जन्म २०.०१.१९४०, बी.ए.ऑनर्स सह एल.एल.बी., पिता- श्री बैद्यनाथ झा, गाम- भटोत्तर (चकला), जिला पूर्णिया
दया करू माँ
अहाँक शरणमे आएल छी माँ, दया कऽ केँ अपनाबू माँ।
अहीँके चरण-कमलमे रमल छी माँ,
दुःखी मन दोसर राह नै, सुझै अछि माँ
चोट बहुत खायल छी माँ, दुनियासँ ठुकराईल माँ
दया करु माँ, दया कऽ केँ अपनावू माँ॥१॥ अहाँ...
माँ अपन आँचरक शीतल, सुरभित,
हवासँ ताप एवम् कष्ट हरु माँ,
परञ्च, मिलल नहि प्रतिदान कनेको,
हर पगपर स्वार्थक लीला,
चलन जगतक निराले माँ
अहाँक शरणमे आएल छी माँ, दया कऽकेँ अपनाबू माँ॥२॥
(जगत) संसार माया जालमे फँसल अछि माँ,
दुनियां आतंकसँ आक्रान्त अछि माँ,
अज्ञानताक-अंधकारसँ भरल अछि माँ
अनुशासनक कमी खलै अछि माँ॥
अहाँक शरणमे आएल छी माँ, दया कऽकेँ अपनाबू माँ...॥३॥
अपन परायाक ज्ञान घटल अछि,
अधर्मक, अकर्मक बाजार गर्म अछि
एहि जगसँ अज्ञानताक-अंधकार दूर करू माँ-
अहींक शरणमे आएल छी माँ, ताप रहहोँ...॥४॥
दुखी जनक दुःख दूर करू माँ
सत्कर्मक भाव जन-जनमे
अविलम्ब आबिकेँ अहीं भरू माँ।
अहींक शरणमे आएल छी माँ, दया कऽकेँ अपनावू माँ॥५॥
विश्व कल्याणक भाव सभमे जगा दियो माँ,
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् क ज्ञान सभमे भरि दियो माँ
वसुधैव कुटुम्बक विचार सन्चारित कऽ दियो माँ
अहींक शरणमे आएल छी माँ, दया कऽकेँ अपनावू माँ
“अस्तु”
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)
भजन भैरवी
आब मन हरि चरनन अनुराग।
त्यागि हृदयके विविध वासना दम्भ कपट सब त्याग॥
सुत बनिता परिजन पुरवासी अन्त न आबे काज।
जे पद ध्यान करत सुर नर मुनि तुहुं निशा आब जाग॥
भज रघुपति कृपाल पति तारों पतित हजार
बिनु हरि भजन बृथा जातदिन सपना सम संसार
रामजी सन्त भरोस छारि अब सीता पति लौ लाग॥
॥ राग विहाग ॥
को होत दोसर आन रम बिनु॥ जे प्रभु जाय तारि अहिल्या जे बनि रहत परवान॥ जल बिच जाइ गजेन्द्र उबारो सुनत बात एक कान॥ दौपति चीर बढ़ाई सभा बिच जानत सकल जहान॥ रामजी सीता-पति भज निशदिन जौ सुख चाहत नादान॥
चैत के ठुमरी
चैत पिया नहि आयेल हो रामा चित घबरायेल।।
भवनो न भावे मदन सताबे नैन नीन्द नहि लागल॥
निसिवासर कोइल कित कुहुकत बाग बाग फूल फूलल॥
रामजी वृथा जात ऋतुराजहि जौंन कन्त भरि मिललरामा॥
चित घबरायेल चैत पिया नहि आयल॥
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