जन्म-09.04.1957, पण्डुआ, ततैल, ककरौड़ (मधुबनी), रशाढ़य (पूर्णिया), शिवनगर (अररिया) आ’ सम्प्रति पूर्णिया। पिता लब्ध धौत पञ्जीशास्त्र मार्त्तण्ड पञ्जीकार मोदानन्द झा, शिवनगर, अररिया, पूर्णिया|पितामह-स्व. श्री भिखिया झा। पञ्जीशास्त्रक दस वर्ष धरि 1970 ई.सँ 1979 ई. धरि अध्ययन,32 वर्षक वयससँ पञ्जी-प्रबंधक संवर्द्धन आऽ संरक्षणमे संलग्न। गुरु- पञ्जीकार मोदानन्द झा। गुरुक गुरु- पञ्जीकार भिखिया झा, पञ्जीकार निरसू झा प्रसिद्ध विश्वनाथ झा- सौराठ, पञ्जीकार लूटन झा, सौराठ। गुरुक शास्त्रार्थ परीक्षा- दरभंगा महाराज कुमार जीवेश्वर सिंहक यज्ञोपवीत संस्कारक अवसर पर महाराजाधिराज (दरभंगा) कामेश्वर सिंह द्वारा आयोजित परीक्षा-1937 ई. जाहिमे मौखिक परीक्षाक मुख्य परीक्षक म.म. डॉ. सर गंगानाथ झा छलाह।
ॐ
॥श्री गणेशाय नमः॥
“सृष्टि चक्र”
आदिमे शून्य छल शून्यसँ शान्ति छल।
शून्य केर सत्ता दिग-दिगन्त व्याप्त छल।
शून्यक विधाता शून्यसँ आक्रान्त छल।
शून्यसँ प्रारम्भ भए शून्यहिसँ विराम छल।
विधिना विधान कएल रचना संसार कएल।
खेत पथार पोखरि ओ जीवक संचार कएल।
दिति ओ अदितिसँ सृष्टिक विस्तार कएल।
कर्म सभक बान्हि बान्हि धरतीपर आनि धएल।
शून्यक विखंडनसँ वृत्तक विस्तार भेल।
पोखरि ओ झांखड़ि पर्वत पहाड़ भेल।
नदी-नद तालाब ओ वनस्पति हजार भेल।
जीव जङ्गम स्थावर ओ गतिमान संसार भेल।
चन्द्र सूर्य नक्षत्र ओ वायु वारिद नीर।
धरा-गगन धरि व्याप्त भेल विद्युत ओ समीर।
सभतरि पसरल तेज पुञ्ज चकाचौंध गम्भीर।
तम-तम करइत दिन दुपहरिया नयन भरल ओ नीर।
जल चर- थलचर- नभचर नाना।
अप्पन-अप्पन धएलक बाना।
विविध भेष ओ भाषा नाना।
कएलक निज-निज गोत्र बखाना।
विष ओ अमृत संग जनमि गेल।
स्नेह-प्रेम-आघात प्रगट भेल।
दोस्त-महिम कुटुम्ब अमरबेल।
चतरि-चतरि चहुँओर पसरि गेल।
एक दिशि जनमल चोर-उचक्का।
दोसर दिशि भलमानुष सुच्चा।
सृष्टि हेतु- समधानल सभटा।
प्रभु सभ करथि हुनक ई छिच्छा।
गोङ बधिर बजबैका नाङ्गर।
श्वेत-श्याम सत्वर ओ अजगर।
दीर्घकाय ओ दुव्वर पातर।
सभटा रचलैन्हि ओ विश्वम्भर।
भूख रचल प्यास रचल।
श्रम ओ संधान रचल।
रोग रचल व्याधि रचल।
औषध अपार रचल।
काम भूख दाम भूख वासनाक उग्रभूख।
शान-मान-दान भूख भूखक हजार रूप।
ई भूख ओ भूख भूखक विद्रूप रूप।
भूख मुदा बढ़िते गेल धधकैत विकराल रूप।
शाम-दाम-दण्ड भेद शासन कुशासन।
काम-क्रोध-लोभ-मोह विरचल “महाशन”।
राग-द्वेष-प्रेम-वैर पसरल हुताशन।
सृष्टि चक्र चलैत रहल वैदिक ऋचा सन।....।
घर बनल गाम बनल नगर ओ धाम बनल।
जनता जरल सन नेता भगवान बनल।
देशक खेवैया झुठ्ठा बेइमान बनल।
भक्तिक भभटपन पण्डा शैतान बनल।
सृष्टि चक्र चलैत रहल वैदिक ऋचा सन।...
पाद-टिप्पणी: १.वारिद-मेघ २.समधानल-ओरियाकऽ ३.छिच्छा-स्वभाव ४.संधान-अन्वेषण,खोज ५.महाशन-विष्णु ६.हुताशन-अग्नि.
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