भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत।  एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मिथिलाक्षर वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-IPA वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-ब्रेल वर्सन

 VIDEHA_346

 VIDEHA_346_Tirhuta

 VIDEHA_346_IPA

 VIDEHA_346_Braille

 VIDEHA_347

 VIDEHA_347_Tirhuta

 VIDEHA_347_IPA

 VIDEHA_347_Braille

 

Friday, May 8, 2009

प्रेमचन्द मिश्र

प्रेमचन्द मिश्र

गाम बरहारा, जिला-मधुबनी


अनाम कथा

पी. सी. मिश्र गामक एकटा कम प्ढ़ल-लिखल युवक छथि, उम्र करीब २४ वर्ष। साल पहिने गामसँ दिल्ली आयल छलाह। संघर्षरत जीवनसँ सफर करैत आब ठीक-ठाक अवस्थामे छलाह यानि ताहि समयमे एकटा मध्यम् वर्गक युवककेँ तनख्वाह जे हैत से तनख्वाह पावैत छलाह संगे गामसँ अयलाक बाद दिल्लीमे किछु नीक लोकक संपर्कमे रहलासँ अंग्रेजी फर्राटेसँ बजैत छथि यानि कि अंग्रेजी बजैत काल कियो नहि कहि सकैत छनि जे पढ़ल-लिखल कम छथि। ताहि कारण लोककेँ कहैत छथिन सत्यता- जे हम पढ़ल-लिखल कम छी- तँ लोक मजाक बुझैत अछि। एकटा प्राइवेट कम्पनी, जे ट्रैवेल एजेन्टक काज करैत अछि, मे पी.सी.मिश्र रंजीतक, जे हुनकर रिश्तामे भागिन छथिन मुदा कम्पनीमे उच्च पदपर छथिन्ह, केर संग  कज करैत छथि। पी.सी.मिश्र विवाह योग्य भऽ गेल छथिन, पिताजी बुढ़ापामे प्रवेश कऽ लेने छथिन। ओऽ चाहैत छथि जे जहिना पैघ भाई सभक विवाह भऽ गेल छनि, हुनको विवाह कऽ देल जाय। कारण एकटा छोट भाई सेहो छनि, रुपैय्या पाइ कमा लैत छथि आ अपन आब कोन भरोस। कखन छी कखन नहि छी। चुंकि जमाना बदलि गेल छैक, ताहि हेतु पी.सी.मिश्रासँ संपर्क केलन्हि जे लोक सभ बहुत परेशान करैत छथि अहाँक विवाह लेल, से की कहैत छी। हुनकर जवाब छलनि, जे पिताजी हमर किछु शर्त अछि विवाहमे। तँ पिताजी कहलखिन- ठीक छै, रातिमे भौजीसँ गप्प करायब, ठीक छै। रातिमे भोजनक बाद पी.सी.मिश्रा जी भौजीक द्वारा अपन शर्त पठेलन्हि- एक विवाहमे रुपैय्या पैसाक आदान-प्रदान नहि, यानि बिना पैसाक विवाह-आदर्श विवाह। दोसर लड़की पढ़ल-लिखल आ अंग्रेजी बजनाय अनिवार्य ताकि बच्चाक शिक्षा उच्च होय। तेसर द्विरागमन जल्दी होय ताकि साल भरि जे अपन संस्कार यानी विध-विधानमे कम खर्च होयत। चारिम जिनका ओहिठाम विवाह होय हमर तुलनामे गरीब होय ताकि हुनका ओहिठाम सम्मान बेसी भेटत।

सभ शर्त सुनि हुनकर पिताजी कहलनि- हम शर्तसँ बहुत प्रसन्न छी, लेकिन सभ शर्त हमरासँ भऽ सकत मुदा दोसर शर्त  हमरा विश्वास नहि अछि की गामक लोक पूरा करए देत वा नहि। ताहि हेतु कहबनि जे एहन कुनू भेट जानि तँ ओऽ हमरा कहि देत। बात रंजीतकेँ पता लगलनि, तँ ओहो सोचलन्हि जे कोनो सम्पर्कक आदमीसँ पी.सी.मिश्राक विवाह करल जाय तँ उत्तम। दू-चारि ठाम बजलाह जाहिमे श्रीमति महारानी मिश्रा जे रंजीतक भाभी आ पी.सी. मिश्राक रिश्तामे भौजी छलथिन केँ सेहो पता लगलन्हि। अपन छोट बहिन अनीता झाक ननदि छलथिन सोनी हुनकर उम्र १९ साल रहनि। ओऽ अपन बाबूजी श्री भरत झाकेँ कहलथिन जे कथा मुफ्तमे भऽ जाएत। ओऽ अपन जमाय दिलीप झाकेँ फोनसँ संपर्क केलन्हि। दिलीप झाक बाबूजी १० साल पहिने स्वर्गवासी भऽ गेल छथिन, ताहि हेतु बहिन सोनीक विवाह दिलीप झा आ विनय झाकेँ करबाक छनि। सभ बात सुनि दिलीप झा अपन पत्नी अनीताकेँ कहलथिन जे काज बुझू मँगनीमे भऽ जाएत। बात सुनिते अनीता कहलथिन जे अहाँ देरी नहि करू आ जयपुर जाऊ। बुझू लक्ष्मी चलि कऽ आबि गेल छथि। बात ओऽ विनय झाकेँ सेहो कहलन्हि आ सोनीक दूटा नीक फोटो लऽ जयपुर आबि गेलाह। आब महारानी रंजीतक द्वारा पी.सी.मिश्राकेँ जयपुर बजेलन्हि। होलीक बहन्ना बना कय अपन दफ्तरसँ रंजीत आ पी.सी.मिश्रा जयपुर गेलाह। साँझक हवाई जहाजसँ जयपुर पहुँचलाह। पहुँचलाक उपरान्त चाय-पानिक बाद महारानी पी.सी.मिश्रासँ बजलीह- बौआ विवाह कहिया करब, आब तँ लगन आबय बला छैक आ विवाह योग्य भय गेल छी। हम काकासँ बात करू? पी.सी.मिश्र हँसैत कहलन्हि- जे भौजी हमर किछु शर्त अछि, से जँ पूरा भय जायत तँ हम विवाह एखन कय लेब। गप सुनि महारानी कहलथिन बुझू बौआ जे अहाँक विवाह भऽ गेल आ अपन बातसँ पलटब नहि। पी.सी. एकरा एकटा मजाक बुझि ठहक्का लगा कऽ हँसऽ लगलाह। तावत लगभग रातिक ११ बाजि गेलैक। महारानी कहलथिन- चलू खाना खाऽ लिअ, रुकू हम खाना लगावैत छी। रातुक भोजनमे दू तोर भेल, एक बेर भोजनक लेल बैसलाह पी.सी.मिश्रा, रंजीत ठाकुर आ रामानन्द मिश्रा। भोजनक उपरान्त ओऽ तीनू गोटे पहिल तलपर गेलाह सुतक लेल। दोसर बेर फेर भोजन लागल जाहिमे भरत झा, दिलीप झा, राजू झा नूनू झा राजू नूनू झा महारानीक छोट भाई छथिन-, फेर सभ अपन-अपन बिस्तरपर सुतक लेल गेलाह। भोर भेल चायक आयोजन भेल। सातो गोटे भरत झा, दिलीप झा, रामानन्द मिश्रा, राजू झा, नूनू झा, रंजीत ठाकुर, पी.सी.मिश्रा महारानी चायक पश्चात् गप्प करए लगलाह। महारानी बजलीह-बौआ विवाह कहिया तक करब। मजाकक स्वरमे पी.सी.मिश्रा बजलाह- देखियौक आब जल्दी करब, कारण जे बाबूजीक फोन आयल छल जे लोक सभ परेशान करैत अछि विवाहक लेल, तँ आब जल्दी भऽ जाएत। सुनिते भरत झा बजलाह जे कतेक पैसा लेताह। पी.सी.मिश्रा कहलथिन जे एहन कोनो बात नहि छैक। शब्द पूरा होइसँ पहिने बीचेमे रंजीत बजलाह- लड़की जँ नीक भेटत तँ कोनो पाई-रुपैया नहि। शब्द सुनिते पाछूसँ महारानीक माय बजलीह- जे कही तँ अनीताक ननदिसँ करा दियौन, लड़की तँ बड़ भव्य छथिन, सज्जन-भव्य धार्मिक प्रकृतिक घरक, सभटा काज लूरि-व्यवहार जनैत छथिन्ह। बात पूरा भेलाक बाद महारानी बजलीह जे ओझा ओतेक पाई कतएसँ देथिन्ह। ताहिपर रंजीत बजलाह- पाइक कोनो प्रश्न नहि छैक, हुनकर किछु शर्त छन्हि ओऽ चारूटा शर्त दोहरेलन्हि। ताहिपर दिलीप झा बजलाह- हम चारू शर्तसँ परिपूर्ण छी। बात सुनि रामानन्द मिश्र बजलाह जे जल्दीमे काज नहि होयबाक चाही। पहिने शर्तपर चिन्तन कैल जाऊ। कारण जे सवाल दू टा जिनगीक अछि शर्तक कोनो जवाब नहि अछि। एहन सोच तँ बहुत कम लोकक होइत छनि, ताहि हेतु पुनर्विचार करू।

बात पूरा भेलाक बाद दिलीप झा बजलाह जे लड़कीक फोटो देख लेल जाओ आ हमहु पढ़ल-लिखल छी आ पेशासँ एकटा प्राइवेट शिक्षक छी ताहि हेतु शिक्षाक महत्व बुझैत छी। बात सुनिते भरत झा बजलाह- रंजीत (फोटो दैत) लिअ आ अहाँ सभ देख लिअ। हम भीम बाबू (समधि) सँ बात कऽ लैत छी। बिच्चेमे रंजीत फोटो लैत आ पी.सी.मिश्राक हाथ पकड़ैत पहिल तलसँ ऊपर छतपर गेलाह आ मजाकक तौरपर बजलाह जे देखू भाई जँ अहाँ नहि करब तँ हमही दोसर विवाह कय लेब। हमरा तँ लड़की बहुत पसन्द अछि। कहैत पी.सी.मिश्रकेँ हाथ फोटो पकड़ेलन्हि। फोटो बहुत आकर्षक छल। पी.सी.मिश्र कहलथिन- फोटो तँ बहुत आकर्षक अछि, हमरा किछु सन्देह भऽ रहल अछि। रंजीत उत्तर देलन्हि- भाभी झूठ नहि कहतीह। संदेहक मतलब अछि भाभीपर शक करब। ताहिपर पी.सी.मिश्रा जवाब देलन्हि- हम शकक नजरिसँ नहि देखैत छी, चलू जे छथि, तँ हमर शर्तमे नहि शामिल अछि। लेकिन लड़की पढ़ल-लिखल अवश्य चाही। सुन्दर-खराब कोनो बात नहि अछि बात करैत दुनू नीचाँ अएलाह। एतबामे महारानी पुनः चाह अनलन्हि, फेर चाहक चुश्की लैत रंजीत बजलाह- देखू सभ बात बुझू भऽ गेल। आगू बात जे बरियाती ६५-७५ तक जाएब आ सत्कारमे कोनो तरहक शिकायत नहि। बात सुनैत दिलीप झा बजलाह जे सरकार हम गरीब छी, हमरासँ संभव नहि अछि ७५ टा बरियाती, हमरा किछु छूट देल जाऊ! लेकिन सत्कारमे कोनो त्रुटि नहि होएत। बातक बिच्चेमे महारानी बजलीह जे लड़काकेँ एकटा अंगूठी आ दू भरीक सोनाक चेन (सीकरी) आ लड़कीक नामसँ ५१,०००/- फिक्स डिपोजिटक कागज ओझाजी दऽ देथिन, बरियाती ५१ टाक बात फाइनल, बस आब ने बौआ। ने किछु बजताह आ ने ओझा किछु बजताह! आर खान-पीन दिन घरक प्रत्येक सदस्यकेँ नीक आ ५ टूक कपड़ा। बस रंजीत आब किछु नहि बाजू आ ओझाजी अहूँकेँ एतेक तँ करए पड़त। रंजीत किछु बजैक उत्सुकता देखबैत छलाह की बिचमे भरत झा बजलाह जे फेर विवाहसँ एक साल तक दुनू दिस लड़की वलाक काज छैक, रंजीत ताहि हेतु आब बुझू जे बहुत महग भऽ गेल।

भरत झा बजलाह जे चलु कुल मिलाकय बात बरियातीक ६५ टा आ आब दिनक निर्णय कएल जाएत। तखनहि प्रेमचन्द्र बजलाह जे ई निर्णय गामपर बाबूजी करताह कारण जे हमरा बहुर सर-कुटुम छथि आ सभकेँ सूचना (नोत-हकार) सेहो देनाय छैक। भरत झा बजलाह- ई सत्य अछि, कोनो बात नहि, हम दिन ताकैत छी आ फोन कय देबनि वा भेँट कऽ लेल जाएत। बस किछु समय पश्चात् पतराक अनुसार दिन भेल- २०, २१ अप्रील आ २,३ मई। ई सूचना देल गेल, फेर बड़हरा (गाम)सँ किछु दिन बाद सूचित भेल जे २१ अप्रील क ठीक रहत, तदुपरान्त प्रेमचन्दकेँ पिताजी गामसँ कहलथिन जे कपड़ाक खरीदारी दिल्लीमे कऽ लिअ आ जेवर सभ एहिठाम (गाममे) खरीदब। कपड़ा खरीदल गेल, विवाहक, कनियाक लेल, कनिया बहीन लेल, भौजीक लेल, मायक लेल आ विधकरीक लेल आ घरक प्रत्येक सदस्यक लेल।

२१ अप्रील कय दिनक विवाह छल। कन्या पक्ष आ वर पक्षक बीच सहमति छलनि जे दिनक विवाह छैक ताहि हेतु हाथ धरएके लेल समयसँ पहुँचब आ बात भेल जे दू आदमी हाथ धरैक लेल अएताह। एम्हर वर पक्षक ओहिठाम सबेरेसँ चहल-पहल छल। गाम-गामक बच्चा वा स्त्रीगण दू दिन पहिनेसँ आयल छल। पुरुष लोकनि सेहो सबेरे पहुँचलाह कारण जे दिनक विवाह छै ताहि हेतु बरियाती सेहो जल्दी जयबाक विचार छल आ दूरी वा सड़कसँ सभ अवगत छलाह। गामक धाय-माय सेहो एक अँगनासँ दोसर अँगना कय रहल छली। ताबत धरि लगभग २ बाजि गेल घड़ीक अनुसार लेकिन कन्या पक्षक कोनो पता नहि देखि बच्चा सभहक भीतरक उत्साह कम भऽ रहल छल! करीब चारि बजेक लगभग एकटा आदमी राजू, दिलीप झाक जेठ सार, संवाद लऽ कय अयलाह जे किछु विलम्ब भय गेल ताहि लेल क्षमा करब। लगभग ५ बजेक करीब एकटा मार्शल (गाड़ी) दरबाजापर लागल। ओहि गाड़ीसँ चारि टा सज्जन उतरलाह आ एकटा चारि सालक बच्चा सेहो, कुल मिला कय पाँच! ई देखितहि दाइ-माइ कनफुसकी करए लगलीह जे कहने छलथिन दू आदमी आ पहुँचलाह पाँच! पुरुष वर्ग आगन्तुकक सेवामे जुटलाह। विश्वनथवा सभकेँ पानिसँ पएर धोबि कय अपन काज सम्पन्न कयलक। तावत कियो ठंढ़ा पानि अनलक आ ई काज सभ पूरा भेलाक बाद पुरुष वर्ग बजलाह जे अँगनामे दाय-माय सब कने अहाँ सभ अपन काज जल्दी करू, कारण जे पहिलेसँ विलम्ब भऽ गेल अछि। अँगनामे गोसाउनिक आ ब्राह्मणक गीत शुरू भेल। सभ दाय-माय अँगनाक माँझमे मरबापर गीत गावैत छलीह तावत एकटा बच्चा एकटा लोकल ब्रिफकेश लऽ कय पहुँचल। प्रेमचन्द पश्चिम दिशाक घरमे पलंगपर बैसल भौजी आ बहिनसँ वाच कय रहल छलाह। ब्रिफकेशकेँ देखि विभा (बहीन) भौजीसँ कहलथिन अहाँ सभ बात करू, हम कनी ब्रिफकेशक समान देखैत छी आ ओऽ मरबा दिश निकलि पड़लीह! तावत धरि एकटा बुजुर्ग महिला ब्रिफकेश खोललन्हि। प्रेमचन्द्रक नजरि पड़ि गेल तौलियापर जे पीयर रंगक दु-सूतीक छल। ई देखते दाय-माय एक दोसरकेँ मुँह दिश देखऽ लगलीह जे ई केहेन आदमी अछि, आयल अछि मार्शलसँ आ कपड़ा देखियौ। तौलियाकेँ देखिते प्रेमचन्दक क्रोध आसमानकेँ छूबि लेलक। ओऽ दू डेगमे बरन्डा फानि कय मरबापर पहुँचलाह आ कपड़ा साड़ी आ ब्रिफकेश देखैत बजलाह जे दाय-माय ई बन्द करू आ गीत-नाद सेहो। हम विवाह नहि करब। ई सुनिते बिभा हुनका सम्हारैत बजलीह, बौआ की भेल अहाँकेँ? अपन क्रोधकेँ शान्त करू, दलानपर लोक सभ की कहताह। दू मिनटमे अँगनामे गीतक बदलामे सन्नाटा भय गेल। आब दाय-माय गीत की कहती, सभ कहलथिन जे अहाँ चुप रहू, की हेतै। अहाँ एतेक खर्च कएलहुँ, तिलक नहि लेलहुँ आ कपड़ा वा समानक लेल की हल्ला करैत छी। प्रेमचन्दक जवाब छलनि, जे हम विवाह नहि करब। ई बात भए रहल छल की गीतक अवाज बन्द सूनि ४-५ टा बुजुर्ग पुरुष  वर्ग दरवाजासँ अँगना पहुँचलाह आ ई दृश्य देखि सभ हुनका बुझाबय लगलाह आ कहलथिन दाय-माय अहाँ सभ आगू काज करू! आ ओ लोकनि प्रेमचन्दकेँ पुनः पछबरिया घरमे लय गेलाह। किछु पुरुष वर्ग आगन्तुक देख-भाल कय रहल छलाह। पुरुष-वर्ग मे सँ एकटा काका पुछलथिन जे बौआ की भेल, शान्तिसँ बाजू। बिभा एकटा गिलासमे पानि दैत कहलन्हि जे कपड़ा सभ नीक नहि छैक काका। काका बजलाह जे ई तँ छोट बात अछि। ई तुक्षताक प्रतीक छी! अहाँ शान्त रहू, अहाँकेँ केहेन चाही हम मँगवा दैत छी। एक घंटामे बजारसँ उपलब्ध भय जायत! प्रेमचन्द जवाब देलखिन जे काका, बात कपड़ाक नहि अछि, कारण जे हम स्पष्ट कहने छलियनि जे हमरा किछु नहि चाही। लेकिन जँ अपने किछु अनबए तँ समान नीक कम्पनीक चाही। ई तँ हमरा बेवकूफ बनओलथि! हमरा बातक दुःख अछि! जँ अपनेकेँ हमरा बातपर विश्वास नहि अछि तँ भौजी (महारानी) केँ पुछल जाय! आ अबाज देलखिन यै भौजी, अहाँ एम्हर आऊ! भौजी शब्द सुनिते महारानी उपस्थित भेलीह आ बजलीह जे बौआक बात १००% सही छनि। कन्यागत गलत काज कयने छथि, एहिमे कोनो सन्देह नहि! ई बात पूरा होमयसँ पहिने बिच्चेमे प्रेमचन्द बजलाह जे हम विवाह नहि करब कारण जे कि पता ? ओ हमरा लड़कीमे सेहो ठकताह। लेकिन बात आब इज्जत आ मान-मर्यादाक अछि, जँ विवाह नहि होएत तँ दुनू पक्षक इज्जत बर्बाद भय जायत! एक-दिश इज्जत, मान-मर्यादा आ दोसर दिशसँ दू-टा जिनगीक प्रश्न। समस्या जटिल अछि, कोनो सन्देह नहि! लेकिन छी तँ मैथिल आ मान-मर्यादासँ पैघ जिनगी नहि अछि। जे मान-मर्यादा ककरो लेल अभिशाप बनि जाइत अछि! हम सभ मैथिल जे किछु छी, बाप-दादाक पाग छी, जिनगीक कोनो मोल नहि! मोनमे एक हजार प्रश्न अबैत अछि जे हम मैथिलगण विश्वमे सभसँ बेशी चतुर छी आ तखनो सभसँ पाछू छी, तेकर की कारण अछि? हमरा नजरिमे जे हम सभ भूतकेँ बेशी महत्व दैत छी आ भविष्यकेँ गला दबा दैत छी, सेहो बहुत आसानीसँ हमरा लोकनिकेँ कनियो हिचकिचाहटि नहि होइत अछि! प्रेमचन्दक एकेटा उत्तर छलनि जे किछु बीति जाएत, हम विवाह नहि करब। कारण जे हमरा आब हुनका सभ (कन्यापक्ष) पर विश्वास नहि अछि। दाय-माय गीत तँ गबैत छलीह लेकिन श्वरमे उदासी गीत छल। गोसाउनिक (हे जगदम्बा जगत माँ काली प्रथम प्रणाम करै छी हे), लेकिन श्वर सुनयमे लागैत छल जेना उदासी गाबैत छथि। अँगनाक माहौल खराब भय गेल छल। लगभग एक घंटा बीति गेलाक उपरान्त जखन कोनो तरहसँ मानैत नहि देखि भीम मिश्र (प्रेमचन्दक पिताजी) बजलाह- आब हमरोसँ बर्दाश्त नहि भय रहल अछि आ हमरो निर्णय अछि से अहाँ सुनू- जँ अहाँ विवाह नहि करब तँ हम आत्म हत्या कय लेब। आब अहाँक हाथमे गेंद अछि! निर्णय अहाँकेँ लेबाक अछि जे की करब। पहिल निर्णय विवाह ओहि लड़कीसँ करब आकि दोसर निर्णय हमर दाह-संस्कार करब? कारण हम अपन जिबैत अपन पुरुखाक इज्जत नहि गवाँ सकैत छी। ई कहि ओ ओहिठामसँ उठि चलि पड़लाह। हुनका उठिते सभ पुरुषवर्ग ठाढ़ भय गेलाह आ एकक बाद एक दरबज्जा दिस बिदा भेलाह। हुनका (भीम मिश्र) केँ बुझबैत जे अहूँ एना नहि करू, ओ बात मानताह अहाँक आ अहाँसँ पैघ हुनकर अपन भविष्य नहि छनि। सभ मड़वापर ठाढ़ गप्प करैत छलाह। एतबेमे प्रेमचन्द घरसँ निकललाह आ आँखिमे दहो-बहो नोरक मुद्रामे पिताक पएर पर खसैत बजलाह जे हमरा माफ करू आ करुण स्वरमे बजलाह, जखन श्रवण कुमार मातृ-पितृक लेल अपन प्राण न्योछावर कय देलन्हि तँ हम अपन पिताक लेल अपन भविष्यक बलिदान दैत छी। लेकिन किछु शर्त अछि, भीम मिश्र बजलाह- मंजूर अछि। पहिल शर्त हम कन्यागतक समान नहि लेब दोसर हुनकर गाड़ीपर नहि जाएब तेसर देल गोरलगाइक रुपैया नहि लेब। ई शब्द सुनैत सभ दाय-माय समेत उपस्थित पुरुषवर्ग आ नेना-भुटकाक हृदय सेहो करुण भय गेल! प्रेमचन्दकेँ उठबैत भीम मिश्र करुण स्वरमे बजलाह- हे दाय-माय। जल्दी-जल्दी अपन काज करू। हजामकेँ अबाज दैत कहलथिन- अहाँ जल्दीसँ स्नानी चौकी धो कऽ आनू। फेर अबाज देलखिन- भोजी पाहुनकेँ जल्दीसँ खानाक व्यवस्था करू! ई शब्द सुनितहि सभ बिहारि जेना काज करए लगलाह आ लगभग २०-२५ मिनटमे सभटा काज भऽ गेल। एतबामे जयदेव मिश्र बसकेँ दरबज्जापर लगबैत सभ बरियातीकेँ बसमे बैसबैत बजलाह- भीम भैया हम बसमे सभकेँ बैसा लेलहुँ। अहाँ- मार्शल दिश इशारा करैत- बैसू। प्रेमचन्दक आँखिसँ गंगा-जमुनाक धार जकाँ नोर बन्द होइके नाम नहि लैत छलनि। बड़की भौजी एक आँखिमे काजर कऽ आबथि जा दोसर आँखिमे करतीह ताधरि ओ काजर नोरक रूपमे परिवर्तित भय नीचाँ चलि आबनि। हुनकर बुझु अधा आँचर नोरमे भीजि कय गुलाबी साउथ शिल्कक साड़ी काजरमय भय गेलनि आ हुनका किछु खबरि तक नहि! एहि तरहेँ ओहिठाम हाथधरीक विध पूरा भेल आ बर आ बरियाती प्रस्थान कयलक!

ड्राइवर गाड़ीकेँ तेज चलाबयके प्रयास करैत लेकिन गामसँ तीन कि.मी. क बाद रस्ता सेहो नीक नहि। गाड़ी आगू जायके नाम नहि लैत छल जेना सभटा केँ मुहछी मारि देने हो। कोनो तरहेँ वर आ बरियाती गन्तव्य तक पहुँचल। ओहिठामक दृश्य तँ बहुत रमणीय छल। नीक पंडाल जे बहुत नीक सुसज्जित नीक-नीक मधुर स्वरमे मैथिली कैसेट सँ स्टीरियोक अवाज मोन मोहित कय रहल छल। ई दृश्य देखि बरियाती लोकनिकेँ विश्वास नहि भेलनि जे एहिठाम हमर बैसबाक व्यवस्था अछि! ओ सभ तुलना करए लगलाह ब्रिफकेश आ कपड़ाक जे वरक लेल गेल छल आ ओहि सजावटक। हुनका लोकनिकेँ विश्वास नहि होइत छलनि जे समान एहिठामसँ गेल अछि। तावत अवाज आबए लागल जे अपने सभ बैसल जाऊ, सरकार ठाढ़ कियैक छी? ओम्हर सँ दिलीप झाकेँ कियो अवाज देलखिन जे हजमा कतऽ गेलाह। बरियातीकेँ पएर धो कय शुद्धिकरणक विध पूरा करबाऊ! पंडालमे सभटा आधुनिक सुविधा उपलब्ध छल! किछु नवतुरिआ लोकनि पेपसी आ पेयजल तँ कियो बिगजीक समान बन्द डिब्बामे ल कय उपस्थित भेलाह! बरियाती लोकनि शहरी मजा लऽ रहल छलाह। लेकिन प्रेमचन्दक आँखिसँ नोर बन्द हो से नामे नहि लऽ रहल छल। ओ मोने-मोन अतेक दु:खी छलाह जेना शमसान घाटमे कोनो मुर्दाक अन्तिम संस्कार हो। करीब बीस मिनटक बाद गामक नवतुरिआ लड़की आ नेना भुटका पंडालक पाछूसँ अबाज देलथिन जे वरकेँ कहियन्हु कनि पागक लटकैत भागकेँ आगूसँ उठा देथिन ताकि ओ लोकनि वरकेँ देखि सकथि। किछु नवतुरिआ लड़का सभ मजाक करैत छल वरक प्रति- एतवामे आज्ञा-डाला आयल आ ई विध सेहो पूरा भेल। ओम्हर परिछनक लेल आय-माय अयलीह आ परिछनक लेल प्रेमचन्द बिदा भेलाह मुदा हुनकर डेग आगू नहि होइन। चलथि जेना महुअकक चालि हो, किछु जवान लड़की मजाकमे बाजथि जे बड़ शान्त आ सुशील छथि वर, तँ कियो किछु जे खाना खाऽ कय नहि आयल छथि। प्रेमचन्द कोनो जवाब नहि देथि जेना गामपर सभटा क्रोध छोड़ि आयल होथि। कारण छल पिताक देल वचन जे जाधरि अपने लोकनि रहबए हम किछु नहि बाजब आ तकर बाद जँ आगू ओ गलती करताह तँ हम नहि छोड़बनि हुनका सभकेँ। परिछन भेल आ विवाहक शुरुआत भेल। ओम्हर बरियाती लोकनिक स्वागतमे कोनो कमी नहि। सभ समान पर्याप्त मात्रामे उपलब्ध छल। विवाहक अन्तिम विध छल सोहाग देब। सभ बरियातीगण प्रस्थान करत। एहि बीचमे दुनू पक्ष वार्ता कयलनि जे द्विरागमन संगे होय कारण भीम मिश्रकेँ कनी डर भऽ रहल छलनि, लोककेँ चिन्हबामे देरी नहि लगलनि, जे एकरा सभकेँ लड़काकेँ एकटा नीक कुरता देबाक उपाय नहि छैक आ पंडाल लगैत अछि जेना पैघ घरक काज हो। विवाह तँ भेल मुदा दू सालक बाद अगर द्विरागमन हो तँ ई किछु देत तँ अपमान वा कलहक कारण। द्विरागमनक दिन पक्का भऽ गेल एगारहम दिन। सोहागक उपरान्त श्री भीम मिश्र प्रेमचन्दकेँ बजाकय एकान्तमे ५-७ टा गणमान्यक संग बुझेलखिन जे संगे द्विरागमनक हम बात कय लेलहुँ आ अहाँकेँ इच्छा अछि जे किछु नहि लेबाक अछि तँ आब ओ लड़की हमर आदमी भेलीह, पुतोहु भेलीह। हम अपन आदमीकेँ एहनठाम नहि छोड़ब कारण जे ओ हिनके रूपमे रंगि जेतीह। ई सभ बुझबैत श्री भीम मिश्र प्रेमचन्दकेँ भरोसा दैत कहलथिन जे हम अपन पुतोहुकेँ अपना रंगमे रंगि लेब। अहाँ चिन्ता नहि करब आ चतुर्थी दिन गाम जरूर आयब तखन बात करब। ई शब्द कहैत ओ विदा भय गेलाह।

प्रेमचन्द आब कोबरघरमे छथि। विधकरी आ किछु घरक सदस्यगण सेहो छथि। ओ उदासीक कारण पुछलथिन। ओ किछु नहि बजलाह। करीब ५-७ बेर अलग-अलग दाय-मायक शब्द सुनिकय उत्तर देलखिन जे एखन नीन्द आबि रहल अछि, भोर भेलापर बात करब। ई बात सुनैत सभ एका-एकी घरसँ बाहर भेलीह। कोबरमे नीचाँमे बिस्तर लगाओल गेल। प्रेमचन्द सुतबाक प्रयास जरूर केलन्हि, मुदा आँखिसँ नोर पुनः आबय लगलनि। करीब २०-२५ मिनटक बाद एकटा जनानी कोबरमे प्रवेश कएलक लेकिन हुनका ऊपर कोनो प्रभाव नहि पड़लनि, आँखिसँ अश्रु पूर्ववत निकलैत रहलनि। ओ जनानी किछु काल धरि ठाढ़ रहल आ तावत पाछूसँ अवाज भेल जे प्रणाम करू, ठाढ़ भय की कय रहल छी। मुदा प्रेमचन्दक ऊपर कोनो असर नहि कारण ओ पहिने कहने छलाह जे हम भोर भेलापर किनकोसँ बात करब। तखने हुनका बुझना गेलनि जे हमर पएरकेँ कियो स्पर्श कय रहल अछि आ लहठीक खन-खनाहटि सेहो आयल। ई अवाज सुनैत आ पएरक स्पर्श अनुभव करैत ओ पहिनेसँ बेशी अनभिज्ञताक परिचय देलखिन आ जहिना छलाह ओहिना रहि गेलाह जेना हुनका कोनो खबरि नहि। बस पएर स्पर्शक दू-मिनट बाद ओ जनानी वापस भेल। ओ मोनमे सोचैत छल जे ई जरूर नव विवाहिता छलीह। लेकिन ई बात गुप्र राखएमे नीक जे हम सुतल छलहुँ, हमरा कोनो बातक खबरि नहि। किछु समय पश्चात् भोर भेल। भोरमे निन्न आबए लगलनि। ओ घर बन्न कए सूतय लेल चलि गेलाह। कोबरमे दू पहर बितलाक बाद गामक दाय-मायक झुण्ड तँ कखनो दू-चारि गोटेक आवाजाही छल। आब सभकेँ पएर छूबि प्रणामक सेहो प्रावधान अछि कारण जे हम मैथिल छी। साँझमे मौहकक विध पूर्ण भेल। पुनः रात्रिमे बिस्तरपर विश्रामक लेल गेलाह। लगभग दस-पन्द्रह मिनट बाद अनुभव भेलनि जे पुनः  कोनो जनानी प्रवेश कए रहल अछि। ओ पुनः पएरक स्पर्श कय रहल अछि आ ओ अहिठाम बैसल अछि। प्रेमचन्दकेँ निन्न तँ नहि लागल छलन्हि मुदा निन्नक बहन्ना जरूर भेटलन्हि कारण विवाहक रात्रिमे ओ नहि सूतल छलाह। ओ दिनमे दुपहरिया बादसँ जागल छलाह। करीब दू घण्टा बैसि ओ जनानी पुनः वापस भेलीह। पुनः तेसर राति ओ जनानी पुनः अएलीह आ पूर्ववत अपन कर्ममे लिप्त भय गेलीह, यानी चरण-स्पर्श कए बैसि रहलीह। लगभग चारि-पाँच घंटा धरि ओ बैसलि रहलीह आ पएर धय निकलबाक कोनो चेष्टा नहि कय रहलि छलीह, जेना हुनकर प्रतिज्ञा हो जे आशीर्वाद कानमे जरूर सुनी। एतबेमे प्रेमचन्दकेँ एकटा शरारत सुझलनि आ ओ बहन्ना केलन्हि जेना पूरा निन्नमे होथि। ओ करोट बदलि कय पएरकेँ स्थानान्तर कय देलथिन। एकरा बाद ओ जनानी पुनः ओहिठामसँ हिलय के कोशिश नहि केलक। प्रेमचन्द तँ करोट लेलन्हि मुदा ओ जनानी पूर्ववत छलि जेना माटिक मूर्ति हो जेकरा कियो ओहिठाम बैसल अवस्थामे राखि बिसरि गेल हो। चारिम राति पुनः ओहि जनानीक प्रवेश भेल आ ओ अपन कर्तव्यमे पूर्ववत छल। प्रेमचन्द बजलाह- हमरा कोन कारणसँ परेशान कय रहल छी? अहाँ के छी? हम की कपट देने छी जे अहाँ प्रति रात्रिमे आबि हमर पएरकेँ स्पर्श करैत छी? हमर निन्नकेँ कोन कारणसँ खराब कय रहल छी? ई बात सुनिते ओ जनानी लाजसँ शरीरकेँ सकुचा लेलक। जेना लजबिज्जीक पातमे किछु स्पर्श भेलापर ओ सिकुरि जाइत अछि ठीक ओहि प्रकारसँ ओ बाला सिकुरि गेलीह। कोनो उत्तर नहि भेटलापर प्रेमचन्द पुनः निन्नक बहन्ना बना कए फोंफ काटए लगलाह। किछु समय उपरान्त ओ बाला कोबरसँ निकलि गेलीह। करीब दू-तीन घंटा पश्चात् विधकरी कोबरमे प्रवेश कय अवाज देलन्हि जे मिसरजी उठथु, नहा लथु। नित्यक्रियासँ निवृत्त भऽ स्नान भेल। हरक पालोपर बैसाकए नवविवाहिता संग पुनः विवाह शुरू भेल- चतुर्थीक विध सभ। आजुक दिन नुनगर-चहटगर भोजन भेटलन्हि आ प्रेमचन्द घरक लेल प्रस्थान करबाक तैयारीमे छलाह तँ रिश्तामे ज्येष्ठ साढ़ू कहलन्हि जे साढ़ू भाइ, हमरो जेबाक अछि। संगे चलब। हम हुनके दू-पहियापर बैसि गाम अयलहुँ। किछु काल पश्चात् पुनः गाममे भोजन कय प्रेमचन्द एम्हर-ओम्हर निकलय के प्रयास जरूर केलन्हि, लेकिन ओ ओहिठाम सँ निकलि नहि सकलाह। पुनः साँझमे पिताजी आ ज्येष्ठ भ्रातृगणक दवाबमे सासुर घुरि कए अएलाह। रात्रि-भोजनक पश्चात् विश्रामक लेल कोबर गेलाह। करीब मध्यरात्रिमे पुनः ओहि बालाक प्रवेश भेल। ओ अपन काजमे व्यस्त छलीह। प्रेमचन्द पुनः निन्नक बहन्ना कयलनि। फेर मोन पड़लनि जे गामसँ जखन आबय लगलाह तँ बड़की भौजी किछु ज्वेलरी देने छलथिन जे ई कनियाँकेँ मुँहबजना छी, दऽ देबय, तखन सुतब।  जेबीसँ निकालि कय ओ बालाकेँ कहलथिन, ई अहाँक समान अछि, लऽ लेब। हमरा निन्न आबि रहल अछि, सूति रहल छी।

निन्न की होयतनि, शरीर तँ लगभग चारि-पाँच दिनमे आधा भय गेल रहनि। दिमागमे सोच जे पैसि गेलनि! ने खेनाइ-पिनाइ नीक जेकाँ ने निन्न। एकदम चिरचिरा स्वाभावक भय गेल छलाह। मध्यरात्रिमे प्यास लगलन्हि तँ पानिक लोटा ताकि रहल छलाह। ओ बाला हुनका एकटा गिलासमे लगभग ठंढा भऽ गेल दूध बढ़ेलखिन। प्रेमचन्द कहलथिन जे ई दूध छी, हमरा प्यास लागल अछि, ई राखि देल जाओ। मुदा ओ नहि रखलन्हि। हुनका संग समस्या छल जे ओ घोघमे छलीह, भरि रातिक जागलि छलीह आ कहियो बाजल नहि छलीह। ई सभ कारणेँ ओ हाथमे दूधक ग्लास लऽ तपस्याक मुद्रामे ठाढ़ रहलीह। प्रेमचन्दकेँ लगेमे लोटामे राखल पानि भेटलन्हि आ ओ पानि पीबि कए पुनः सुतबाक प्रयासमे छलाह। हुनका की जिज्ञासा भेलनि जे देखियै ई बाला कतेक काल धरि ठाढ़ भय गिलाससँ भरल दूध रखैत अछि। लगभग एक घण्टा बीति गेल मुदा ओ तपस्यामे लीन छथि ई देखि प्रेमचन्दकेँ दया आबि गेलनि आ दूधक गिलास हाथसँ लय दू-चारि घोंट पीबि गिलास राखि देलन्हि। पुनः परिचय भेल। प्रेमचन्दक प्रश्नक उत्तरक समय ओ बाला थर-थर काँपि रहल छलीह, जेना कसाइकेँ देखि छागरक आँखिमे डर।

प्रेमचन्द- नाम?

-सोनी।

-कतेक पढ़ल छी?

-दसम बोर्ड फेल छी।

-सत्य या झूठ?

-ई ध्रुव सत्य अछि।

ई बात सुनिते प्रेमचन्दक आँखिमे पुनः गंगा-यमुनाक धारा प्रवाहित भय गेलन्हि तँ सोनी रुदन अवस्थामे बजलीह- हम अपनेसँ झूठ नहि बाजि सकैत छी। हमरा क्षमा करू। हमरा जे सजा देब से कम अछि। आ हुनको आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलन्हि।

-अपने शरीरसँ विकलांग तँ नहि छी?

-नहि।

-अपने कोनो बीमारीसँ ग्रसित तँ नहि छी?

-नहि।

-अपने जिबैत किनका लेल छी?

-अहाँ हमर गरदनि दबा दिअ तँ हमरासँ बेशी भाग्यशाली कियो दोसर नहि होएत।

-अपनेक सभसँ पैघ लक्ष्य?

-अहाँक खुशी।

-अपने कानि रहल छी, कारण?

-अहाँक कष्ट देखि बर्दाश्त नहि भऽ रहल अछि।

-अहाँ जुनि कानू सोनी। एहिमे अहाँक कोनो दोष नहि अछि।

-आइ हम मरि गेल रहितहुँ तँ अहाँकेँ कष्ट नहि भेल रहैत।ई तँ ईश्वरक बनायल विधिक विधान छी! एकरा कोनो शक्ति नहि काटि सकैत छैक।

-देखू, एहि दुनियाँमे दू तरहक लोक होइत अछि- आशावादी आ पुरुषार्थवादी। हम आशावादी पुरुष नहि छी, पुरुषार्थवादी छी आ आशावादीसँ घृणा करैत छी। कारण आशावादी पुरुष या औरत मेहनती नहि होइत अछि। अपने कोन तरहक छी?

-हम धार्मिक प्रवृत्तिक छी आर धर्ममे बहुत विश्वास अछि, ताहि हेतु आशावादी छी!

ई सुनि प्रेमचन्दक मोनमे आर बेशी तकलीफ बढ़ि गेलन्हि। एहि तरहेँ चतुर्थीक राति दुनू नव-विवाहित जोड़ी कटलन्हि। प्रेमचन्द फेर अपन गाम घुरि गेलाह।

साँझ भेल, भौजीसभकेँ भेलन्हि जे प्रेमचन्द पुनः गाम जएताह। मुदा कोनो प्रतिक्रिया नहि देखि पुछल गेलन्हि तँ उत्तर आएल जे आब द्विरागमनक लेल हम उपस्थित होएब  सासुरमे, नहि तँ आब दिल्ली घुरि जाएब। अन्यथा हमर पीड़ाकेँ बढ़ाओल नहि गेल जाऊ। हमरा आब जीवित रहय के कोनो इच्छा नहि अछि। कोनो मनोरथ नहि अछि। हमर कोनो भविष्य नहि अछि!

द्विरागमन भेल, कनियाँ सासुर अयलीह। भड़फोरीक पश्चात् प्रेमचन्द दिल्ली उपस्थित भेलाह। अपन कम्पनीक काम-काज सम्हारलथि। काजपर तँ जाथि मुदा अन्तरात्मामे कतेक प्रश्न अबन्हि। कारण जे जीबाक आशाक किरण लगभग अन्तिम चरणमे पहुँचि गेल छलन्हि। आब कोनो मनोरथ नहि, नहिए जिनगीक कोनो लक्ष्य बाँचि गेल छलन्हि। आ एकर कारण मैथिल समाजक किछु महानुभावक विचार आ कृत्य अछि, संगहि मैथिल समाजक किछु प्रावधान सेहो जिम्मेदार अछि। एहि प्रकारेँ नहि जानि कतेक मैथिल नव-युवक-युवतीकेँ अपन करुण जिनगी जीबाक लेल मजबूर होमए पड़ैत अछि।


No comments:

Post a Comment