भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

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स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

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Friday, May 8, 2009

डॉ शुभ कुमार सिंह

डॉ शुभ कुमार सिंह

जन्म: 18 अप्रील 1965 सहरसा जिलाक महिषी प्रखंडक लहुआर गाममे। आरंभिक शिक्षा, गामहिसँ, आइ.ए., बी.ए. (मैथिली सम्मान) एम.ए. मैथिली (स्वर्णपदक प्राप्त) तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। BET [बिहार पात्रता परीक्षा (NET क समतुल्य) व्याख्याता हेतु उत्तीर्ण, 1995] मैथिली नाटकक सामाजिक विवर्त्तन विषय पर पी-एच.डी. वर्ष 2008, तिलका माँ. भा.विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। मैथिलीक कतोक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे कविता, कथा, निबंध आदि समय-समय पर प्रकाशित। वर्तमानमे शैक्षिक सलाहकार (मैथिली) राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर-6 मे कार्यरत।सम्‍पादक


दूभि

09 मई 2008 क बात थिक। गाम गेल रही। साँझ चारि बजे तरकारी किनबा आ घुमबाक लाथे तिरंगा चौक दिस चलि गेलहुँ, घुरैत काल स्कूल लग अबैत-अबैत दीया-बातीक बेर भ गेलैक। गरमीक दिन छलैक मोन भेल कनी काल स्कूलक ओहि प्रांगणमे सुस्ता ली जतय कहियो बैसि हम अपन पाठ याद करैत रही। जहिना बैसबाक उपक्रम कयलहुँ कि एकटा अप्रत्याशित स्वर सुनबामे आयल... हे बाउ! ओतय नहि एमहर आउ। हम चौंकि गेलहुँ, देखैत छी तँ सरिपहुँ एकटा स्त्री हमरा सोझामे ठाढ़ छलीह आ बैसबाक आग्रह क रहल छलीह। हम बैसि गेलहुँ, हमरा सम्मुख ओ स्त्री सेहो बैसि गेलीह। हम साश्चर्य ओहि स्त्रीकेँ देखय लागलहुँ जिनक रूप-रंग किछु एना रहनि---हरितवर्णक शरीर ताहिपर हरियर रंगक मैल,पुरान-सन साड़ी जे कहुना हुनकर स्त्रीयांगकेँ झाँपने रहनि, ताहूमे कतोक ठाम पियन लागल, शेष शरीर उघारे बुझू। सम्पूर्ण शरीरमे छोट-पैघ घाव जाहिसँ पीज बहैत रहनि। एक-दू ठाम मैला सेहो लागल, जे दुर्गन्ध करैत छल। बामा जाँघ पर ढ़ल-ढ़ल करैत फोका, दहिना जाँघ पर गोदना जकाँ कोनो विशिष्ट आकृति, दुनू हाथ नोछड़ल जकाँ, माथक केश गोबरछत्ता जकाँ जाहिमे शिखर, पान-पराग, तुलसी, रजनीगंधा, माणिकचंद गुटखा, आदिक फाटल-चिटल पुड़िया, अखबार, कागदक टुकड़ी, जड़लका सिगरेटक पुत्ती आ टुकड़ी, सुखल गोबर, सूगरक मैला आदि-आदि सभ ओझरायल। एहि नारीक विचित्र ओ दयनीय दशा देखि हमर उत्कंठा बढ़ि गेल।

हम पुछलियनि-- अहाँ के छी?

ओ कहलनि-- हम दूभि थिकहुँ। वैह दूभि जाहि पर अहाँ एखन बैसल छी। वैह दूभि जतय बैसि अहाँ नेनपनमे नीरजक कविता पढ़ैत छलहुँ यह जीवन क्या है निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है, सुख-दुख के दोनो तीरों से चल रहा राह मनमानी है...।

हम फेर पुछलियनि अहाँक एहन दुर्दशा किएक ?

ओ बजलीह--- बाउ, हम देखि रहल छी जे अहाँ तखनसँ हमर अंग-प्रत्यंगकेँ खूब नीक जकाँ निहारि नेने छी। पहिने अहाँ बताउ, हमरा सुनबामे आयल अछि जे अहाँ साहित्यमे उच्च शिक्षा प्राप्त केने छी, ओहुमे मैथिली सन सरस साहित्यमे।

हम कहलियनिसत्ते कहलहुँ।

तखन संभव भ सकय त हमर एहि दयनीय दशाकेँ अहाँ कोनो पत्र-पत्रिकामे प्रकाशित करबा दिऔक। आ ओ आश्वस्त हैत बाजय लगलीहबाउ, हमर शरीर स्कूलक एहि हातामे पसरल दूभिक प्रतीक थिक तैँ हरियर। हमरा माथ पर जे अहाँ गुटखा, सिगरेटक टुकड़ी, अखबार आ कागदक टुकड़ी देखैत छी से एहि स्कूलक छौंड़ा-छौंड़ी सभक किरदानी थिक, हम अहाँकेँ कहैत जाइत छी आ अहाँ एमहर-ओमहर नजरि दौड़ा-दौड़ा क देखने जाउ....। हमर देह जे घावसँ दागल अछि से सिगरेटक जड़लका पुत्तीसँ, हाथ जे नोछड़ल देखैत छी से थिक मोद बाबू (मुखियाजी) क नोकरक किरदानी, ओ सभ दिन एतय आबि छिल्ला छिलैत अछि, दिनमे कैक बेर सूगर, महिस, गाय, बकरी आदि हमरा दूषित करैत रहैत यै, बाम जाँघ पर ई ढ़ल-ढ़ल फोका थिक वैह मंगरूआक लोकक किरदानी, ओ काल्हि राति चूल्हिक अँगोरा हमरा देह पर फेंकि देलक, आ हमरा दहिना जाँघ परक ई चेन्ह जकरा अहाँ गोदना बुझि रहल छी से वस्तुतः कोन चीजक आकृति थिक से हमरा कहितहुँ लाज लागि रहल ऐ, साँझहिकेँ, माने एखनसँ कनी कालक पश्चाते देखबैक जे एहि गामक गँजेरी छौंड़ा सभ हेज बनाकेँ आओत, सिगरेटमे भरि कए गाँजा पीयत आ हमरा झरका-झरका कए एहन अश्लील आकृति बनबैत अछि, हे! ओहिठाम देखियौक..., ई जे मैला देखि रहल छी, से थिक एहि आस-पड़ोसक स्त्रीगणक काज, कने रतिगर भेलाक बादे एक दिस सँ पथार जकाँ बैसि जाइत छथि। हे! ओमहर देखियौक हत्ताक कछेड़मे... की कहू बाउ, जीयब दूभर भ गेल अछि।

(एकटा दीर्घस्वास लैत) ओ फेर बाजय लगलीह--बाउ, अहाँकेँ अपन नेनपनक बात स्मरण अछि ने ? ताहि दिन प्रातः 10 बजे (प्रायः) स्कूल पहुँचलाक पश्चाते सभसँ पहिने सरस्वती वन्दना होइत छलैक जाहिमे शिक्षक-छात्र सभ क्यो भाग लैत छलाह। तकरा बाद श्रीवास्तव मास्टर साहेब सभ नेनाकेँ एक पतियानीसँ बैसा दैत छलाह, आ ओसब नेना एकहक टा कागद आ आन-आन सभ प्रकारक गंदगी सभ चुनि-बीछि लैत छल। हमर काया एकदम साफ भ जाइत छल। कक्षा सभमे जखन हाजरी होइत छलैक तँ नाम पुकारल जाइत छलैक, हरेराम, युगलकिशोर, शंभु, कुमारसंभव, चन्द्रकला, रहीम, कौशल्या, कतेक मधुर आ सार्थक नाम! सुनि कए मोन तृप्त भ जाइत छल। साँझ के नेना सब कबड्डी आ खो-खो खेलाइत जखन गिर जाइत छल तँ हम ओकरा बेसी चोट नहि लागय दियैक, वात्सल्यक अनुभव करैत छलहुँ तहिया। शनि केँ विशेष आयोजन होइत छलैक। शनिचराक गुर-चाउर बाकुटक-बाकुट नेना सभ खाइत छल, की कहू बाऊ, अहाँ सभक हाथ सँ गिरलाहा गुर-चाउर खयबा लेल हमहुँ शनि दिनक प्रतीक्षा करैत छलहुँ। दोसर पहरमे सांस्कृतिक कार्यक्रम होइत छलैक। जगदम्ब अहीं अवलम्ब हमर, हे माय अहाँ बिनु आस ककर...। कखन हरब दुःख मोर हे भोला बाबा...। दुनियाँ मे तेरा है बड़ा नाम, आज मुझे भी तुमसे पर गया काम....।अहाँकेँ तेँ स्मरण हेबे करत बाउ रमाकान्त एकबेर गयने छलाह चल चमेली बाग मे मेवा खिलाऊँगा.....ताहिपर मोलवी मास्टर साहेब हुनका चुत्तर पर ततेक ने छौंकी मारने रहनि जे बेचारेक सभटा मेवा घोसड़ि गेल रहनि। आ अहाँकेँ ओ अन्त्याक्षरी वला बात याद अछि की नहि? तहिया अन्त्याक्षरी मे कविताक पद्य सभ पढ़ल जाइत छलैक, अहाँ एकबेर पर अटकि गेल रही, गाब लगलहुँ—“ये मेरा दीवानापन था....अहाँकेँ मोलवी साहब बजा कए पुछने छलाह यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ......अहाँ काल्हिये ने याद केने छलहुँ, तँ बिसरि कोना गेलहुँ ? ” आ तकरा बाद हुनक छड़ी आ अहाँक दुनू हाथ। एकदिन रविशंकरक चुगली एकटा नेना क देने रहैक जे मास्टर साहेब ई अपन ककाक जड़लका बीड़ी पीबैत रहय एहि लेल श्रीवास्तव मास्टर साहेब रविशंकरकेँ रौद मे एक घंटा धरि अहीठाम मुरगा बना देने रहथि। ताहिदिन ककर मजाल रहैक जे एहि स्कूलक हाता मे क्यो गाय, महीस, आ बकड़ी-छकड़ी ल कए घुसि जायत। यैह मोद बाबू (मुखियाजी) क नोकर एतय एकबेर छिल्ला छिलय बैसल रहय, मुखियाजी हुनका ततेक ने गारि-बात दलकैक, तकर ठेकान ने।

ओ बजने जाइत छलीह आ हम अपन अतीतलोकमे विचरण क रहल छलहुँ। अचानक हम हुनका टोकि देलियनि-- अच्छा एकटा बात कहू, आइ काल्हि की एहन व्यवस्था नहि छैक एतय ? आब तँ देखै छियै जे ताहि दिन सँ बेसी सरकारक ध्यान शिक्षा पर छैक। लोक सेहो जागरूक भेल अछि शिक्षाक प्रति। हम त देखि रहल छी जे नीक भवन अछि, पानि पीबा लेल कल अछि, मूत्रालय अछि, शौचालय अछि, उचित संख्यामे शिक्षकगण छथि, आब की चाही?

ओ बजलीह-- औ बाउ! अहाँ जे किछु बजलहुँ सेहो साँचे थिक मुदा अहाँ आइ एलहुँ काल्हि चलि जायब। हम तँ कतोक बरखसँ एतहि छी आ प्रत्यक्षदर्शी छी, तैँ हमहुँ जे कहल आ जे कहब से फूसि नहि। एतय दूई भवन मे चारि टा कक्ष छैक आ विद्यार्थी 400 सयक करीब, एक तिहाई बच्चा कक्षमे बैसैत छैक आ शेष एहि हातामे आ ओहि बड़क गाछतर घुड़दौड़ करैत रहैत छैक, क्यो गुटखा, क्यो....., क्यो चरैत महिसक सींग पर दय ओकरापर चढ़बाक अभ्यास करैत अछि तँ क्यो........। शौचालय, मूत्रालयकेँ अहाँ एकबेर देखि अबियौक एकोटामे पल्ला नहि लागल छैक, उपरसँ ततेक दुर्गन्ध जे राम कहू! अहाँ काल्हि आबि कए देखि लेब। ई तँ परसू जलघर बाबूक बेटीक बियाह छलनि ताहिलेल ओ अप्पन कल एतए लगौने छलाह, आ शौचालयमे बोराक चट्टी। काल्हिए कलो खुलि जेतैक ? एतय गड़लाहा पाइपे टा स्कूलक छैक। की कहू, कल जहिना लागै छैक पाँचे-दस दिनमे क्यो चोरा लैत छैक। हे लियह! कुकुरक झौहड़ि सुनि रहल छी ने अहाँ ? बराती सभ जे काल्हि भोरमे चूरा-दही खा-खा क पात सभ स्कूलक पछुआड़ि मे फेकने छल ततहि कुकुर सभ लड़ि रहल अछि।

 खैर! छोडू ई सब बात। आब पढ़ाईक व्यवस्था सुनू--- अहाँ केँ तँ बुझले हैत जे हमरा सभक दयानिधान मुखमंत्रीजी कॉन्ट्रेक्ट पर कैक लाख लोककेँ बिना कोनो परीक्षे-तरीक्षे नेने मास्टर बना देलथिन, सेहो की जे गामक लोक गामहिमे शिक्षक हेताह। तैँ ढ़ोरहाय-मंगड़ू सब शिक्षक बनि-बनि एतय आबि गेल छथि, जिनकामे सँ कतोक केँ तेँ अपन नामो.....। प्रार्थना आब नहि होइत छैक। जँ कहियो काल होइतो छैक तँ चारि सय मे सँ चारिये टा नेनाक मुँहसँ स्पष्ट शब्द बहराइत छैक बाँकी सब आऊँ-आऊँ, ऊँ-ऊँ करैत रहैत छैक। हाजरी मे नाम पुकारल जाइत छैक-डबलू, बबलू, डेजी, रोजी, स्वीटी.....। शनिचराक प्रथा उठि गेल छैक। सांस्कृतिक कार्यक्रम एखन धरि होइत छैक, एखनो गीत गाओल जाइत छैक—“एक आँख मारूँ तो पर्दा हट जाये, दूजा आँख मारूँ कलेजा फट जाये.........। तनी सा जींस ढीला कर.... आदि। एक दिनक बात कहैत छी, एकटा विद्यार्थी गाना शुरू कएलक—“चोली के पीछे क्या है......आकि सबटा मास्टर ठेठिया-ठेठिया क हँस लागलाह। मंजय मास्टर साहेब केँ नहि रहल गेलनि ओ नेनाकेँ डाँटि कय बैसा देलथिन। ताहिपर, मंतोष मास्टर साहेब आ मंजय मास्टर साहेबमे नीक जकाँ बाझि गेलनि।

मंजय मास्टर साहेब कहलैथमेरा मानना है कि इसमें बच्चे का कोई दोष नहीं है, अगर यही गाना गाना उस बच्चे की मजबूरी है, तो हम एक शिक्षक होने के नाते इसी गाने के प्रति उसके दृष्टिकोण को बदल सकते हैं, बस एक वाक्य में समझाकर की, चोली के पीछे, माँ होती है, जिसका अमृतपान करके हम, आप, सबके शरीर को जीवन मिला है।

एहि घटनाक बाद सभ शिक्षक मिलि कए मंजय बाबूक नव नामकरण कय देलकनि मायराम। तहिया सँ ओहि कागमंडली मे हंस सदृश्य मंजय बाबूक बुधिये हेरा गेलनि। एकटा आर गप्प सुनू, यैह पिछले शनि दिनक बात छैक, अन्त्याक्षरी चलैत रहैक, एक सँ बढ़िकए एक कटगर फिल्मी गाना सब नेना लोकानि गबैत छल, अचानक पर एकटा दल अटकि गेलैक….. एकटा बच्चा उठल आ कहलक, यह लघु सरिता का बहता जल, कितना शीतल, कितना निर्मल.......।

एकटा मास्टर साहेब ओहि बच्‍चाकेँ लगमे बजौलकनि आ कहलथि-- अहाँ काल्हिये ने अपन मम्मी-पप्पाक संग सिनेमा देख सहराता गेल रही, ओहि सिनेमाक गाना, ये गोरी गोरी बाँहे, ये तिरछी तिरछी.......,बिसरि गेलहुँ ? बड़ भोदू छी अहाँ।

दुभि रानीक कथा चलितहि रहनि की एहि बीचमे हमरा एकटा आर नारीक कर्कश स्वर सुनाए पड़ल...गै माय के छियै ई मुनसा! ऐतेक कालसँ एतय की क रहल छैक? बुझैत नहि छैक जे ई लोक-बेदक, बाहर-भीतर करबाक बेर छैक?”

हमर ध्यान ओमहर गेल, अन्हारमे बुझा पड़ल जे तीन-चारिटा स्त्रीगण एम्हरे बढ़लि चलि आबि रहल छलीह। हम जा एमहर ताकी ताधरि दूभिरानी निपत्ता ! हमहुँ उठि कए घर दिस चलि देलहुँ।

 ओहि भरि राति हमरा निन्न नहि भेल। कारण छल जे हम ई निर्णय नहि क सकलहुँ जे ओ सरिपहुँ दुभिए छलीह आ कि हमरा मोनक भ्रम ? जतेक सोचैत गेलहुँ ओतेक ओझराइते गेलहुँ, मुदा एकटा बात हमरा मोनमे घर क लेलक जे ई घटना एकटा कथाक रूप अवश्य ल सकैत अछि। काल्हिए हमरा मैसूर जेबाक रहय। सोचलहुँ एकर पांडुलिपि बना कए कोनो पत्रिकाक संपादक लग प्रेषित क देबैक, जँ ई कथा छपि गेल तँ हमहुँ अपन सीना तानि कए कहब जे हम मैथिलीक कथाकार छी सोझे-सोझ मैथिलीक एम.ए., पी-एच.डी. कहयलासँ कोनो प्रतिष्ठा नहि। मैथिली पढ़ि जँ मैथिलीक कथाकार, साहित्यकार नहि कहयलहुँ, तँ मैथिली पढ़बे किएक कएलहुँ ? हँ एकटा समस्या तँ रहिये गेल, एहि कथाक शीर्षक की दिऐक ? चलू जेहने कथा तेहने शीर्षक, दूभि

जा ग जाग महादेव !

मिथिला, अनादिकालसँ धर्म, शिक्षा, साहित्य संस्कृति आदिक विशिष्टताक लेल अद्वितीय रहल अछि। एतय एक-सँ बढ़ि कए एक मुनि, मनीषी, तपस्वी भेल छथि, जिनका सभक उपदेश आ आचरण आइयहुँ ओतबे प्रासंगिक अछि। मुदा अनेकानेक कारणसँ आइ बड़ तीव्र गतिएँ सामाजिक विवर्तन भ रहल छैक। एहि बदलैत सामाजिक परिस्थितिमे कोन वस्तु आ संस्कार ग्राह्य छैक आ कोन अग्राह्य ताहि विषयकेँ ल लोकमे भयंकर द्वन्द्व आ संघर्षक स्थिति उत्पन्न भ गेल छैक। मूल रूपसँ पाश्चात्यवादी सभ्यताक अन्धानुकरण ओ आन-आन कारणेँ, लोक अपन सभ्यता, संस्कृति, सँ विमुख भेल जा रहल अछि, परिणामस्वरूप, समाजमे भूख, भय, भ्रष्टाचार, राजनीतिक अपराध, बेरोजगारी आदिक समस्या दिनानुदिन गंभीर भेल जा रहल छैक। लोक एहि सभ समस्यासँ मुक्तिक लेल अपस्यांत अछि, बैचैन अछि। ओकरा कोनो रस्ता नहि भेटि रहल छैक। मानसिक अशांतिक शांतिक लेल लोक भगवानक शरण मे आबि रहल अछि (ओकरा लागै छैक आब यैह टा रस्ता बचि गेल अछि)। यैह कारण अछि आइ जतय देखू ततहि थोकमे धर्मक दोकान खुजि गेल छैक। हमरो संग सैह भेल, विभिन्न प्रकारक विसंगति आ झंझावात तेना ने हमरा नचार क देलक जे हमहुँ अंततः धर्महिक शरण मे गेलहुँ।

ई संयोगे छल जे ताहिदिन हमरा सभक दिस धर्मक एकटा टटका दोकान खुजल छलैक- जाग जाग महादेव! मिथिलाक लेल ई कोनो नव धर्म आ नव संप्रदाय नहि छलैक, हँ, एकटा बात नव अवश्य कहि सकैत छी जे एहिमे बस अहाँ देवाधिदेव महादेवकेँ गुरू बना लिअ, आ कि सभ समस्या छू मंतर। हम अपन अनुभव कहि रहल छी, जहिया सँ हम महादेवकेँ गुरू बनैलियन्हि हमर सभटा समस्या सरिपहुँ छू-मंतर भेल जा रहल अछि। महादेवमे दम छनि, से हमर धारणा दिनानुदिन दृढ़ भेल जा रहल अछि। यैह कारण थिक जे कतहुँ अबैत-जाइत, माने जतय कतहुँ महादेवक मंदिर, फोटो देखैत छी, मोने-मोन जाग जाग महादेव! कह लागैत छी।

यैह परसूका बात थिक हमरा एक आवश्यक काजे गामसँ सहरसा जयबाक रहय, ने जानि कोन कारणेँ ओहिदिन गाड़ी-घोड़ा बन्न छलैक, हम पयरे चलि देलहुँ। हमरा गामसँ लगभग 10 कि.मी. क दूरी पर महादेवक एकटा मंदिर छैक, बड़ भव्य, प्राचीन आ सिद्ध। गरमीक दिन रहैक, रौद कपारे पर लागैक। सोचलहुँ मंदिरमे जाग जाग महादेव ! लैत छी, आ कने काल प्रांगणक एहि विशाल बरक गाछतर चबूतरा पर सुस्ता लेब। मंदिरमे माथ टेकि चबूतरा लग आबि बैसि गेलहुँ। हमर मोन कने अशांत रहय तैँ ओतय ध्यानक मुद्रामे बैसि महादेवक स्मरण कर लागलहुँ, आकि एहन आभास भेल जे सरिपहुँ साक्षात् महादेव हमरा समक्ष आबि गेलाह।

आबितहि पुछलैथ की यौ शिष्य! की हाल-चाल ?

हम कहलियनि-- हे गुरू! से तँ अहाँ जनिते छी ?

ओ कहलनि-- चिन्ता जुनि करू शिष्य! सभ समाधान भ जेतैक।

हम कहलियनि-- हे महादेव! जखन अहाँ लग सभ समस्याक एतेक त्वरित उपचार अछि तखन अपनेक एहि संसारमे एतेक प्रकारक रोग-शोक, व्यभिचार, अनाचार, अत्याचार आदि किएक ?

ओ कहलनि-- शिष्य, मोन चंगा तँ कठौत मे गंगा अहाँ पहिने हमर अस्तित्वकेँ स्वीकार करैत छलहुँ ? नहि ने? मुदा आइ जखन अहाँक मोनक श्रद्धा जागृत भेल तँ देखिये रहल छी जे हम साक्षात् अहाँक समक्ष उपस्थित छी।

हम कहलियनि-- एकर माने भेल जे अहाँ अपन शिष्ये टा पर कृपा करैत छी, वैह टा अहाँक संतान थिक, आ आर सभ ? की ई प्रश्न अहाँक जगतपिता उपाधि पर प्रश्न चिह्न नहि अछि?

ओ कहलिन-- कथमपि नहि शिष्य हमरा लेल सभक मान बरोबरि अछि। जाधरि धर्म आ कर्मक गणितकेँ लोक नहि बूझत ताधरि ई समस्या, ई भेद रहबे करतैक। एहिमे हमर कोन दोख। अहीं जे अपन सभ काज-धन्धा छोड़ि कय एतय दिन-राति जागजाग महादेव! करैत रहब तँ अहाँकेँ की बुझाइत अछि जे महादेव....।

हे महादेव! हमरा सन मन्द-बुद्धि, धर्म आ कर्मक तत्त्वकेँ कोना बुझत? हम तँ बस एक्कहिटा चीज बुझैत छी, महादेव! आर किछु नहि।

बस! बस! बस! अहाँक श्रद्धा, विश्वास आ सत्कर्म सैह थिकाह महादेव, सत्यं शिवं सुन्दरम्।

हे महादेव! ई बूझ तँ हमरालेल आर जटिल भ गेल, सत्य, सुंदर आ शिव केँ बुझक सामार्थ्य हमरा
कतय?

अपन संस्कार, संस्कृति, लोकाचार, भाषा-साहित्य, धार्मिक आचरण, आदिकेँ बुझू, यैह सत्य थिक, यैह सुंदर थिक, यैह शिव थिक।

बेस, आब कने-कने बुझलहुँ। हे महादेव! आर सभ छोड़ू एकटा बात बताऊ,

एहि गामक अधिकांश लोकनि पढ़ल-लिखल छथि, ज्ञानी छथि, अपन परंपरा, अपन संस्कारादिक प्रति जागरूक छथि तकर पश्चातो हमरा बुझने कतहुँ ने कतहुँ........।

औ शिष्य! आइ-काल्हि जे जतेक बेसी पढ़ल-लिखल लोक छथि से ततबे बेसी मूर्ख।

ई अहाँ की कहि रहल छी, एहन भ सकैत अछि जे कखनहुँ-कखनहुँ पढ़लो-लिखलो लोकसँ गलती भ जाइत छैक, मुदा तकर जतेक परिमाण अहाँ बता रहल छी से बात हमरा नहि पचि रहल अछि।

औ शिष्य! कहब तँ छक द लागत। ई कोनो गुटका (पान-मसाला) छियैक जे पचि जायत। अहीं कहू, अहाँ जे भरि दिनमे 10 पुड़िया गुटखा खा जाइत छी से कोना? ओहि पुड़िया पर नहि लिखल छैक जे तम्बाकू चबाना स्वास्थ के लिए हानिकारक हैहे ओहि महाशयकेँ देखियौक, ओ राजधानीक जानल-मानल डॉक्टर छथि, घंटे-घंटे पर सिगरेट (ओहो किंग साइज) पीबैत छैक, जखन की सभटा सिगरेटक पैकेट पर लिखल रहैत छैक, धुम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है एतबे किएक, हे ओमहर ओहि होर्डिंग पर पढ़ियौक- सिगरेट पीने से कैंसर होता है, जनहित मे जारी, कैप्सटन फिल्टर, आखिरी कश तक मजेदार।

(हमर माथ शरम सँ झुकि गेल) से जे हो मुदा एहिठामक लोक धर्माचारी आ........।

महादेवहँ, हँ, से त अवश्ये, तहिया सँ ठीके आइ काल्हि हमर पूजा पाठ करयबलाक संख्या बढ़ि गेल अछिमुदा ........।

मुदा की ?

आब लोकमे ओ भाव नहि रहलैक।

आब लोक हमर पूजा कर नहि अबैयै, हमरासँ डील कर अबैये।

बुझलहुँ नहि, कने स्पष्ट करू।

की-की सभ स्पष्ट करी शिष्य! सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्थामे घून लागि गेल छैक। एकहकटा जँ फरिछा-फरिछा अहाँके कह लागी तँ कैक दिन धरि एहिना अहाँ केँ ध्यानमग्न रह पड़त। जिज्ञासा कएलहुँ अछि त लिअ हम किछु डीलेर बानगी अहाँकेँ सुना दैत छी.....

एकटा (बालक)--- हे महादेव! बाप कहैत छलाह पढ़क लेल तँ हम गुल्ली-डंडा खैलयबामे भरि साल मस्त रहलहुँ, एहिबेर कहुना पास करा दिय......

एकटा नवयुवक - हे महादेव! एहिबेर देवघर जयबाकाल हमरा जाहि मालबम सँ परिचय भेल छल तकरहिसँ हमर बियाह करा दिअ तँ.....

एकटा नवयुवती हे महादेव! अहाँ हमरा कोनो नीक निर्देशकक सिनेमामे माधुरी दीक्षितक धक-धक वला रोल दिआ देब तँ......

दोसर नवयुवती--- हे महादेव! अहाँक देल गेल रूपगुण सँ संपन्न रहितहुँ हमर बियाह नहि भ रहल अछि, हमर माय-बाप विक्षिप्त भ गेल छथि। एहि दुनियाँ सँ सबटा दहेजक दानव केँ एक्कहि दिन उठा लिअ तँ....

एकटा प्रौढ़ हे महादेव! जानैत-बुझैत मनीगाछी कोठा पर बेर-बेर जाइत रहलहुँ तैँ आइ एडस सन लाईलाज बीमारीसँ ग्रस्त छीजँ अहाँ हमरा एहि सँ मुक्ति दिया दी तँ....

एकटा बेरोजगार हे महादेव! पढ़ि-लिखि कए झाम गुड़ैत छी, जँ अहाँ हमरा एकबेर लादेनसँ भेंट करा दी तँ........

एकटा वृद्ध दम्पति- हे महादेव! अपनेक दयासँ हमरा बेटा-पुतोहुकेँ कोनो कमी नहि, मुदा हमरा दुनू परानीक पेट ओकरा सभक लेल पहाड़ सदृश छैक। जँ अहाँ हमरा एहि जन्मसँ मुक्ति दिया दी तँ अगिला जनममे ............

एकटा राजनेता हे महादेव! हमरा पार्टीक सरकार बनमे एक्केटा सीट घटैत छैक। हम निर्दलीय महाप्रलय सिंह केँ तीन करोड़ टका देब लेल तैयार छी अहाँ ओकर मति फेरि दिऔक, जँ हमर सरकार बनि गेल तँ.............

एकटा व्याख्याता हे महादेव! भरि जिनगी चोरि आ जोगाड़क बलेँ नीक अंक सँ पास होइत रहलहुँ आब व्याख्याता छी। छौंडा सभकेँ ततेक ने नेतागिरीक चस्का लगा दिऔक जे साल भरि महाविद्यालय आ विश्वविद्यालयमे ताला लटकले रहय। जँ एहन संभव भ जाय तँ.....

एकटा अछूत- हे महादेव! एक्के हार-मांस, एक्के खून, तकरा पश्चातो लोक हमरा अछूत बुझैये। हमरा संग जे भेल से भेल हमरा बेटाकेँ एहन दंश नहि झेलय पड़य। जँ एहन भ गेल तँ....

एकटा शराबी --- हे महादेव! पीबैत-पीबैत, सभटा धन-सम्पति स्वाहा भ गेल। तीन दिनसँ एक्को ठोप नहि भेटल अछि, हम अपन बेटी सुगियाकेँ ओहि दारूवाला लग.....जँ एक्को बोतल दिआ दी तँ....

मैथिली (भाषा) हे महादेव! अहाँ तँ जानिते छी जे हमर गौरव, मान, मर्यादा, कहियो मिथालाकेँ के कहए जगत्ख्याति प्राप्त कएने छल, मुदा आइ अपनहि घरमे हम उपेक्षित छी। ओना आइ काल्हि मैथिलीक लेल तथाकथित संघर्षकर्ता लोकानि एतयसँ दिल्ली धरि धरना-प्रदर्शन कर चलि जाइत छथि, मुदा सबटा फुसि थिक, सबटा मिथ्याडंबर, तैँ जाधरि हमरा अप्पन घरमे सम्मान नहि भेटत ताधरि हम अपन गौरवकेँ पुनः प्राप्त नहि कसकैत छी। जँ एहने स्थिति रहलैक तँ भ सकैछ जे हम कहियो निर्वस्त्र भ जाएब। हे जगतपति! अहाँ मैथिल लोकनिमे मैथिलीक प्रति नवजागृति आनि दिऔक। एहिसँ अहाँकेँ सेहो लाभ हैत-- फेर कवि विद्यापतिक श्रुतिमाधुर्य नचारीसँ अहाँक मंदिरक वातावरण आप्लावित भ जाएत। हम कंगालिन छी, हमरा अहाँकेँ देबाक लेल किछु अछिए नहि, तैं हम की डील करी ! हे महादेव सुतल किएक छी, जागू ! एहि अबलाक व्यथा सूनू-जाग जाग महादेव.....

मैथिली ततेक जोरसँ चीकरलीह जे हमर ध्यान दुटि गेल। ने जानि आब कहिया महादेव दर्शन देताह।


आह्वान

भारत भूमिक नवतुरिया

हमर कविताक आह्वान सनू

तन्मय अपन कान खोलि

छथि बाजि रहल भारती से सुनू

हे भारत ! ई भारती थिक

अति विवश भाव भंगिमा नेने

हिल रहल ठोर किछु कहबा लेल

प्रेरित क रहल किछु करबा लेल

कखनहुँ अहाँक कखनहुँ हमर

एहि लेल बाट निहारैत छथि

बस त्राहि-माम पुकारैत छथि

छथि कहथि देखू हमर ई दशा

शोणित सँ रंजित श्वेत वसन

नखसँ शिख धरि अछि जख्म भरल

लूटि रहल हमर अछि अमन-चैन

पंजाब,असम,गुजरात,आँध्र

कश्मीर सहित अन्यान्य प्रान्त

अछि सिसकि रहल भ भयाक्रान्त

छल कहियो

उत्तुंग गर्वसँ हम्मर सिर

प्रकृति प्रदत्त पावन कश्मीर

केसरिया सेब क रहल श्रृंगार

लहलह-हरियर बाग निशात

उज्जर बर्फशिला बाँटि रहल छल

शांतिकेर संदेश उधार

छल बहैत जतय शीतल समीर

चहुँदिस आब बरसैत अछि गोली

नहि खेलू, नहि खेलू रोकू ई खूनक होली

जाति-धर्मक उन्माद भड़का

जे उन्मादी अहाँकेँ लड़ाबैत छथि

 हुनकर तँ कुरसीक प्रश्न छैक

 मुदा की यैह अहाँक मानवता थिक ?

 (18-08-2008,मैसूर)


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