महेन्द्र कुमार मिश्र(पूर्व सांसद, नेपाल)
आतंकवाद महत्वाकांक्षाक खेतमे आकुरण होइत अछि
आतँक प्राणी जगतमे आदिम प्रत्युषा सँ चलैत आवि रहल अछि। प्राणीके अपन अपार, शक्ति आ कार्यक्षमताक कारणे आतँकक परिणाम आ प्रकार सभमे विविधता देखल जा सकैत अछि। पुराणादिमे वर्णित देवासुर संग्रामसभ आतँकवादीक श्रृंखलाक महागाथा अछि। महिषासुरक क्रिया कलाप सँ आतँककीत देवतागण शक्तिक आराधनामे लागि नारी द्धारा छल प्रपञ्च रचना कऽ ओकरा समाप्त कयलगेल प्रसँग दुर्गा सप्तशतिमे वर्णित अछि। रावणक आतँक समाप्त करवालेल राम अनेक जातिक सहयोग ल समाजके मुक्ति दिलौलनि। तहिना कंशक उन्माद अती भेलाक पश्चात एकटा सामान्य गोपाल कृष्णक रुपमे अवतरीत भेलाह।
कहवी छैक, बीनु बीज वृक्षक आकुरण नहि होइत छैक। अमेरिकाक जन्माओल सद्दाम आ ओसामावीन लादेन अमेरिका विरुद्ध कियाक आततायी भ प्रगट भेल ? इन्दिरा गाँधीद्धारा पालीत सन्त जर्नेल सिंह भिण्डेरबाला इन्दिराक प्राणे ल लेलक। ओसामावीन आ ओमार आजुक युगक विश्वके सर्वाधिक शक्ति सम्पन्न अमैरिकाक निन्न आ भूख उडादेने अछि। आतँकवाद कहियो महत्वाकाँक्षाक खेतमे अंकुरण होइत अछि आ अन्याय अत्याचार, शोषण आ दमनक वर्षामै वढैत या त ताही श्रृंखला तोडैत अछि कि त अपने समाप्त भ जाइत अछि। संसारक आतंकके इतिहास ओएह परिणाम देखवैत अछि। हिंसामे प्रतिहिंसा जकां आतंकवादी सभ मात्र अपने हत्या हिंसा, लुटपाट आ अगिलग्गी नहि करैत छैक दोसर पक्षके सेहो ओहने काज करवालेल वाध्य करवैत अछि। संसारक द्धन्द्वरत पक्षके गहींर सं अध्ययन, मनन कयला उपरान्त एकरा सभहक क्रिया कलापक परिणति, इएह प्रमाणित होइत अछि।
आतंक शब्द सँ कोनो हैजाक प्रकोप आ कठोर अत्याचार आदिसँ उत्पन्न होवए बला भयके वोध करवैत अछि। आतंकमे वाद जोडिदेलाक बाद एकर अर्थ मनुष्यकै डेरा क धमका क या त्रास सृजन क क हिंसात्मक विद्रोहक रुपमे अपन प्रभुत्व स्थापित क काज सिद्ध करवाक विचार आ सिद्धान्त बुझना जाइत अछि। दोसरके सम्पति लुटव, घरमे आगि लगाएव, पर स्त्रीसंग बलात्कार करब, समाजमे उत्पाद मचाएव एहन दुष्कर्मीकै दुराचारी कहल जाइत अछि।
तानाशाही चाहे जेकर होउक, जॉर्जबुशक हौउक वा मुसर्रफकै एकरा कौनो दृष्टिए नीक नहि मानल जायत। कानो राष्टक तानाशाही आ दादागिरीके एक न एक दिन विनाश होयबेटा करैत अछि। आव ओ युग नहि रहिगेल जे लोक बुझौक परमेश्वरक अनुकम्पासँ गर्भ धारण भेल, ई लोक मानए लेल तैयार नहि रहिगेल। ककरोलेल तोपक सलामी आ केओ लाठी,बुट आ गरमे गोली खाई, आजुक मानव समाजक चेतना एकरा सह लेल तैयार नहि अछि। विश्वक कोनो ठाम जे विद्रोह भेलैक तकर समाधान करवाक काजक दायित्व वाहक अपना आपके विशिष्ट नहि सामान्यस्तरक खण्डमे राखय तखने ई समस्याक समाधान भ सकैत अछि। २००७ साल सँ पालीत, पोषित आ वढैत आएल सामाजिक विद्रोहक स्तरके माओवादी लगायत तथाकथित प्रजातन्त्रवादी दलसब तराई समस्याकेँ जाइन बुझि क अखनो कार्यान्वयन पक्षकेँ कमजोर बनाविक रखने अछि। पिडीत पक्ष अखनो विश्वस्त भ नहि पाविरहल अछि। नेपालक सन्दर्भमे माओवादी १० वर्षधरि हथियार उठा जनविद्रोह कएलो उपरान्त सबपक्षके समेट नहि सकल। संगहि आन पार्टी सैहो पिडीत,उत्पीडीत,राज्यक संरचना सँ दूर रहए बला वर्गक प्रति इमान्दार नहि रहल त दौसर विद्रोहक सम्भावना अवश्सम्भावी अछि।
विद्रोहक अनेक शैलीआ पद्धति मध्ये कम सँ कम जनआतंक आ जनधनक क्षति होइक एहने शैली एवं आचरण मात्र विशवमे अनादिकालसँ सामाजिक मान्यता पबैत अछि। सामाजिक रूपान्ररण हथियार नहि विचार सँ कएल जाइक तखने टिकाउ भ सकैत अछि। आसुरी ताल या वृति एकटा स्वाभाविक कमजोरी अछि। सहिष्णुता संस्कारक उदात्तीकरण अछि। मनोविज्ञान ओही तथ्यकेँ मान्यता दैत छैक जकर प्रशस्त प्रमाणसब छैक।
३० वर्षे पञ्चायती शासन स्वेच्छाचारी, हुकुमी, निरंकुश सामन्ती प्रवृतिक छलेैक त २०४६ सालक जनआन्दोलन व्यवस्थामे परिवर्तन लौलक तथापि प्रवृतिमे कोनो परिवर्तन नहि दैखलगेल। पूर्व राजा ज्ञानेन्द्रद्धारा फेर सँ अएह शासन प्रणालीकेँ पुनरावृति कर चाहलक मुदा सफल नहि भ सकल। ज्ञानेन्द्रक महत्वाकांक्षा बढैतगेल जकर फलस्वरुप देशक जनता गणतन्त्रोन्मुख होइत आई दैशमे गणतन्त्र स्थापना भ गेल अछि। आव जौ कोनो प्रकारक वाधा व्यवधान उत्पन्न करबाक कोशिश कायलगेल त विद्रोह बढवेटा करत। संविधानसभा मूद्दा नहि समाधाने मूद्दा अछि। संविधान सभाक विर्वाचन पश्चात मधेशक साथ कोनो दल धोखा देवाक धृष्टता करत त परिणाम अनिष्टकारी होयत। राष्ट दोसर दुर्गतिकेँ आमन्त्रण करत। मधेशक जनता अखनधरि उपेक्षित, उत्पीडित रहल, समान अधिकार आ समान पहिचानकलेल लालाइत रहल मधेशक मूद्दापर यदि राजनीति करबाक धृष्टता करत त स्वाभिमानी मधेशी जनता फेर विद्रोहमे उतरत, मधेशी जनता मधेशवादी अछि, मात्र मधेशवादी गणतन्त्रवादी नहि। गणतन्त्रवादी कहि जनता भोंट नहि देलक आइ किछु नेता कहैत छथि, “हामी गणतन्त्रवादी हौं” हुनका “हामी मधेशवादी” कह मे लाज किएक ? आबक संविधान जनआन्दोलन २०६२।०६३ तथा मधेश आन्दोलनद्धारा प्राप्त जनाधिकारक सन्दर्भमे एकटा एहन संविधानक आवश्यकता छैक जाहि संविधानक माध्यम सँ नेपालक जनता सही अर्थमे समावेशी लोकतन्त्र, प्रतिस्पर्धात्मक बहुदलीय, बहुभाषिक, बहुसांस्कृतिक स्वरुपक संगहि सम्बन्धित अधिकार सबहक उपभोग क सकय। एकरा संगहि, एहि देशमे सैकड़ो वर्ष सँ शोषित रहल मधेशी समुदाय, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी एवं जनजाती आव निर्माण होवए बला नया संविधानद्धारा एकटा कुण्ठारहित समुन्नत, समावेशी आ विकाशशील समाजक निर्माण भ सकै आ तकर यथार्थ अनुभूति अनुभव जनता कए सकय।
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