता मना कदेने रहै, बाभन-ताभन केँ बजेबेँ तँ हम नइँ पँचैती मे रहबौ जातिनामा पँचैती जातिए मे होना चाही। डोमन केँ नेताजीक बात काटबाक साहस नइँ भेलै। रामअधीन आब कोनो एम्हर-ओम्हर वला नेता नइँ रहलै, दलित पाटीक प्रखंड अध्यक्ष छिऐ। थानाक बड़ाबाबू, सीओ, बीडीओ, इसडीओ सभ टा चिन्है छै। कुसी पर बैसाककनफुसकी करै छै। मुसहरी टोलक बिरधापेंशनवला कागज-पत्तर सेहो आब नेतेजी पास करबै छै। कोन हाकिम कतेक घूस लै छै, से सभ टा रामअधीन नेता केँ बूझल छै। कारी मड़र तँ नामे टाक माइनजन, असली माइनजन तँ आब रामअधीने नेता किने?

डोमन पँच सभ केँ चटाइ पर बैसा रहल छल आ सोमन माथा-हाथ देने खाम्ह मे ओङठल, जेना किछु हरा गेल होइ। टील भरिक मौगी सभ कारी मड़रक अँगना मे घोदिया गेल रहैसोमन आ डोमनक भैयारी-बँटवारा देखलेल। ओना दुनू भाइक झगड़ा आब पुरना गेल रहै। मौगी सभक कुकुर-कटाउझ सँ टोल भरिक लोक आजिज भग्र्ल रहय तेँ रामअधीन नेता डोमन केँ तार ददिल्ली सँ बजबौलकै। सभ दिनक हर-हर खट-खट सँ नीक बाँट-बखरा भइए जाय।

झगड़ाक जड़ि सीलिंग मे भेटलाहा वैह दसकठबा खेत छिऐ जे सोमनक बापे केँ भेटल रहै। रामअधीन नेताक खेतक आरिये लागल दसकठबा खेत। कैक बेर रामअधीन नेता, सोमनक बाप पँचू सदाय केँ कहने रहै जे हमरे हाथेँ खेत बेचि लैह, मुदा पँचू सदाय नठि गेल रहै। रामअधीन नेता आशा लहौने रहए जे बेटीक बियाह मे खेत भरना राखहि पड़तनि, मुदा पँचू सदाय आशा पर पानि फेर देने छलै। एकहक टा पाइ जोगाकबेटीक बियाह सम्हारि लेलक तेँ खेत नइँ भरना लगेलक। मरै सँ चारि दिन पहिनहि पँचू सदाय सोमन आ डोमन केँ खेतक पर्ची दैत कहने रहै,ई पर्ची सरकारक देल छिऐ, जोगाकरखिहेँ बौआ, बोहबिहेँ। नइँ। दस कट्ठा केँ बिगहा बनबिहेँ, भरि पेट खाइत देखिकसभकेँ फट्टै छनि। बगुला जकाँ टकध्यान लगेने रहैए।

डोमन बापक मुइलाक बाद परदेश मे कमाय लागल रहय आ सोमन गामे मे अपन खेतीक संग-सग मजूरी। फसिलक अधहा डोमनक बहु रेवाड़ीवाली केँ बाँटि दैक। मुदा, जेठकीसियादिनी महरैलवाली केँ ईबड्ड अनसोहाँत लागै, मर्र, ई कोन बात भेलै, पसेना चुवाबै हमर साँय, चास लगाबबेर मे सभ निपत्ता आ बखरा लेबबेर गिरथाइन बनि जायत। लोकक साँय बलू गमकौआ तेल-साबुन डिल्ली से भेजै हय तहम कि हमर धीया-पुत्ता आरु सुङहैयो लेजाइ हय्।

सभ दिन कने-मने टोना-टनी दुनू दियादिनी मे होइते रहै। मुदा, ओहि दिन जे भेलै...

सोमन गहूँम दौन कदू टा कूड़ी लगा देलक आ नहाय लेचलि गेल। गहूमक सऊँग देह मे गड़ैत रहै। रेवाड़ीवाली अपन हिस्सा गहूम पथिया मे उठाबलागल रहए कि देखते जेना महौलवाली केँ सौंसे देह मे फोँका दड़रि देलकै, रोइयोँ नइँ सिहरै हय जेना अपने मरदबाक उपजायल होइ। रेवाड़ीवाली कोना चुप रहितय ? कोनो कि खेराअँत लै छै? झट दजवाब देलकै, कोनो रंडियाक जिरात नइँ बाँटै हय कोइ अधहाक मालिक छिऐ छाती पर चढ़िक बाँटि लेबै।रंडियाशब्दा महीरैलवालीक छाती मे दुकैम जकाँ धँसि गेलै-बरबनाचो...के लाज होइ हय बजैत साँय मुट्ठा भेजै हय आइँठ-कुइठ धोइ कआ एतई मौगी थिराएल महिंस जकाँ टोले-टोल डिरियायल फिरै हय, से बपचो...हमरा लग गाल बजाओत। सुनिते रेवाड़ीवालोक देह मे जेना जुरपित्ती उठि गेलै ओ हाथ चमकबैत महरैलवालीक मुँह लग। चलि गेल, ऐ गै धोँछिया निरासी! तूँ बड़ सतबरती गै! हे गै उखैल कराखि देबौ गै। भरि-भरि राति सुरजा कम्पोटर पानि चढ़ा-चढ़ा कबेटीक ढीढ़ खसेलकौ से ककरा सनुकायल हौ गै? कोना बलू फटा-फटि बेटीक दीन कससुरा भेज देलही।

बेटीक नाम सुनिते महरैलवालीक तामस जवाब ददेलकै झोँ टा पकड़िकरेवाड़ीवाली केँ खसा देलक। दुनू एकदोसराक झोँ ट पकड़ने गुत्थम-गुत्थी भेल। ओम्हर सँ सोमनक बेटा गँगवा हहासल-फुहासल आयल आ मुक्के-म्य्क्की रेवड़ीवाली केँ पेटे ताके मारलागल। रेवाड़ीवाली एसगर आ एमहर दू माइ-पूत। कतेक काल धरि ठठितया, ओ बपहारि काटलागल। टोल पड़ोसक लोक सभ जमा भगेल रहै, दुनू केँ डाँटि-दबाड़ि ककात कयलक। दुनू दियादिनीक माथक अधहा केस हाथ मे आबि गेल रहै।

ओहि राति रेवाड़ीवालीक पेट ने तेहन ने दरद उखड़लै जे सुरज कम्पोटर पानि चध्आ कथाकि गेलै, मुदा नइँ सम्हरेलै। चारिये मासक तँ भेल रहै, नोकसान भगेलै। बेहोसियो मे रेवाड़वाली गरियबिते रहलै, ईडनियाही हमरा बच्चा केँ खा गेल। सोचै हय कहुना निर्वश भजाय जे सभ टा सम्पैत हड़पि ली। डनियाहीक बेटा मरतै। धतिंगबाक हाथ मे लुल्ही-करौआ धरतै। काटल गाछ जकाँ अर्रा जेतै...।

दिसरे दिन रेवाड़ईवाली थाना दौगल जाइत रहे, रिपोट लिखाव। रस्ता सँ रामअधीन नेता घुरेने रहै, समाजे मे पँचैती भजैतौ आ नेताजी सोमन केँ मार’-मास्क छूटल रहै, रौ बहि सोमना। मौगी केँ पाँज मे राखबेँ से नै। आइए सरबे सब परानी जहल मे चक्की पिसैत रहित। मडर केस भजइतौ। सरबे हाइकोट तक जमानति नहि होइत। सोमन बीतर धरि काँपि उठल रहय। नहि जानि पँचैती मे की सभ हेतै। एक मोन भेलै, जाय आ पटुआ जकाँमहरैलवाली केँ डंगा दैक। , छिनरी के हरदम फसादे वेसाहैत रहैए। रामअधीन नेताक अबिते पँचैतीक करबाइ शुरु भगेलै। फौदारक चीलम सँ निकलैत धुँआक टुकड़ी किछु दूर उपर उठि बिला जाइत रहे गंधक माध्यम सँ अपन उपस्थितिक आभास दैत एअहय।

हँ तडोमन किऐ बैसेलही हेँ पँचैती, से पँच केँ कहबिही किने रामअधीन नेता बाजल। डोमन ठाढ़ होइत बाजल, हम परदेस कामाइ छिऐ। रेवाड़ीवाले एतएसगर रहै हय। पँचू सदाय बलू भैयाक बाप रहै तहमरो बाप रहै। हमहुँ पँचूए सदायक बुन्न सजनमल छिऐ आ बोए केँ सरकार जमीन देने रहै महंथ सछीनिक। अइ जमीन पर जतने अधिकार एकर हइ ओतने हमरो हय। तहन जे सब मिलि करेवाड़ीवालीक गँजन केलकै, तकर निसाफ पँच आरु कदइ जाउ। हमरा आर कुछो नइँ कहनाइ हय। सब चुप...फेर नेतेजी सोमन केँ टोकलके, की रौ। तोहर की कहनाम छौ?

आब हम बलू की कहबै ? जे भगेलै से तघुरिक नइँ एतै ग। समाज आरूक बीच मे छिऐ। जते जुत्ता मारै केँ हइ, मारि लौ। दुनू मौगी रोसाएल रहै, तहन तबलू ओकर नोकसान भगेलै तेँ ओकर दिख त लोक नइँ देतै। तहन जे भगेलै से भगेलै। पंच आरू मिलिकबाँट-बखरा कदौ। खेतो केँ आ घरो केँ। झगड़े समापत भहेतै।

रौ बहिं सिमना, बात केँ लसियबही नइँ। तहन तअहिना ककरो कियो खून कदेतै आ समाज मुँह देखैत रहतै। कोना बभना आरू पुक्की मारै जाइ हइ से तूँ सभ की जानगेलही। परसू बेलौक पर सार मुखिया हमरा देखि-देखिकहँसैत रहय, चुटकी लैत रहय, की हौ रामअधीन! जहन टोले नइँ सम्हरै छबिधायक बनलाक बाद पूरा एलाका कोना सम्हरतह? सुनै छियएहि बेर टिकट तोरे भेटत। चलअइहबा मे पार लागिऐ जेत।... नेताजी गुम्हरल, टिकटेक नाम सुनिकसार सब केँ झरकै छनि, आगू की सभ जरतनि? रामअधीन नेता एक बेर मोँ छ केँ चुटकी सँ मीड़ि उपर उठेक फेर आक्रामक मुद्रा बनबैत बाजल, सुनि ले बहिं, से सभ नइँहेतौ। गलती दुनू के छौ। पाँच-पाँच हजार दुनू केँ जुर्बाना देमपड़तौ, जातिनाम खाता मे। नेताजीस्वाभाविक गति सँ पुन: एक बेर मोंछक लोली केँ चुटकी पर चढ़बैत मड़र कका दिस देखलनि, की हौ मरड़ कका बजैत किऐ ने छहक? मड़र कका बदहा जकाँ मूड़ी डोला देलकै।

डोमन भाइ सँ बदला लैक धुन मे एखन धरि गुम्हरि रहल छल, मुदा नेताजीक बात सुनिते झमान भखसल। एक मोन भेलै, कहि दैजे भेलै से भेलै भैयारी मे। नइँ करेबाक यपंचैती। ई किन बात भेलै ! हमरे बहु मारियो खेलक आ जुर्बान सेहो हमहीं दियौ, मुदा चुप रहल। डरें बाजल नइँ भेलै। डोमन केँ देखल छै जे रामअधीन नेता पंचैती नइँ माननिहार केँ कोना ताड़क गाछ मे बान्हिकपीटै छै। एखन धरि जुर्बाना वला पचासो हजार टाका जातिनाम खाता मे गेल हेतै, मुदा हिसाब? ककर बेटी बियेलैहेँ जे रामअधीन नेता सँ हिसाब माँगत!

रामअधीन नेताक पी.ए. जकाँ हरदम संग रहनिहार मोहन सदाय बाजि उठल, की रौ सोमना, हम दुनू भाइ सपुछै छियो; कहिया तक पाइ जमा कदेमही ? एक सप्ताह सबेसीक टेम नइँ देल जेतौ। अहि पाइ सकोनो छिनरपन नइँ हतै, सारबजनिक काम हेतै। दीना-भदरीक गहबर बनतै।

कतौ सचोरी कए कनइँ आनबै हमर हालति बलू ककरो सनुकाएल तनइँ हय। सोमन कलपल।

मोहन सदाय केँ रामअधीनक कृपा सँ जवाहर-रोजगार वला ठिकेदारी सभ भेटलागल छै। सीओ, बीडीओ केँ चेम्बरे मे बंद कदैत अछि आ मनमाना दस्तखत करा लैत अछि तेँ ओकरा सभ टभजियायल छै जे घी किना निकालल जाइत छै। ओ सभक चुप्पी केँ तौलैत मड़रककाअक नाड़ी पकड़लक की हौ मड़र कका! तोरा आरूक की बिचार छह? दीना भदरीक गहबर मे ओ पाइ लागि जाए तनीके किने ?

मरड़ कका आइ दस साल सँ हरेक पंचैती मे अहिना दीना-भदरीक गहबर बनैत देखि रहलछैमुदा एखनो दीना-भदरीक पीड़ी पर ओहिना टाँग अलगा ककुकूर मुतिते छै। मड़रकका मने-मन कुकू केँ गरियेलक, सार, कुकूरो केँ कतौ जगह नइँ भेटै हय, देबते-पितरक पीड़ी केँ घिनायत। खैनीक थूक कठ धरि ठेकि गेल रहै, पच्चा दफेकैत बाजलजे तूँ सभ उचित बुझही !

पंचैती मे रामधीन नेता आ मोहन सदाय बजैत जा रहल छल। बाकी सभ पमरियाक तेसर जकाँ हँ मे हँ मिलबैत। सोमन पंच सभक मुँह ताकि रहल अछि, मुदा दिन भरिक हट्ठाक थाकल-ठेहियायल पंच सभक मुँह स्पष्ट कहै छै जे कतेक जल्दी रामअधीन नेता निर्णय दै आ ओ सभ निद्राक कोरा मे बैसि रहय। मड़र ककाक हुँहकारी सँ मोहन सदायक मनोबल एक इँच आरो उपर उठलै। ओ बाजल, नगदी ई दुनू भाइ जमा कसकत से उपाय तनइँ छै तहन पाइ कोना एकरा सभ केँ हेतै, तकरो इन्तिजाम तआइए भ्जेबाक चाही। आब अहि लेदोसर दिन तबैसार नइँ हेतै। हम्र एक टा प्रस्ताब छै जे दुनू भाइक साझिया दसकठबा खेत ताबत केओ दस हजार मे भरना ललौ। जहिया दुनू भाइ पाइ जमा कदेतै तहिया खेत घुरि जेतै।बिना ककरो विचार लेनहि मोहन सदाय डाक शुरु कदेलक, बाजके लेबहक! जमीन अपने टोला मे रहतै बभनटोली मे नइँ जेनाय छै खपटा ल

सभ चुप्प!

फेर मोहन सहाय बाजल, जँ नइँ कियो लेबहक तनेताजी सोचतै, टोलक इज्जति तबलू बचाबपड़तै ओकरे किने। अंतिम श्ब्द बजैत मोहन सदायक आँखि नेताजीक आँखि सँ टकरा गेलै। मड़रकका आँखि मुनने भरिसक कुकूरे केँ खिहारि रहल छलाह। खैनीक सेप मुँह मे एतेक भरि गेल रहनि जे कने घोँ टाइयो गेलनि। खूब जोर सँ खखसैत बजलाह, :सुनि लेबहिं पिछला बेर जकाँ एहू बेर नइँ पजेबा खसि कउठि जाइ। मड़र ककाक शंका मे आरो एक-दू गोटा अपन हामी भरलक। मोहन सदाय पहिनहि सँ तैयार रहय, झट दबाजि उठल, नइँ हौ। दसक हहास बलू अपना कपार पर के लेत? जुर्बानाक पाइ देबते-पितर मे जेतै। दीना-भदरी संगे जे सार फ़द्दारी करत, तकरा घर पर खढ़ो बचतै ? घटतै तएक-दू हजार नेताजी अपन जेबियो सलगा देतै। कोनो अंतजेतै? धरम-खाता मे जमा रहतै। बभना आरू जेहन डीहबारक गहबर बनेलकै, ओहू सनिम्मन दीना-भदरीक गहबर बनतै।

महरैलवाली बड़ी काल सँ मुँह दबने रहय। आब ओकर धैर्य जबाव ददेलक, हइ के हमर जमीन लेतै? दीना-भदरीक गहबर बनै लेहमरे जमीन हइ। मोंछवला सभ बेहरी दबनेतै से नइँ। रेवाड़ीवाक्लीक हृदय सेहो आब बर्फ भगेल रहय। दियादनीक बात मे ओकरो मौन समर्थन रहै।

रामअधीन नेता केँ कहियो-कहिओ दिन तका कतामस उठै छै जहन ओकरा मोनक विपरीत कोनो काज होइत छै। एहन परिस्थिति मे नेताजी टोल भरिक छौड़ी-मौगी सँ गारिक माध्यम सँ लैंगिक संबंध स्थापित कलैत छथि। छिनरी केँ तूँ बीच मे बजनाहर के? हम सोमना नइँ छी, ततारि देब। नेताजी मारैक लेल हाथ उठेलनि। महरसिलवली नेताजीक लग मे आरो सटैत बाजल, माय दूध पियेने हइ तमारि कदेख लौ। नेताजीक हाथ थरथरा गेलनि मुदा मुँह चालू मुँह सम्हारि कबाज मौगी नइँ तचरसा घीचि लेबौ। आगि-पानि बारि देबौ, देखै छी कोना गाम मे तूँ रहि जाइत छें।

है केहन-केहन गेलै तमोछवला एलै। बहरा गाम मे रहि जेबै तें जमीन पर नइँ ककरो चड़हदेबै। ई नेताबा आरू गुरमिटी कक जमीन हड़प चाहै हय। जमीन भरना लेनिहार केँ तखपड़ी सचानि फोड़ि देबै। दीना-भदरी गरीबेक जमीन लेतै। अइ नेताबा आरूक कपार पर हरहरी बज्जर खसतै। घुसहा पंच सभ केँ मुँह मे जाबी लागि गेल हय। निसाफ बात बजैत लकबा नारने हइ।

महरैवालीक ई हस्तक्षेप सोमनक पक्ष केँ आरो कमजोर कदेलकै। पंच सभ सोमन केँ धुरछी-धुरछी करलगलै। फौदार कहलकै, रौ बहिं सोमना, ई मौगी ठिके झँझटिक जड़ि छियौ। एकरा अँगना कबइलेबेँ से नइँ? गाइरे सुनबै लेपंच आरू केँ बजेलही हें। सोमन केँ भरल सभा मे ई बेइज्जती बड़ अखड़लै जहन मरदा-मरदी बात होइ हय तई मौगी किऐ बीच मे टपकै हय। सोमन, महरैलवालीक ठौठ पकड़ि कअँगना मे जा कधकेलि देलक। महरैवाली आँगने सँ गरियाबैत रहल, अइ मुनसा केँ तजे नइँ ठकि लइ। बोहा दौ सभ टा। नेतबा सभ ततौला मे कुश दरखनै हय।

आब नेताजीक तामस मगजो सँ उपर चढ़ि गेल, ई सार सभ ओना नइँ सुधरत। एखने बभना आरू दस टा गारि दैतनि आ चारि डंटा पोन पर मारितन्हि ततुरते पंचैती मानितय। कोन सार पंचैती नइँ मानत से हमरा देखनाइ यए। नेताजीक ठोरक लय पर मोंछो थरथरा रहल छल ! सरबे सभ केँ हाथ-पयर तोड़िकराखि देबनि। घर मे आगि लगा कभक्सी झोंकान झौकि देबनि। देखै छी कोन छिनरी भाइ दरोगा हमरा खिलाफ एन्ट्री लैयए। चारू भर श्मशानक नीरवता पसरि गेल छल। पंच सभ आगाँक बातव् केँ रोकबाक लेल डोमन आ सोमन दिस याचक दृष्टएँ ताकि रहल छल। मोहन सदाय कागत-कजरौटी निकालैत सोमनक कान मे बाजल, की विचार छौ, फसाद ठाढ़ करबें? आ फेर सोमनक थरथराइत औंठा पकड़िककजरौटी मे धँसा देलक। अही बीच महरैलवाली वसात जकाँ हहाइत आयल आ दुनू हाथ सँ कागत आ कजरौटी केँ पकड़ि कओहि पर सूति रहल! ओ बाजय चाहैत रहय, मुदा मुँह सँ आवाज नहि निकलि रहल छलै। रामअधीन नेता कागत आ कजरौटी महरैलवालीक हाथ सँ छीनचाहैत छल, मुदा महरैलवाली पाथर भगेल रहय। जेना ओ कागत नहि, ओ दसकठवा खेत हो जकरा ओ अपना छाती सँ अलग नहि करचाहैत रहय।

छिनरी केँ तू एना नहि मानवें। महरैलवालीक मुँह पर घुस्सा मारैत ओकर मुट्ठी केँ हल्लुक करचाहलक।

एम्हर रेवाड़ीवालीक चेहरा तामसे लाल भगैल रहै। ओकर सभ टा चिद्रोह नेता सभक कूटनीति केँ बुझिते पिघलि गेल रहै। ओ डोमनक देह झकझौरैत बाजल, बकर-बकर की ताकै छ। नारने पूतखौका नेताबा आरू केँ। जब खेते नहि बचतबाँटबकी? रेवाड़ीवालीक ई रूप देखि नेताजीक हाथ ढील हुअलागल। पंच सभ हतप्रभ रेवाड़ीवाली दिस ताकलागल।

श्याम सुन्दर शशि

श्याम सुन्दर शशि

जनकपुरधाम, नेपाल। पेशा-पत्रकारिता। शिक्षा: त्रिभुवन विश्वविद्यालयसँ, एम.. मैथिली, प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। मैथिलीक प्रायः सभ विधामे रचनारत। बहुत रास रचना विभिन्न पत्र-पत्रिकामे प्रकाशित। हिन्दी, नेपाली आ अंग्रेजी भाषामे सेहो रचनारत आ बहुतरास रचना प्रकाशित। सम्प्रति- कान्तिपुर प्रवासक अरब ब्यूरोमे कार्यरत।सम्‍पादक


मरदे कि बरदे

भगवान भाष्करक प्रचण्ड प्रतापकेँ सम्हारि सकब धरती मैआक वास्ते कठिन भऽ रहल छलनि। मैया अपरतीव छलीह। चण्डलवाक प्रलयंकारी रौद्र अवतारसँ अपने बाचथु कि अपन सखा सन्तानकेँ बचाबथु? अपन मथा साहुर, साहुर करबाक अवस्था सेहो नहि छल। मिथिलाक धरती थोरै छैक जे यत्र तत्र सर्वत्र हरियरी रहतै। लोक अपनो जुराएत आ लोकोकेँ जुरौतैक? ई कतार छै भाई। कतार। एत्त गाछ वृक्ष कत पावि? धनीमानीलोक ऐजुवा (वगैचा) लगबैत छथि। जेना लोक धीया पूताकेँ दूध पियाकऽ पोसैत अछि। तहिना पोसैत अछि एतुका सेखसभ गाछ-वृक्ष। ककरो मजाल छै जे ओहि गाछक नीचाँ सुस्ता लेत..। तुरन्त वन-विनाश कानूनक अन्तर्गत शख्त कार्यवाही भऽ जएतैक। आ ओऽ गाछ वृक्ष होईतो नहि अछि सुस्तैवा योग्य। एक कविक कवित जकाँ वड़ा हुआ तो क्या हुआ लम्बे पेड़ खजुर। पंछीको छाया नही फल लागे अति दूर.. डारँ मोरवाक योग्य छाहरि नहि। बूझि परैत छल, दोहाक समुद्र वाष्‍प भऽ कऽ उड़ि जाएत। सड़क उपरके अलकरा पघलि रहल छल। सरकार एहि गरमीक महिनामे दुपहरमे काज करबापर पाबन्दी लगौने छैक। तथापि देश विदेशक मजुरसभ अपन-अपन ओभर टाईम पका रहल छल। भगवान भाष्करसंगक महासमरमे लागल छल। धरती पुत्रलोकनि। धरती तँ आखिर धरती छैक ने। अपन जनम धरती हो कि करम धरती...।

एहि रौदसँ बेपरवाह लक्ष्मण पैघ-पैघ डेग मारैत आगाँ बढ़ि रहल छल। कोनो अभेद्य लक्ष्यकेँ भेदन करबाक योजनामे आगू बढ़ि रहल चोटाएल, हारल योद्धा जेकाँ। एहि बेरक समरमे विजयश्री प्राप्त करबाक दृढ़ सन्कल्पित छल ओऽ। ओकरा ठेकान नहि छलै जे ओकर समग्र देह घामे पसिने भिजी गेल छैक। ओऽ कारी झामर भऽ गेल अछि। ओऽ बस आगू बढ़ि रहल छल, अपन गंतव्य दिस। ओकर गन्तव्य छलै, दोहाक अतिव्यस्त इलाकामे अवस्थित नेपाली दूतावास। जतए ओकर प्रेयसी गत एक सप्ताहसँ शरणागत छैक। मुदा किछुए किलोमीटरक दूरीपर अवस्थित रहलाक बावजूदो ओऽ हुनकासँ भेटि नहि सकल अछि। ओऽ सीधा दूतावासमे प्रवेश कएकऽ मुदा तुरन्ते पाछाँ घुमि गेल। चार दिवालीक ओटमे ठाढ़ भऽ जिन्सपेन्टक पछिला जेबीसँ कंघी निकाललक। केस सीटलक। कपड़ा मिलौलक। आ कनेक सतर्क कदमसँ दूतावासक मेन गेटकेँ पार कएलक। दूतावास परिसरमे रहल नेबोक गाछक ओटमे बैसि ओकर प्रेयसी केस झारि रहल छलै। ओएह घुरमल-घुरमल केस। सुराही सन कमर आ सुडौल शरीर। पीठपर करिकवा तिलसँ ओऽ आओर निधोख भऽ गेल। ओऽ ओकरे रेशमा छैक। आगूसँ देखू कि पाछोसँ। ईस्स। ओकरा मोनमे टिस जेकाँ उठलै। मोन भेलै जे पाछेसँ जाऽ भरि पाजकँ पकड़ि ली आ गत ९ महिनाक हिसाब-किताब माँगी। ओऽ आगू सेहो बढ़ल मुदा रेशमाक केश जखनसँ खुजल रहैक तखनेसँ दूतावासक चौकीदार सेहो ओकरे दिस ताकि रहल छलै। लक्ष्मणकेँ हिम्मति नहि भेलै अपने प्रेयसीक हाथ धरि पकड़बाक। जहन दुनूक आँखि मिललैक तँ दुनूक नयनसँ अनन्त अश्रुधारा बहि गेलै। एक दिस लक्ष्मण छल, दोसर दिस रेशमा आ बीचमे रहैक गाछ। जकरा साक्षी राखि दुनू ९ महिनाक हिसाब किताब फरियौलक। लक्ष्मण एतबे बाजल “हम तँ बरद जेकाँ बहिए रहल छी, एहि मरुभूमिमे, अहाँ दुधपिया बौवाकेँ छोड़िकऽ किएक आबि गेलौ?

कतारक मैथिल भेड़ा चरवाह-

कतारक सदरमुकाम दोहासँ लगभग एक सय किलोमीटर दूर जमालिया स्थित मरुभूमिक छातीपर बनाओल गेल भेड़ाक गोहियाक आगू ठाढ़ भऽ एक गोट युवक सिटी बजा रहल छल। महाभारतकालीन कृष्ण जकाँ। जनु अपन गोप आ गोपीकेँ लग बजेबाक उपक्रम कऽ रहल हो। मुदा एहि मरुभूमिमे ने गाई अएबाक कोनो सम्भावना छलै आ ने गोपी। मुदा बकरी आ भेड़ा धरि अवश्य आबि गेल ओकर सिसकारी सुनिकए। दिनभरि ५० डिग्रीक ताप छोड़ि स्वयं थकित सुरुज भगवान संध्या रानीसँ रसकेलि करबाक धुनमे पश्चिमाचलगामी वाट पकड़ि लेने छलाह। पश्चिमसँ आवएवला सेनुताएल प्रकाश मरुभूमिक वालुपर पड़ि मलिछाह आकृति बना रहल छल। मरुभूमि पिलिया ग्रस्त रोगी जकाँ बेजान देखना जाऽ रहल छल। पछिया हवा सांय सांय कऽ रहल छल। हावाक गतिसंग वालुक छोट-छोट कण उड़ि-उड़ि राहगीरकेँ घायल बना रहल छल। बूझि पड़ैत छल जे प्रलयकेर पूर्व संकेत हो। चारुकात वियावान मरुभूमि आ एहिमे उगल एक आध बबूरक पौध। हम बेर-बेर सोचैत रहैत छी जे धन्य बबूर, ऊँट आ सार्कदेशक दुखिया मजुरसभ जे एहि भूमिकेँ धरती होएबाक ओहदा प्रदान करैत छैक। अन्यथा...??

http://www.videha.co.in/11.jpg

मुदा ओऽ युवक शान्त छल। एक क्षणक बाद सुरुज अस्त भऽ जएतै, सगर सन्सार अन्हार भऽ जएतै आ सयौ विगहामे पसरल मरुभूमिपर कारी रंगक चादर ओछा जाएत। ओऽ अन्हार होएबासँ पहिनहि अपना अधकि भेड़ा आ बकरी गोहियामे घुसियावए चाहैत छल। कर्तव्य परायण मनुपुत्रक रूपमे अपन दायित्व निर्वाह करए चाहैत छल।

एहि तरहेँ अपन ईसारापर कृष्ण जकाँ भेड़ा-बकड़ीकेँ नचावएवला युवक के नाम छल महेन्द्र कापर। नेपालक सिरहा जिल्लाक कमलाकात भेड़िया गामक ई मैथिल युवक, विजुली, पिवाक पानि, सड़क आ स्वास्थ्यादि सुविधासँ विहीन एहि मरुभूमिमे गत एक वर्षसँ एहिना भेड़ा वकरी चड़वैत अछि। महेन्द्र कापर मात्र नहि, एहि मरुभूमिक विभिन्न भागमे बनाओल गेल विभिन्न भेड़ा, बकड़ी आ ऊट बथान तथा लगाओल गेल वगैचामे हजारौं नेपाली, भारतीय, वंगलादेशी, श्रीलंकन आ सुडियन मजुरसभ काज करैत अछि। अपना सभ दिस एक गोट कहबी नहि छैक जे, “जएवह नेपाल, संगहि जएतह कपार”। तहिना ई युवक सभ अपन करम भोगि रहल अछि। ओऽ सभ अबैत काल जे दोहा देखने छल, चकमक विजुलीवत्ती देखने छल आ चिक्कन चुनमुन फोरलेन सड़क देखने छल से घुरैत काल फेर देखत। ओकरा सभक वास्ते दोहा सहर दिल्ली दूर छैक।

http://www.videha.co.in/22.jpg

महेन्द्र जमालियाक एहि अन्कन्टार मरुभूमिमे गत एक वर्षसँ काज करैत अछि। ओकरा जिम्मामे दू सय भेड़ा आ बकड़ी छैक। हमरा सभकेँ देखिते ओकर आँखिमे विशेष प्रकारक चमक व्याप्त भऽ गेलै, मुखमण्डलपर खुशीक रेखा नाचए लगलैक। साँझ पड़ि रहल छैक ओकरा लालटेम नेसवाक छैक, रातुक खाना बनेवाक छैक आ खुला आकाशक नीचाँ तरेगन गनैत राति बितेवाक छैक। गत एक वर्षसँ महेन्द्रक ई दैनिकी बनि गेल छैक। ईजोरिया रातिक चानकेँ देखि ओऽ अतिशय प्रसन्न होइत अछि, “ई चान हमरो बाऊ आ माय आउर सेहो देखैत होतै नञि”? ओकर निश्चल प्रश्न हमरा भावुक बना देने छल।

ओऽ भेड़ा आ बकरीकेँ गोहियामे गोतैत अछि। पठरूसभकेँ दूध पियबैत अछि। चारा रखैत अछि आ चैन भऽ हमरा सभसँ गप्प करवा वास्ते बैसि जाइत अछि। ओऽ एक वर्ष पूर्व कतार आएल छल। मानव तस्करसभ ओकरा कहने रहैक जे वगैचाक काज छैक। ओऽ सोचने रहय जे फलफूलमे पानि पटाएव, रोपव उखारव आ रियाल कमाएव मुदा से भेलै नहि। ओऽ भेड़ा चरवाह बनि कऽ रहि गेल। असलमे महेन्द्र अपने निरक्षर अछि। ओकर कतार आगमनके उद्देश्य छलै गाममे घर बनाएव आ बेटा-बेटीकेँ बोर्डिंग स्कूलमे पढ़ाएव। मुदा ओकर एक वर्षक श्रमसँ ई संभव नहि भऽ पाओल छैक। एक वर्षमे तँ महाजनकेँ ऋणो नहि फरिछाओल छैक। एहि वास्ते ओकरा आओर दू वर्ष एहि मरुभूमिक वालुकेँ फाकय परतैक। अवैत काल दलाल ओकरासँ ७५ हजार रुपैया लेने रहैक। जे ओऽ महाजनसँ ऋण लऽ कऽ चुकता कएने छल।

जहन महेन्द्रक गप्पक बखारी खुजलै तँ फेर बन्द होएवाक नामे नहि लैक। ओकरा तँ ओहि गोहियामे राति बितैवाक छलै मुदा हमरा सभकेँ सय किलोमीटर दूर दोहा अएवाक छल। हमरा सभक धरफड़ीकेँ ओऽ अकानि गेल छल। कहलक सर, कहियोकाल अवैत जाइत रहब। भेड़ा बकड़ी संगे रहैत-रहैत ओहने भऽ गेल छी, देखियौ चाहो पानिक लेल नहि पुछलहुँ। आ कपड़ा लपेटल एकगोट पानिक बोतल आगाँ बढ़ा देलक। “हमरा सभक फ्रिज बुझू कि एयर कन्डीशन ईहे अछि”।

http://www.videha.co.in/33.jpg

गर्मीसँ सुखाएल कण्डकेँ पानिसँ भिजाओल आ अपन गन्तव्य दिस आगाँ बढ़ि चललहुँ। लगभग दश किलोमीटर वाट तय कएलाक बाद हमरा लोकनि जमालिया नगरमे पहुँचलहुँ। मुसलमान धर्मावलम्बी सभक रोजा खोलवाक समय भऽ गेल रहै। सड़क कातमे बनाओल गेल चबुतरापर नाना प्रकारक व्यंजन साँठल जाऽ रहल छल। लोक विस्मील्लाह करवालेल तैयार छलाह। हमरा मोन पड़ल महेन्द्रके गोहियामे राखल खवुज (कतार सरकारक सस्ता दरक रोटी) आ प्याउजक धेसर। एसगर महेन्द्र एखन नून, मिरचाई आ तेल प्याउजक संग खवुज दकरि रहल हएत। एतए ओकरेद्वारा पोसल गेल खस्सीक विरयानीक स्वाद लऽ रहल अछि मालिक आउर।

दोहा, कतार, जमलिया।

श्यामल किशोर झा

श्यामल किशोर झा

लेखकीय नाम श्यामल सुमन, जन्म १०।०१।१९६० चैनपुर जिला सहरसा बिहार, स्नातक। शिक्षा:अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र एवं अंग्रेजी, विद्युत अभियंत्रणमे डिपलोमा, प्रशासनिक पदाधिकारी,टाटा स्टील, जमशेदपुर,स्थानीय समाचार पत्र सहित देशक अनेक पत्रिकामे समसामयिक आलेख, कविता, गीत, गजल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित, स्थानीय टी वी चैनल एवं रेडियो स्टेशनमे गीत गजल प्रसारण, कैकटा कवि सम्मेलनमे सहभागिता ओ मंच संचालन। सम्‍पादक


प्यास

हमर गाम छूटि गेल, पेट भरवाक लेल!

भूख लागल अछि एखनहुँ, उमरि बीत गेल!!

हमर गाम छूटि गेल, पेट भरवाक लेल! 

नौकरी की भेटल, अपनापन छूटल!

नेह डूबल वचन केर आश टूटल!!

दोस्त यार कतऽ गेल, नव-लोक अपन भेल!

गाम केर हम बुधियार, एतऽ बलेल!!

हमर गाम छूटि गेल, पेट भरवाक लेल! 

आयल पावनि-त्योहार, गाम जाय केर विचार!

घर मे चर्चा केलहुँ तऽ, भेटल फटकार!!

नहि नीक कुनु रेल, रहय लोक ठेलम ठेल!

कनियाँ कहली जाऊ असगर, बन्द करू खेल!!

हमर गाम छूटि गेल, पेट भरवाक लेल! 

की कहू मन के बात, छी पड़ल काते कात!

लागय छाती पर आबि कियो राखि देलक लात!!

घर लागय अछि जेल, मुदा करब नहि फेल!

नवका रस्ता निकालत, सुमन ढ़हलेल!!

हमर गाम छूटि गेल, पेट भरवाक लेल!